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By-Election Results: बिहार विधानसभा उपचुनाव में क्यों नहीं चला लालू का जादू?

Bihar politics बिहार के दो सीटों पर हुए उपचुनाव में लालू का भी जादू नहीं चला. चुनाव परिणाम चौंकाने वाली नहीं हैं, क्योंकि पहले से दोनों सीटें जेडीयू की थीं और इस बार भी उसके उम्मीदवार विजयी हुए हैं.

पटना. बिहार के दो सीटों पर हुए उपचुनाव में लालू का भी जादू नहीं चला. चुनाव परिणाम चौंकाने वाली नहीं हैं, क्योंकि पहले से दोनों सीटें जेडीयू की थीं और इस बार भी उसके उम्मीदवार विजयी हुए हैं. लेकिन जो परिणाम सामने आए उसपर सत्ता दल और विपक्ष जरुर मंथन करेगी. चुनाव परिणाम ने साफ कर दिया है कि आरजेडी अकेले बिहार में सबसे ताकतवर पार्टी के रुप में उभरी है. 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी 75 सीटों पर कामयाबी के साथ अकेली सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी और आज भी उसका तेवर बरकरार है. दूसरा संकेत यह है कि आरजेडी में लालू यादव अब अप्रासंगिक हो गये हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी गैरमौजूदगी के बावजूद तेजस्वी ने अपना करिश्मा दिखाया था और इस बार भी दोनों सीटों के परिणामों से साफ है कि लालू यादव के जादू का असर अब नहीं रहा.

लालू का भकचोन्हर और विसर्जन जादू नहीं चला

लालू प्रसाद का कांग्रेस प्रभारी को भकचोन्हर कहना, नीतीश कुमार के विसर्जन की बात कहना किसी काम नहीं आया. लालू आज भी अपने पुराने अंदाज को नहीं बदला. यही कारण था कि उन्होंने चार साल बाद बिहार आकर वही प्रयोग दोहराया, लेकिन वह बेअसर रहा. इससे कहा जा सकता है कि लालू यादव जिस दौर के करिश्माई चेहरा रहे हैं, वह दौर अब खत्म हो रहा है. नयी पीढ़ी उनके लटके-झटके सुनने की अभ्यस्त नहीं है. इससे साफ है कि राजनीति में भी इन्नोवेशन की आवश्यक है. लालू को अगर सक्रिय राजनीति में रहना है तो उन्हें चुनाव जीतने के अपने तरीके बदलने होंगे.

नयी पीढ़ी के नेता के रुप में उभरे तेजस्वी

नयी पीढ़ी को लालू का अंदाज नहीं उसे युवा चेहरा आकर्षित करता है. नयी पीढ़ी बदलाव चाहती है और बदलाव के लायक तेजस्वी को समझ रही है. इसलिए दूसरी बड़ी पार्टी बन कर वह उन सीटों पर भी दिख रही है, जहां सत्ताधारी दल का पहले से ही कब्जा था. तारापुर में जितने कम अंतर से जेडीयू ने जीत दर्ज की, वह उसके लिए खतरे की घंटी है. अगर कांग्रेस ने वोट काटे नहीं होते तो आरजेडी तारापुर की सीट तो पक्का निकाल लेती.

कांग्रेस ने कर दिया अपना काम

बिहार में विपक्षी दलों का महागठबंधन अगर बरकरार रहा तो सत्ताधारी एनडीए को मात देने में राजद को ज्यादा मुश्किल नहीं होगी. यानी कांग्रेस को खारिज करना आरजेडी की सेहत के लिए ठीक नहीं. चिराग पासवान और कांग्रेस ने लगभग छह-छह हजार वोटों का नुकसान किया. चिराग पासवान तो अभी किसी खेमे में नहीं हैं और आने वाले समय में भी वह अपना अलग वजूद रखना चाहते हैं तो उनकी भूमिका महज वोटकटवा दल के नेता की रहेगी. उन्हें अपने पिता की तरह मौसम विज्ञानी बनना होगा या नफा-नुकसान की परवाह किये बगैर किसी एक खेमे के साथ दबंगता के साथ रहना पड़ेगा. अगर बिहार एनडीए से उनका भटकाव नहीं हुआ होता तो जेडीयू की ताकत इस चुनाव में बढ़ी हुई रहती. उसी तरह महागठबंधन से कांग्रेस अलग नहीं हुई होती तो एक सीट पर महागठबंधन उम्मीदवार की जीत तो पक्की हो ही जाती.

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