सुरेंद्र किशोर
वरिष्ठ पत्रकार
श्वेत निशा त्रिवेदी उर्फ बॉबी हत्याकांड के मामले में तो सीबीआइ भी मुख्य आरोपित तक नहीं पहुंच सकी थी, लेकिन निखिल प्रियदर्शी की गिरफ्तारी हो गयी है. इस गिरफ्तारी के साथ ही अब यह उम्मीद बंधी है कि यौनशोषण के इस ताजा मामले का देर-सवेर पूरी तरह भंडाफोड़ हो सकेगा.
अब तक मिली सूचनाओं के अनुसार बॉबी कांड और ताजा कांड में अंतर सिर्फ यही है कि बॉबी की हत्या कर दी गयी थी और इस मामले में पीड़िता अपनी व्यथा कथा बताने के लिए मौजूद है. ऐसे घृणित मामले समाज के प्रभावशाली लोगों द्वारा महिलाओं के शोषण की कहानियां हैं. वैसे 1983 में हुए चर्चित बॉबी कांड को लेकर लगभग सारी कहानियां लोगों की जुबान पर थीं. पर, चूंकि अदालत द्वारा किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सका, इसलिए किसी आरोपित का नाम आप जाहिर नहीं कर सकते.
जानकार सूत्रों पर भरोसा करें, तो निखिल प्रियदर्शी के पास इस राज्य के प्रभु वर्ग के कुछ लोगों की ओछी हरकतों के सबूत मौजूद हैं. कल्पना कीजिए कि यदि सचमुच सबूत उपलब्ध हैं और वे एक-एक करके जाहिर होने लगे, तो कितना बड़ा धमाका होगा!
समाज के करीब-करीब हर वर्ग के प्रभावशाली लोगों द्वारा महिलाओं के शोषण और उनके साथ ज्यादतियों के मामलों को तार्किक परिणति तक नहीं पहुंचाये जाने से ही ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहती हैं.
यह एक अच्छी बात है कि इन दिनों बिहार में एक ऐसी सरकार है, जिसके मुखिया कहते हैं कि हम न किसी को फंसाते हैं और न किसी को बचाते हैं. कानून प्रिय लोग यह उम्मीद कर रहे हैं कि मुखिया अपने इस वचन पर इस बार भी कायम रहेंगे.
वैसे आज अदालतें भी पहले से अधिक
जागरूक हैं. वह जनहित याचिकाओं पर सकारात्मक ढंग से विचार करती हैं. यह भी ध्यान रहे कि ताजा मामला अनुसूचित जाति से आनेवाले बिहार सरकार के एक पूर्व राज्यमंत्री की पुत्री के शोषण का है. उच्चस्तरीय दबाव में बॉबी हत्याकांड को जब सीबीआइ ने 1984 में रफा-दफा किया, तो पटना के कुछ प्रतिष्ठित नागरिकों ने पटना हाइकोर्ट में उस रफा-दफा के खिलाफ जनहित याचिका दायर की. अदालत ने उस याचिका पर सुनवाई से ही इनकार कर दिया था. दरअसल, तब जनहित याचिकाओं का आज जैसा चलन भी नहीं था.
अनेक सत्ताधारी नेताओं को बचाने के लिए सीबीआइ ने 1983 में हुई बॉबी की हत्या को आत्महत्या करार देकर उसे रफा-दफा कर दिया था. जांच एजेंसी ने उच्चस्तरीय दबाव के कारण ऐसा किया.
उन दिनों के एक विधायक ने हाल में यह तर्क दिया है कि यदि बॉबी सेक्स स्कैंडल को हम तब रफा-दफा नहीं करवाते, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता.
क्या पटना के ताजा सेक्स स्कैंडल को भी उसी बहाने रफा-दफा कर देने की कोशिश होगी कि एक बार फिर ‘लोकतंत्र खतरे में है ?’ क्या ताजा कांड में भी कई प्रभावशाली लोग सचमुच संलिप्त हैं ?
ऐसी कहानियां राजनीति में महिलाओं के शोषण और इस्तेमाल की कहानियां हैं.बिहार विधानसभा सचिवालय की महिला टाइपिस्ट बॉबी को जहर दिया गया था, जिससे सात मई, 1983 को उसकी मौत हो गयी. उस समय यह आम चर्चा थी कि किसने जहर दिया. बॉबी बिहार विधान परिषद की पूर्व सभापति और कांग्रेसी नेत्री राजेश्वरी सरोज दास की गोद ली हुई बेटी थी. हत्या पटना स्थित सरकारी आवास में ही हुई.
हड़बड़ी में लाश को कब्र में दफना दिया गया. दो डाॅक्टरों से निधन के कारणों से संबंधित जाली सर्टिफिकेट ले लिये गये. दोनों डाॅक्टरों ने मृत्यु के अलग- अलग कारण बताये थे. इस रहस्यमय हत्या के बारे में दो स्थानीय दैनिकों में खबरें छपने के बाद तत्कालीन वरीय पुलिस अधीक्षक किशोर कुणाल ने कब्र से लाश निकलवायी.
पोस्टमार्टम हुआ. बेसरा में मेलेथियन जहर पाया गया.
राजेश्वरी सरोज दास के आवास के आउटहाउस में रहनेवाले दो युवकों को पकड़ कर पुलिस ने जल्दी ही पूरे केस का रहस्योद्घाटन कर दिया. खुद राजेश्वरी सरोज दास ने 28 मई, 1983 को अदालत में दिये गये अपने बयान में कहा कि बॉबी को कब और किसने जहर दिया था. हत्याकांड और बॉबी से जुड़े अन्य तरह के अपराधों के तहत प्रत्यक्ष और परोक्ष ढंग से कई छोटे-बड़े सत्ताधारी नेता संलिप्त पाये गये थे.
तब की सत्ता राजनीति में भूचाल आ गया. उन नेताओं की गिरफ्तारी होने ही वाली थी कि करीब 30 -35 कांग्रेसी विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री का घेराव करके उनसे कहा कि आप जल्द केस को सीबीआइ को सौंपिए, अन्यथा आपकी सरकार गिरा दी जायेगी.
राज्य सरकार ने 25 मई, 1983 को इस केस की जांच काभार सीबीआइ को सौंप दिया. उधर सीबीआइ पर भी उच्च स्तर से दबाव पड़ा और केस अंतत: रफा-दफा हो गया.
सत्ताधारी नेताओं को बचाने की हड़बड़ी में सीबीआइ ने बेसिर-पैर की कहानी गढ़ कर कोर्ट में फाइनल रिपोर्ट लगा दी. हत्या को आत्महत्या का रूप दे दिया गया था. उससे पहले इस केस के अनुसंधान के सिलसिले में सीबीआइ की टीम ने कभी पटना पुलिस से संपर्क नहीं किया. सीबीआइ ने अपने ऑफिस में बैठ कर पूरी फाइनल रपट बना दी. अब देखना है कि ताजा दलित महिला यौनशोषण के मामले को जांच एजेंसी कितनी जल्द तार्किक परिणति तब पहुंचाती है!
