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बिहार : मृत्युभोज के खिलाफ खड़ा हुआ इस स्वतंत्रता सेनानी का परिवार

जनजागरण : कृपा नारायण सिंह ने पहले पिता और फिर मां की मृत्यु के बाद नहीं कराया ब्रह्मभोज रविशंकर उपाध्याय पटना : सदियों से चली आ रही परंपराओं के खिलाफ खड़ा होना, उसे खुद ही मापदंड के रूप में पेश करना और उसके खिलाफ अभियान चलाना कोई साधारण बात नहीं है. खासकर जब जड़ जमाई […]

जनजागरण : कृपा नारायण सिंह ने पहले पिता और फिर मां की मृत्यु के बाद नहीं कराया ब्रह्मभोज
रविशंकर उपाध्याय
पटना : सदियों से चली आ रही परंपराओं के खिलाफ खड़ा होना, उसे खुद ही मापदंड के रूप में पेश करना और उसके खिलाफ अभियान चलाना कोई साधारण बात नहीं है. खासकर जब जड़ जमाई हुई
परंपरा में समाज का दखल हो और वह आस्था से भी जुड़ा हो. पटना के नौबतपुर के एक परिवार ने मृत्युभोज की परंपरा के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखाया है और अब अभियान भी चला रहे हैं. दरअसल हिंदू समाज में किसी की मौत के बाद मृत्युभोज देने की परंपरा रही है. माना जाता है कि इस भोज का पुण्य मृतक की आत्मा तक जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
परिवार का भी मिला साथ तो पड़ोसी गांव तक ले गये अभियान : इस परंपरा का विरोध आसान नहीं था, लेकिन जब परिवार का साथ मिला तो अभियान के लिए कृपा नारायण सिंह मजबूत इच्छाशक्ति के साथ जुट गये. पत्नी उमा देवी और बहू कुमारी रागिनी ने इसमें साथ दिया है.
कृपा इस अभियान के लिए हमें अपने साथ पास के ही करंजा गांव ले गये, जहां एक गरीब परिवार ब्रह्मभोज की चिंता में इन दिनों परेशान है. अरविंद पासवान के पिता का निधन एक सप्ताह पहले हो गया था.
अरविंद के पिता खेतिहर मजदूर थे. आसपास से मांग कर अरविंद ने अपने पिता का अंतिम संस्कार तो कर दिया. लेकिन अब चिंता चंद दिनों बाद होनेवाले मृत्युभोज को लेकर है. बेरोजगार अरविंद कहता है कि कर्ज लेकर भी भोज कराना हो तो वह करायेगा, क्योंकि मामला परंपरा का है.
कृपा नारायण हर रोज समय निकाल कर अरविंद के पास आते हैं. अरविंद और उसके समाज के लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि अब वक्त आ गया है, जब इस रीति-रिवाज से बाहर निकलने की जरूरत है.
कोई भी परिवार अपने सामर्थ्य के मुताबिक एक ही ब्राह्मण को भोज कराकर कर्मकांड पूरा कर सकता है. रीति के नाम पर पूरे गांव या समाज को भोज देना कोई बाध्यता नहीं है.
पंडित बद्रीनाथ तिवारी, जानकार, कर्मकांड
मृत्युभोज के नाम पर समाज की ओर से दबाव डाल कर किसी परिवार को आर्थिक परेशानियों में धकेल देना भी कोई बुद्धिमानी नहीं है. नौबतपुर की घटना और अभियान समाज में आ रहे बदलाव का सूचक है. समाज में पहले भी 13 दिनों तक चलनेवाले कार्यक्रम तीन दिनों तक सिमट गये हैं.
प्रो विनय कुमार विमल, समाजशास्त्री
यह पैसा बेटी की शिक्षा पर खर्च करने का दे रहे संदेश
नौबतपुर नगर पंचायत के अमरपुरा निवासी कृपा नारायण सिंह के परिवार ने यह भी फैसला लिया है कि मृत्युभोज जैसे कार्यक्रमों में खर्च होने वाले पैसे बेटी की पढ़ाई के लिए जमा होंगे. परिवार के मुखिया कृपा नारायण सिंह पेशे से किसान हैं. उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे.
उनकी मृत्यु के बाद नारायण परिवार ने मृत्युभोज नहीं करने का फैसला लिया. इस फैसले को लेकर इन्हें विरोध का सामना भी करना पड़ा, लेकिन अब यह परिवार मुद्दे को सामाजिक आंदोलन के रूप में बदलने में जुट गया है.
कृपा नारायण सिंह के परिवार ने मृत्युभोज के खिलाफ जनजागरण की शुरुआत की है. साथ ही इस पर खर्च होने वाले पैसे को अब यह परिवार बेटी की पढ़ाई के लिए जमा करने का संदेश भी दिया, जिसका समर्थन इस परिवार की बहू ने भी कर दिया है.

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