Bihar news: सिर्फ पांच साल में बिहार की जीविका दीदियों ने आंध्र प्रदेश की दीदियों को पीछे छोड़ दिया है. जीविका प्रशासन के अनुसार, खुद की कंपनी चलाने में बिहार की दीदियां पूरे देश में पहले स्थान पर हैं, जबकि आंध्र प्रदेश की दीदियां दूसरे नंबर पर हैं. आंध्र की दीदियां 15 कंपनियां चलाकर स्वरोजगार कर रही हैं, वहीं बिहार की दीदियां 70 कंपनियों की संचालन कर रही हैं. दीदियों ने शुरुआत में महज 10 से 30 हजार रुपये की पूंजी से छोटे कारोबार शुरू किए. जैसे-जैसे कारोबार बढ़ा, उन्होंने मिलकर अपनी खुद की कंपनियां बनाई. राज्यभर की दीदियों ने कड़ी मेहनत से पांच साल में 70 कंपनियां खड़ी की हैं. इनमें 61 कंपनियां कृषि क्षेत्र में सक्रिय हैं, जबकि छह गैर- कृषि और तीन पशुपालन से जुड़ी कंपनियां हैं.
10 करोड़ से ज्यादा का कारोबार
बिहार की जीविका दीदियों का कुल कारोबार अब 10 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है. कृषि, शिल्प कला और अन्य छोटे व्यवसायों के जरिए उन्होंने अपनी आमदनी बढ़ाई है. कई दीदियों ने मिलकर कंपनियां बनाईं और अब उनका सालाना कारोबार लाखों और करोड़ों में पहुंच चुका है.
शहद और पशुपालन में सफलता
शहद के कारोबार को बढ़ाने के लिए दीदियों ने कौशिकी प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड बनाई, जिसमें 30,135 दीदियां जुड़ी हैं और वर्तमान कारोबार 5 करोड़ रुपये से अधिक है. वहीं, गोट प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड में 20,956 दीदियां जुड़ी हैं, जो बकरी पालन से सालाना 2.6 करोड़ रुपये का कारोबार कर रही हैं. शहद की आपूर्ति डाबर जैसी बड़ी कंपनियों को होती है और दूध उत्पादन में कई कंपनियों के साथ समझौते किए गए हैं.
70 कंपनियों की हैं बॉस
जीविका के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी हिमांशु शर्मा के अनुसार, “कंपनी चलाने में बिहार की जीविका दीदियां पूरे देश में सबसे आगे हैं. जीविका दीदियां आज राज्यभर में 70 कंपनियां चला रही हैं. शुरुआत भले ही उन्होंने 10 हजार रुपये के छोटे लोन से की थी, लेकिन मेहनत और लगन से अब खुद की कंपनियां खड़ी कर देशभर में अव्वल स्थान हासिल किया है.
ऐसे हुई थी शुरुआत
बिहार में जीविका की शुरुआत साल 2006 में हुई थी. यह योजना ग्रामीण विकास विभाग और विश्व बैंक की मदद से शुरू की गई थी, ताकि गांव की महिलाएं छोटे-छोटे समूह बनाकर बचत और लोन की सुविधा से अपने पैरों पर खड़ी हो सकें. पहले महिलाओं ने 10–20 हजार रुपये का लोन लेकर छोटे काम जैसे पशुपालन, सब्जी की खेती और हस्तशिल्प शुरू किए. धीरे-धीरे इन समूहों ने ताकत पाई और आज यही महिलाएं, जिन्हें सब ‘जीविका दीदी’ कहते हैं, अपनी कंपनियां चला रही हैं और करोड़ों का कारोबार कर रही हैं.

