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चीफ जस्टिस के खिलाफ नारेबाजी, कोर्ट का माहौल गरमाया

जज राकेश कुमार के फैसले को निलंबित करने पर कोर्ट का माहौल गरमाया पटना : जज राकेश कुमार के फैसले को निलंबित संबंधी 11 जजों की बेंच की ओर से जैसे ही फैसला आया, कोर्ट परिसर का माहौल गरमा गया. बड़ी संख्या में वकीलों का एक समूह चीफ जस्टिस के चैंबर के बाहर नारेबाजी करने […]

जज राकेश कुमार के फैसले को निलंबित करने पर कोर्ट का माहौल गरमाया
पटना : जज राकेश कुमार के फैसले को निलंबित संबंधी 11 जजों की बेंच की ओर से जैसे ही फैसला आया, कोर्ट परिसर का माहौल गरमा गया. बड़ी संख्या में वकीलों का एक समूह चीफ जस्टिस के चैंबर के बाहर नारेबाजी करने लगा.
नारे लगा रहे वकीलों की मांग थी कि जस्टिस राकेश कुमार के खिलाफ लगाये गये तमाम प्रतिबंध हटाये जायें और उनके दिये आदेश को लागू किया जाये. भ्रष्टाचार के संबंध में उन्होंने जो आरोप लगाये हैं, उसकी जांच करायी जाये. चीफ जस्टिस ने हंगामे को तुरंत शांत कराने का आदेश दिया. साथ ही रजिस्ट्रार को आदेश दिया कि सीसीटीवी फुटेज निकाली जाये. हंगामे में शामिल लोगों की पहचान कर उनके खिलाफ अवमानना का मामला चलाया जाये. चीफ जस्टिस के इस कड़े रुख के बाद हाइकोर्ट का माहौल शांत हो गया.
जस्टिस राकेश कुमार ने अपने फैसले में क्या कहा था
1995 में चारा घोटाले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाइकोर्ट के एक सीनियर जज की पत्नी को राज्य सभा का सदस्य बनाया गया था. हाइकोर्ट में भी मौजूद भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए इसे ‘ओपन सीक्रेट’ करार दिया.
हाइकोर्ट में जज की ली जाने वाली शपथ का उल्लेख करते हुए कहा- उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस शपथ का पालन भ्रष्टाचार को रोकने में वे नहीं कर पाये और इस आधार पर वे स्वयं को जस्टिफाइ नहीं कर पा रहे हैं.
न्यायपालिका के आदर्श को बचाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि इसमें मौजूद भ्रष्टाचार पर पर्दा नहीं डाला जाये. अन्यथा पूरे समाज का विश्वास न्याय व्यवस्था से उठ जायेगा.
वर्ष 2017 और 2018 के दौरान कई आपराधिक मामलों में यह देखा गया कि बिना फैसला दिये, इन मामलों में जजमेंट को सुरक्षित रख लिया गया. इसी बीच संबंधित जज का तबादला हो गया.
यह बात सर्वविदित है कि 2017-18 के दौरान कई जजों को बंगले आवंटित हुए, बंगलों के नवीकरण के नाम पर लाखों रुपये पब्लिक फंड के खर्च किये गये.
-एक नवपदस्थापित जज तो कई महीनों तक हाइकोर्ट के गेस्ट हॉउस में ही डेरा जमाये रहे. बंगला को संवारने में लाखों रुपये खर्च किये जाते हैं. तब जज इनमें प्रवेश करते हैं.
इसी क्रम में सर्कुलर रोड स्थित बंगला नंबर-9, 2016 में एलॉट हुआ, लेकिन इसका अधिकार सितंबर 2018 में लिया गया. तीन, अणे मार्ग का बंगला भी फरवरी 2016 में एलॉट हुआ और 2017 में इसका अधिकार लिया गया. बेली रोड पर मौजूद बंगला नंबर 17 में जनता के करोड़ों रुपये खर्च हुए .
कई जज के बच्चे पटना हाइकोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं. इनमें एक जज का बच्चा अपने प्रैक्टिस के दौरान बिहार ज्यूडिशियरी एकेडमी में क्लास भी लेता था और वहां से मानदेय भी प्राप्त करता था.
n कुछ जिलों में तैनात जज पर तो 11 और इससे ज्यादा आरोप हैं, लेकिन फिर भी वे जिलों में तैनात हैं. जस्टिस राकेश कुमार ने ऐसे जजों के बकायदा नाम तक गिनाये.
वकीलों के बीच सही-गलत को लेकर होती रही बहस
जस्टिस राकेश कुमार की ओर से बुधवार को दिये गये फैसले व टिप्पणी पर गुरुवार को पूरे दिन हाइकोर्ट परिसर में चर्चा होती रही. इस मसले पर अधिवक्ताओं की अलग-अलग राय थी. कुछ गरिमा का हवाला देकर अपनी बात रख रहे थे, तो कुछ अदालतों में जड़ जमाये भ्रष्टाचार को लेकर चिंतित थे. हाइकोर्ट के इतिहास में घटी इस अप्रत्याशित घटना पर प्रभात खबर ने कुछ वरीय अधिवक्ताओं से उनकी राय जानी.
हाइकोर्ट के इतिहास में पहली घटना
जस्टिस राकेश कुमार का फैसला निजी पूर्वाग्रह से ग्रस्त लगता है. जिस मामले में 2018 में फैसला आ चुका है, उस पर अब आदेश देना वाजिब नहीं लगता . उनके ऐसे आदेश से कोर्ट की गरिमा गिरी है. हाइकोर्ट में पहली बार 11 जजों की फुल बेंच को बैठना पड़ा और उनके आदेश को सस्पेंड करना पड़ा.
– यदुवंश गिरी, वरिष्ठ अधिवक्ता
स्टिंग ऑपरेशन की जांच के निर्देश दिये थे
केपी रामय्या पर घोटाले के आरोप थे. निचली अदालत ने उन्हें जमानत दी. जस्टिस राकेश कुमार ने इसी मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि रामय्या को किन परिस्थितियों में जमानत मिली, इसकी जांच होनी चाहिए. इसके अलावा स्टिंग ऑपरेशन की सीबीआइ जांच के निर्देश दिये थे.
ललित किशोर, एडवोकेट जनरल
11 जजों की बेंच का बैठना भी ठीक नहीं
पटना हाइकोर्ट में जो कुछ हो रहा है, वह न्यायपालिका के लिए दूर्भाग्यपूर्ण है. पहले जस्टिस राकेश कुमार का आदेश और उसमें जो बातें कहीं गयीं फिर उसके जवाब में 11 जजों के बेंच के बैठने से आम लोगों में न्यायपालिका के प्रति आस्था कम होगी. इस मसले को आपस में ही बैठ कर सलटा लेना चाहिए था. वरीय वकीलों को भी इसमें शामिल किया जाता. पर, एक बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जिस प्रकार जस्टिस राकेश कुमार ने पुराने मामले को जिंदा कर तल्ख टिप्पणी की, वह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नही है.
योगेश चंद्र वर्मा
पटना : हाइ कोर्ट में कोर्ट संख्या 1, समय ठीक 10 बजे कर तीस मिनट. वकीलों की भागदौड़ पूर्व निर्धारित कोर्ट की ओर हो रही थी. अचानक मुख्य न्यायाधीश के कक्ष में एक अधिसूचना जारी हुई. उनके कक्ष संख्या 01 में ताबड़तोड़ 11 कुर्सियां लगा दी गयी. वकील जब तक कुछ समझ पाते, कोर्ट अफसर ने बताया कि जस्टिस राकेश कुमार के आदेश पर 11 जजों का स्पेशल बेंच बैठेगा. ऐसा मौका सिर्फ केशवानंद भारती के मामले में सुप्रीम कोर्ट में ही हुआ था, जिसमे लार्जर बेंच गठित किये गए थे.
इस समय तक सुनवाई के समय एकलपीठ का आदेश पटना हाइ कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड भी नहीं हुआ था. अदालत मे कुछ अखबारों को लेकर सुनवाई शुरू की गयी. सुनवाई में महाधिवक्ता ललित किशोर बुलाये गये. उनसे जस्टिस राकेश कुमार की अदालत में हुई घटना की जानकारी ली गयी.
पूछा गया क्या वे एकलपीठ के आदेश से अवगत हैं ? तब उन्होंने कहा कि आदेश अभी तक प्राप्त नहीं हो पाया है, सिर्फ अखबार में छपी खबर के आधार पर सारी जानकारी मिली है. बताया गया कि अदालत मे अपर महाधिवक्ता अंजनी कुमार, निगरानी वकील की हैसियत से मौजूद थे. महाधिवक्ता ने पूर्ण पीठ को बताया कि अखबारों जो ख़बरें छापी गयी है, वह लगभग सही ही लगती है. मुख्य न्यायाधीश श्री शाही ने कहा कि पूरी घटना बहुत ही दुखदायी है.
उन्होंने पूरी न्यायपालिका को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है. उनके आदेश की हमलोग भर्त्सना करते हैं. पीठ के समक्ष महाधिवक्ता ललित किशोर के अलावा एडवोकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश चंद्र वर्मा, वरीय अधिवक्ता यदुवंश गिरि भी मौक्जूद थे. सबने सम्मिलित रूप से स्वीकार किया कि न्यायपालिका की गरिमा को आघात पहुंचा है.

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