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पटना : एक साल में सुलह से निबटे 39415 मामले

अभियोजन निदेशालय ने मार्च 19 तक 3650 कांडों में अपराधियों को दिलायी सजा पटना : अभियोजन निदेशालय अपराधियों को सजा दिलाने के साथ-साथ सुलह कराकर मामले का निबटारा करा रहा है. एक साल में 39415 मामलों का सुलह के जरिये निस्तारण कराया गया है. 14 महीने में स्पीडी ट्रायल, अपराधियों के खिलाफ अपील, जमानत रद्द […]

अभियोजन निदेशालय ने मार्च 19 तक 3650 कांडों में अपराधियों को दिलायी सजा
पटना : अभियोजन निदेशालय अपराधियों को सजा दिलाने के साथ-साथ सुलह कराकर मामले का निबटारा करा रहा है. एक साल में 39415 मामलों का सुलह के जरिये निस्तारण कराया गया है. 14 महीने में स्पीडी ट्रायल, अपराधियों के खिलाफ अपील, जमानत रद्द आदि के 8017 मामलाें में न्यायिक दंडाधिकारी और अपर सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में पैरवी की गयी. बिहार में शराबबंदी में अब तक 102 लोगों को सजा हुई है.
अपराधियों को सजा दिलाने, अनुसंधान और अभियोजन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए जिला स्तर पर गठित समिति की मासिक रिपोर्ट की समीक्षा की जा रही है. जिन जिलों में आरोपितों की रिहाई की दर अधिक है, वहां के अभियोजन पदाधिकारियों से स्पष्टीकरण तक मांगा जा रहा है. गृह विभाग की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2018 से मार्च 2019 तक 3650 कांडों में अपराधियों को सजा दिलायी गयी है. गंभीर मामलों में 56 अपराधियों को सजा दिलायी गयी. 9428 आरोपी रिहा हो गये.
मानव व्यापार विरोधी अभियोजन मामलों में पांच लोगों को सजा दिलायी गयी. 555 बालकों, पुरुषों एवं महिलाओं को मुक्त कराया गया. एससीएसटी उत्पीड़न के केसों में 77 लाेगों को सजा हुई है. गबन करने वाले 23 अधिकारियों कर्मचारियों को भी कोर्ट से दंडित कराया गया है. अभियोजन निदेशालय ने सबसे अधिक सजा शस्त्र अधिनियम के मामलों में करायी है. जनवरी 18 से मार्च 19 के बीच 332 आरोपितों को सजा
हुई है. हाईकोर्ट में पब्लिक प्रोसेक्यूटर रहे सीनियर कौंसिल रमाकांत शर्मा का कहना है कि लोगों को जल्दी न्यायमिले इसको लेकर सरकार सतर्क है. कई स्पेशल एक्ट बनाकर अच्छी पहल की गयी है, लेकिन मामलों के शीघ्र निबटारे के लिए स्पेशल कोर्ट का अभाव और जजों के पदों की रिक्तियां भी बड़ा कारण है. अदालतें काम के बोझ से दबी हैं.
इस तरह के मामलों में हो सकती है सुलह
धार्मिक भावनाएं या अन्य किसी तरह से आहत होना, किसी व्यक्ति पर बल प्रयोग, प्रॉपर्टी की चोरी, धोखाधड़ी , मानहानि, पशु चोरी, बेदखली, घायल करना, छोटे- मोटे विवाद, पति-पत्नी के बीच का विवाद, घरेलू विवाद, महिला का अपमान होने आदि मामलों में सुलह की जा सकती है. सीआरपीसी के सेक्शन 320 में इसका प्रावधान किया गया है. करीब 57 धाराएं ऐसी हैं, जिनमें से किसी धारा में केस दर्ज होता है, तो पीड़ित को अधिकार है कि वह चाहे तो सुलह कर सकता है.

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