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उत्तरी व दक्षिणी बिहार में स्थापित होंगे इ-वेस्ट रीसाइक्लिंग प्लांट
राज्य में सालाना 500 टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा होता है जमा पटना : राज्य सरकार उत्तरी और दक्षिणी बिहार में एक- एक स्थान पर इ वेस्ट(इलेक्ट्रानिक कचरा) के रीसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करने जा रही है. इसके लिए सरकारी एजेंसियां राज्य के दोनों भौगोलिक क्षेत्रों में जमीन तलाश रही हैं. उम्मीद जतायी जा रही है कि इसी […]
राज्य में सालाना 500 टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा होता है जमा
पटना : राज्य सरकार उत्तरी और दक्षिणी बिहार में एक- एक स्थान पर इ वेस्ट(इलेक्ट्रानिक कचरा) के रीसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करने जा रही है. इसके लिए सरकारी एजेंसियां राज्य के दोनों भौगोलिक क्षेत्रों में जमीन तलाश रही हैं.
उम्मीद जतायी जा रही है कि इसी वित्तीय वर्ष में रीसाइक्लिंग प्लांट स्थापना के लिए हरी झंडी मिल जायेगी. यह निर्णय शासन स्तर पर उच्चस्तरीय बैठक में लिया गया है. जानकारी हो कि बिहार में सालाना करीब 500 टन इलेक्ट्राॅनिक कचरा एकत्रित किया जाता है.
इसमें अकेले पटना शहर की हिस्सेदारी सालाना 300 टन की है. हालांकि, इसका कई गुना इ- वेस्ट खुले में पड़ा रह जाता है. खुले में सबसे ज्यादा इलेक्ट्राॅनिक कचरा बिहार के छोटे-छोटे कस्बों में होता है.
इसके घातक असर सरकारी और गैर सरकारी सर्वे में सामने आये हैं. फिलहाल हालिया एक उच्चस्तरीय बैठक में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के दो रीसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को जमीन तलाशने के लिए कहा गया है. रीसाइक्लिंग प्लांट ऐसे इलाके में स्थापित किये जायेंगे, जहां की आबादी पर उसका दुष्प्रभाव न पड़े.
सूबे में 141 इलेक्ट्रॉनिक कचरा संग्रह केंद्र
वर्तमान में पूरे प्रदेश में 141 इलेक्ट्राॅनिक कचरा संग्रह केंद्र हैं. ये विभिन्न मोबाइल एवं टेलीविजन कंपनियों के हैं. इन सेंटर्स में अधिकतर गायब हैं. केवल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उनकी सूची सौंप दी गयी. हकीकत में ये सेंटर काम नहीं कर रहे हैं. अभी कंपनियां अपनी तरफ से एकत्रित कचरे को अपने -अपने रीसाइक्लिंग सेंटर्स को भेजती हैं. ये सभी सेंटर्स नोएडा व दक्षिण भारत के कुछ शहरों में स्थापित हैं.
जहरीला हो रहा पर्यावरण
इ-वेस्ट में सबसे घातक पारा और सीसा जैसे तत्व हैं, जो भू-जल को जहरीला बना रहे हैं. इन दोनों तत्वों की कुल इलेक्ट्राॅनिक कचरे में भागीदारी चालीस फीसदी के आसपास है. जानकारों का मानना है कि इ-कचरे में लेड, मरकरी, कैडमियम और कोबाल्ट जैसे खतरनाक तत्व होते हैं.
उल्लेखनीय है कि इ-कचरे के उपचार यानी रीसाइक्लिंग के दौरान निकलने वाले रसायनों और विकिरण से न सिर्फ पर्यावरणीय खतरा पैदा होते हैं, बल्कि इसके संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र (न्यूरो), सांस, त्वचा, कैंसर व दिल संबंधी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. इसलिए रीसाइक्लिंग सेंटर्स की स्थापना में काफी एहतियाती उपाय किये जाते हैं.
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