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जैवलिन थ्रो में बिहार के पास भी कई बेहतरीन एथलीट, सुविधा मिले तो तय कर सकते हैं ओलिंपिक का सफर

सुदामा यादव, अंजनी कुमारी, रोहित सिंह, राजकुमार गुप्ता, अरुण मोदी, मीनू सोरेन और आशुतोष कुमार सिंह ये, वो नाम हैं, जो बिहार को राष्ट्रीय जूनियर भाला फेंक प्रतियोगिता में पदक दिला चुके हैं. इन खिलाड़ियों को अगर बेहतर सुविधा मिले, तो ओलिंपिक का सफर आसानी से तय कर सकते हैं.

आमोद सिंह, पटना: सुदामा यादव, अंजनी कुमारी, रोहित सिंह, राजकुमार गुप्ता, अरुण मोदी, मीनू सोरेन और आशुतोष कुमार सिंह ये, वो नाम हैं, जो बिहार को राष्ट्रीय जूनियर भाला फेंक प्रतियोगिता में पदक दिला चुके हैं. इन्होंने विपरीत परिस्थितियों का समाना करते हुए यह उपलब्धि हासिल की है. इन खिलाड़ियों को अगर बेहतर सुविधा मिले, तो ओलिंपिक का सफर आसानी से तय कर सकते हैं.

जैवलिन में जमुई है बेहतर :

पूरे बिहार में जमुई जिले में सबसे अधिक जैवलिन थ्रोअर एथलीटों की संख्या है. आशुतोष कुमार सिंह की देखरेख में सुदामा यादव ने यूथ एशियन गेम्स तक का सफर तय किया है. 2018 में अंडर-18 आयु वर्ग में वर्ल्ड नंबर वन रैंकिंग हासिल करने के बाद सुदामा का चयन हांगकांग में होनेवाले यूथ एशियन गेम्स में किया गया था, जहां इन्होंने लिगामेंट में चोट के बावजूद 75.8 मीटर भाला फेंका था. इस चोट की वजह से सुदामा फिलहाल खेल से दूर हैं. ऑपरेशन कराने के बाद वे बेंगलुरु के रिहैब सेंटर में फिर से मैदान में उतरने की तैयारी में जुटे हैं.

कई मेडल कर चुके अपने नाम 

जमुई की अंजनी अब तक 11 मेडल अपने नाम कर चुकी हैं. वहीं, आशुतोष कुमार सिंह भाला फेंक में 21 मेडल जीत चुके हैं. यहीं के रोहित सिंह, राजकुमार गुप्ता व अरुण मोदी भी मेडल जीतने में कामयाब रहे हैं. इनके अलावा अभी कई और खिलाड़ी हैं, जो पदक की तैयारी जोरों से कर रहे हैं. भागलपुर एकलव्य सेंटर की मीनू सोरेन नौ मेडल अब तक जीत चुकी हैं.

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सुविधा मिले तो बदल जायेगी तस्वीर

राज्य के सभी एथलीटों के पास उतने पैसे नहीं है, जिससे वह राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैचों में इस्तेमाल होने वाला जैवलिन खरीद सकें. इसके अलावा बेहतर कोच, फिटनेस ट्रेनर की कमी की वजह से सीनियर लेवल पर हमारे खिलाड़ी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में मजबूती से अपनी दावेदारी नहीं पेश कर पाते हैं.

मासिक अनुदान की व्यवस्था जरुरी

आर्थिक रूप से कमजोर खिलाड़ियों के लिए मासिक अनुदान की व्यवस्था करने से सीनियर खिलाड़ियों को सफलता मिलेगी. आर्थिक रूप से कमजोर सुदामा को चोट लगी, तो मदद के लिए प्राइवेट कंपनी ने हाथ बढ़ाया, जिससे उनका ऑपरेशन हो पाया.

POSTED BY: Thakur Shaktilochan

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