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बिहार : पुनपुन नदी में लोग छोड़ जाते हैं कचरा, अब बाधित हो रही धारा

पटना : पुनपुन नदी को पवित्र माना जाता है. इसके किनारे कई धार्मिक संस्कार होते हैं. खासकर गया जाने वाले हिंदू तीर्थयात्री यहां अपना सिर मुड़वाते और स्नान करते हैं. नदी में लोग पूजा-पाठ करने के बाद कचरा छोड़ जाते हैं. इस कारण नदी की धारा बाधित हो रही है. बाढ़ के समय में इसमें […]

पटना : पुनपुन नदी को पवित्र माना जाता है. इसके किनारे कई धार्मिक संस्कार होते हैं. खासकर गया जाने वाले हिंदू तीर्थयात्री यहां अपना सिर मुड़वाते और स्नान करते हैं. नदी में लोग पूजा-पाठ करने के बाद कचरा छोड़ जाते हैं. इस कारण नदी की धारा बाधित हो रही है. बाढ़ के समय में इसमें गाद की समस्या भी पैदा हो जाती है.
इस कारण नदी का पेट भर रहा है और उसके जल संचय करने की क्षमता में कमी आयी है. पुनपुन का पानी भी प्रदूषित हो रहा है. पुनपुन गंगा की एक सहायक नदी है जिसका उद्गम झारखंड में हजारीबाग पठार व पलामू के उत्तरी क्षेत्रों से होता है. एक समय में इसमें सालों भर पानी रहता था और
नावें चलती थीं. इसका अधिकांश पानी नहर के रूप में निकाल कर सिंचाई के काम में आता था. अब इस नदी में पहले जैसा पानी नहीं रहता.
खासकर गर्मी में इसमें बहुत कम पानी रह जाता है. पुनपुन नदी कुरथा में गंगा से मिलती है और पटना की पूर्वी सीमा बनाती है.
सिंचाई सुविधा
पुनपुन पर बैराज निर्माण का अधिकांश काम पूरा हो चुका है, इसके शुरू होने पर पटना और जहानाबाद जिलों के 13680 हेक्टेयर इलाके में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी
13680 हेक्टेयर इलाके में सिंचाई की योजना
सरकार इस नदी पर बैराज बनाकर इसके पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए करने की योजना पर काम कर रही है. इस योजना की शुरुआत साल 1998 में हुई थी. उस समय इस पर करीब 20 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान था लेकिन इसमें विलंब होता गया और अब इसकी लागत करीब 658 करोड़ रुपये हो चुकी है.
अब इस योजना को पूरा होने करने लक्ष्य 2018-19 रखा गया है. इसके लिए केंद्र सरकार भी करीब 46 करोड़ रुपये स्वीकृत कर चुकी है. जल संसाधन विभाग के सूत्रों का कहना है कि बैराज निर्माण का अधिकांश काम पूरा हो चुका है. इसके पूरा होने पर पटना और जहानाबाद जिले के 13680 हेक्टेयर इलाके में सिंचाई सुविधा मिलने लगेगी.
क्या कहते हैं पर्यावरणविद
पर्यावरणविदों के अनुसार पुनपुन नदी में पानी की कमी के कई कारण हैं. पहला कारण यह है कि इसका उद्गम किसी ग्लेशियर जैसी जगह से नहीं है. यह हजारीबाग व पलामू के पठारी भागों से निकलती है. उन जगहों पर पहले घने जंगल हुआ करते थे, जिस कारण वर्षा का जल वहां संचय हो जाता था और यह पानी नदी में धीरे-धीरे आता रहता था.
ऐसे में नदी में पानी का प्रवाह बना रहता था. अब जंगल खत्म हो जाने और पेड़ों की संख्या में कमी आ जाने के कारण वर्षा का जल संचय नहीं हो पाता. इस वजह से वहां का पानी इस नदी में सतत रूप से नहीं आ पा रहा. साथ ही इस नदी के रास्ते में छोटी-छोटी बरसाती नदियां भी मिलती थीं लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा.
Prabhat Khabar Digital Desk
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