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क्या विपक्ष को 2019 के लिए नीतीश कुमार को अपना नेता मान लेना चाहिए?

नयी दिल्ली : नीतीश कुमार राष्ट्रपति चुनाव में अपनी पसंद सार्वजनिक करने के बादनयेसंदर्भों में चर्चा के केंद्र में हैं. इस चर्चा में एक बड़ा सवाल यह छिपा है कि क्या विपक्ष को 2019 के लिए अभी से नीतीश कुमार को अपना नेता मान लेना चाहिए?याफिरक्यानरेंद्रमोदीकेविरुद्धविपक्ष के पास नीतीश कुमार से बेहतर कोई विकल्प है […]

नयी दिल्ली : नीतीश कुमार राष्ट्रपति चुनाव में अपनी पसंद सार्वजनिक करने के बादनयेसंदर्भों में चर्चा के केंद्र में हैं. इस चर्चा में एक बड़ा सवाल यह छिपा है कि क्या विपक्ष को 2019 के लिए अभी से नीतीश कुमार को अपना नेता मान लेना चाहिए?याफिरक्यानरेंद्रमोदीकेविरुद्धविपक्ष के पास नीतीश कुमार से बेहतर कोई विकल्प है भी?यहसवालतो लंबेअरसेसेभारतीय राजनीतिमें मौजूद है और मीडिया उस पर लगातार विमर्श भी कर रहा है. लेकिन, हाल में नीतीश कुमार ने विपक्ष को जिस तरह एजेंडा सेट करने का सुझाव दिया, उसके बाद से यह सवाल अधिक प्रासंगिक हो गया है.

नीतीश कुमार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि एजेंडा किसी एक दल को नहीं बल्कि पूरे विपक्ष को तय करना होगा. नीतीश की यह बात इस मायने में अहम है कि विपक्षी दल साथ बैठते हैं, कई मौकों पर संसद व सड़क पर भी साथ होते हैं, लेकिन भाजपा व नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनमें एक गहरा तालमेल व रणनीति का अभाव दिखता है. नीतीश ने अपने बयान में महागंठबंधन की चर्चा की थी व अप्रत्यक्ष रूप से उसका उदाहरण दिया. महागंठबंधन का अपना एक नेता है और दलगत मतभेदों के बाद भी नेता के नेतृत्व पर व भाजपा के खिलाफ एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर मजबूती से टिके रहने पर कोई मतभेद या भ्रम नहीं है.

विपक्ष के पास सोनिया के अलावा सर्वमान्य नेता नहीं होने की विडंबना

राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के प्रचंड उदय के बाद विपक्ष की ताकत का उन एक-दो अवसरों पर ही अहसास हुआ, जब सीधे सोनिया गांधी सड़क पर उतरीं और खुद मोर्चा संभाला. सोनिया गांधी आज कांग्रेस अध्यक्ष हैं, लेकिन अब पार्टी के कार्यकारी फैसले वे नहीं उनके बेटे व उपाध्यक्ष राहुल गांधी ले रहे हैं. सोनिया गांधी ने एक तरह से खुद को नीतिगत फैसलों तक सीमित कर लिया है. लंबे अरसे से मीडिया मेंयह चर्चा भी है कि राहुल गांधी अध्यक्ष बनेंगे.

कांग्रेस के कई नेता भी सार्वजनिक रूप से इस संबंध में बयान देते रहते हैं. लेकिन, सबसे बड़े विपक्षी पार्टी के नेता के रूप में राहुल गांधीपूरेविपक्ष को उस तरह स्वीकार्य नहीं हैं, जिस तरहसोनियागांधी. हालके वर्षोंमेंउनके खाते में ऐसी कोई राजनीतिकउपलब्धि भी नहीं है, जिससे उनका राजनीतिक आभामंडल बनने में मदद मिले.बल्किअहममौकों पर उनका अचानक देश से बाहर चले जानाएकरिक्तता कानिर्माण ही करता रहा है. क्योंकि,इसकी बहुत औपचारिक सूचना मीडिया में नहीं होती है. सार्वजनिक जीवन में जो व्यक्ति होता है, उसकेनिजी कार्य भी सार्वजनिक चर्चा में होते हैं, अमलोग चाहते हैं कि उन्हें उसकी जानकारी हो. यह सब स्थितियां संकट की स्थिति उत्पन्न करती हैं और स्वीकार्यता की संभावना को कम करती हैं.


नीतीश कुमार में सर्वमान्य नेता बनने की कितनी संभावनाएं हैं?

विपक्ष में तीन प्रमुख राजनीतिक धड़े हैं. कांग्रेस, समाजवादी विचारधारा के दल और वाम पार्टियां. अबतक की स्थितियां यह बारंबर बताती रही हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही पूरे विपक्ष की एकमात्र सर्वमान्य नेता हैं. वामदलों का आधार सीमित हो गया है. आम जनता के साथ ही मीडिया में व्यापक रूप से चर्चा में रहने वाला कोई नेता वाम दलों में आज नजर नहीं आता, जैसी स्थिति किसी जमाने में ज्योति बसु की थी.

समाजवादी विचारधारा वाले दल में एचडी देवेगौड़ा, मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, ओमप्रकाश चौटाला, नवीन पटनायक और नीतीश कुमार प्रमुख चेहरे हैं. देवेगौड़ा पूर्व पीएम हैं और शीर्ष पद के चेहरे के रूप में उनके नाम की चर्चा नहीं है. मुलायम सिंह यादव पारिवारिक राजनीतिक मुश्किलों में हैं अौर उनके कुनबे पर कुछ आरोप भी हैं. लालू सदन के लिए हीनहीं निर्वाचित हो सकते हैं, इसलिए शीर्ष पद पर उनके नाम की चर्चा ही बेमानी है. चौटालापर भ्रष्टाचार के आरोप हैं और वे सजायाफ्ता हैं.

अब बात नवीन पटनायक व नीतीश कुमार की. 17 साल से ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन बाबू ने राष्ट्रीय राजनीति व शीर्ष पद को लेकर कभी भी अपनी महत्वाकांक्षासार्वजनिक नहीं की और वेओडिशा की राजनीति की धुरी बने होनेभर से संतुष्ट हैं. हालांकिउनकी छवि काफी अच्छी है और उन्होंनेदेश के सबसे गरीब राज्य में शामिल रहे ओडिशा की तसवीर काफी बदलीभी है. यहां एक अहम नेता की चर्चा भी आवश्यक है – ममता बनर्जी. ममता बनर्जी ऊर्जावन राजनेता हैं, लेकिन उनका तुनकमिजाज अंदाजएकदिक्कत है.

वहीं,नीतीश कुमार एकमात्र नेता हैं, जो राष्ट्रीय राजनीति के हमेशा केंद्र में रहते हैं. नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक चेहरे के रूप में उनकी मीडिया में लंबे अरसे से चर्चा होती रही है. नीतीश कुमार के बयान, स्टैंड हमेशा राजनीतिक विमर्श के केंद्र में होते हैं. नरेंद्र मोदी के फैसले का उनके द्वारा समर्थन और उनकी आलोचना दोनों मीडिया की सुर्खियां बनती हैं. उनका स्टैंड कसौटियों पर कसा होता है और वह सत्ता पक्ष या विपक्ष के खांचे में नहीं बंटा होता है. अपनी ईमानदार छवि, विपरीत परिस्थितियों में देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक बिहार की तसवीर बदलने के लिए उनके कार्यऔर शराबबंदी इन चीजों ने उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ाई है.

कुछ माह पूर्व एक प्रमुख मीडिया समूह के सर्वे में उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद देश का दूसरा सबसे लोकप्रिय नेता बताया गया और उनकी लोकप्रियता देश के कई ऐसे राज्यों में भी है, जहां भाजपा की सरकार है.

भाजपा भी खुल कर या संकेतों में उनकी तारीफ करती है. हाल में भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा कि नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमारके मन में एक-दूसरे के प्रति स्वाभाविक सम्मान है. राव ने यह भी कहा कि नीतीश कुमार ने राजद व कांग्रेस के साथ रहते हुए भी अपनी निजी छवि काे बचाकर रखा है. सुशील कुमार मोदी भी कई बार संकेतों में नीतीश की प्रशंसा करते हैं. ऐसा भी लगता है कि इसके जरिये भाजपा रणनीतिक ढंग से कांग्रेस के लिए चर्चा का स्पेस कम करती है, उसके नेताओं की संभावना सीमित करती है. और, एक क्षेत्रीय दल के एेसे सशक्त नेता का आभामंडल तैयार करती है, जिस पर विपक्ष के लिए सहमति बनाना कमसे कम मुश्किल कार्य तो है ही.

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