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संवाददाता, पटना
पटना विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर द स्टडी ऑप सोशल इंक्लूजन की ओर से आयोजित साप्ताहिक इंटर्नशिप कार्यक्रम का सोमवार को समापन किया गया. इंटर्नशिप के अंतिम दिन वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी आरा के पूर्व कुलपति और पटना विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र के पूर्व अध्यक्ष प्रो (डॉ) आरएस आर्य ने प्रतिभागियों से संवाद किया. प्रो रामशंकर आर्य ने विद्यार्थियों को बौद्धिक, तार्किक और समीक्षात्मक सोच-समझ को बढ़ावा देने में दर्शन की भूमिका को पहचानने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने याद दिलाया कि यूनेस्को ने नवंबर के हर तीसरे गुरुवार को ‘वर्ल्ड फिलॉसफी डे’ के रूप में मनाने की घोषणा की. सुकरात की उक्ति बिना जांचा-परखा जीवन जीने योग्य नहीं है को याद करते हुये प्रो आर्या ने विभिन्न सामाजिक-आर्थिक तंत्रों में निहित मूल्य और नैतिक सिद्धांतों के अनुसंधान पर जोर दिया. बीएन कॉलेज में दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ मो जियाउल हसन ने इस चर्चा को गत सप्ताह के गुरुवार को पेरिस स्थित यूनेस्को हेडक्वार्टर में प्रो इंग्रिड रॉबिंस के बीज-वक्तव्य से जोड़ा. डॉ हसन ने प्रो रॉबिंस की नयी पुस्तक लिमिटेरियनिज्म : द केस अगेंस्ट एक्सट्रीम वेल्थ (एलन लेन एंड एस्ट्रा, 2024) का उल्लेख किया, जिसमें न्याय, लोकतंत्र और सतत विकास व स्थिरता के लिए बहुत अधिक धन-संसाधन संचय को सीमित करने के लिए एक मजबूत तर्क उपलब्ध कराती है. इससे यह आशा व्यक्त किया जाता है कि हमारे नीति-निर्माता मौजूदा सोशियो-इकोनॉमिक तरीकों पर न्यायपूर्ण ढंग से फिर से सोचेंगे और सबको साथ लेकर चलने वाले और सतत विकास के लिए काम करने को समाज प्रेरित करेंगे. वहीं बीएन कॉलेज के प्राचार्य डॉ राजकिशोर प्रसाद ने कहा कि आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए विज्ञान को दर्शन की समृद्ध विरासत से जोड़ना चाहिए, ताकि दुनिया-भर में ज्ञान और समालोचनात्मक विमर्श को बढ़ावा मिले. अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो (डॉ) डीएन सिन्हा ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि दर्शन के बिना तो साहित्य भी अंधा है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

