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28 थानाें में दफन हो रहीं जब्त 2800 गाड़ियां

अनदेखी. नीलाम की जाती तो, सरकार को मिल जाते 15 कराेड़ रुपये

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आशुतोष कुमार, नवादा कार्यालय

जिले के 28 थानाें में करीब 2800 बड़ी-छोटी गाड़ियां जब्त हैं, जो अब कबाड़ में बिकने लायक भी नहीं रह गयी हैं. आंकड़ा अधिकारिक नहीं, बल्कि अनुमानित आंकड़ा है. थानों में ये गाड़ियां उचित रख-रखाव के कारण दिनों दिन जमीन के नीचे व घास-पात के बीच दफन हो रही हैं. कई गाड़ियों के कल-पूर्जे तक गायब तक हो गये हैं. लेकिन कभी इन गाड़ियों की नीलामी के लिए थानेदार से लेकर पुलिस कप्तान तक रुचि नहीं लेते हैं. नीलामी की प्रक्रिया काफी जटिल है, इस कारण अधिकारी इससे बचते हैं. हालांकि, शुक्रवार को जिलाधिकारी के साथ बैठक मे शराब संबंधित वाहनों का आधिकारिक आंकड़ा 1190 बतायी गयी, जो नीलामी के कगार पर पहुंच गयी है. अगर इन गाड़ियाें की समय पर नीलामी हाे जाती, ताे करीब 15 कराेड़ रुपये मिल जाते. पुलिस विभाग के पास यह भी आंकड़ा नहीं है कि पिछले 20 वर्षों में किस थाने में कितनी गाड़ियां जब्त कर रखी हुई हैं. एक आकलन के मुताबिक, अगर कम से कम एक थाने में 100 गाड़ियां रखी हैं, तो 28 थानों में 2800 गाड़ियां सड़ रही हैं. इनमें 20 प्रतिशत बड़ी गाड़ियां और 80 प्रतिशत छोटी गाड़ियां हैं.

सौंदर्य के चक्कर में दफन कर दिये गये वाहन

सबसे खराब स्थिति सिरदला थाना कैंपस की है. यहां कई बड़ी गाड़ियां जमीन के नीचे दफन हैं. थाना परिसर का सौंदर्यकरण और नये निर्माण के साथ गाड़ियां भी दफन होती गयीं. बुंदेलखंड जैसे कई ऐसे थानों में, तो जब्त गाड़ियों को सड़क किनारे रखा गया है. क्योंकि, थाने में इसे रखने की जगह ही नहीं है.

ऐसे समझिए सड़ रही गाड़ियाें की कीमत

अनुमान के अनुसार, थानाें में सड़ रहीं 2800 गाड़ियाें में 20 फीसदी यानी 560 बड़ी गाड़ियां है. यदि एक गाड़ी की अनुमानित कीमत डेढ़ लाख आंकें, ताे इसकी कीमत 08 कराेड़ 40 लाख हाेती है. इसी तरह बाकी 2240 छाेटी गाड़ियाें का औसत मूल्य 30 हजार ही रखें, ताे इसकी कीमत 06 कराेड़ 72 लाख बैठती है. इस हिसाब से थानाें में 15 कराेड़ 12 लाख यानी करीब 15 कराेड़ की गाड़ियां सड़ रही हैं.

शाेरूम से पांच गुना जगह घेरी हुई हैं जब्त गाड़ियां

जब्त गाड़ियां थानाें में शहर के शाेरूम से कई गुना ज्यादा जगह घेरी हुई हैं. शहर में बाइक व टू-व्हीलर की 10 शाेरूम हैं. उनमें औसतन 30 गाड़ियां लें, ताे वहां 300 गाड़ियां रखी हैं. उसी तरह अन्य गाड़ियाें के 8 शाेरूम हैं. औसतन 10 गाड़ियां ही लें, ताे वहां 80 गाड़ियां रखी हैं. उस हिसाब से शाेरूम में 380 गाड़ियां हैं, ताे थानाें में उससे कई गुना ज्यादा 2800 गाड़ियां रखी हैं.

एनएच का अतिक्रमण कर रखीं हैं गाड़ियां

तीन कमरों में चलने वाला बुंदेलखंड थाना करीब एक हजार स्क्वायर फुट में है. इसमें 300 स्क्वायर फुट जगह बड़ी-छोटी गाड़ियों ने घेर रखा है. थाने में जगह नहीं रहने के कारण एनएच का अतिक्रमण कर सड़क किनारे गाड़ियों को रखी गयी हैं. मुफ्फसील, रोह आदि थाने का भी हाल कुछ ऐसा ही है. हालांकि सिरदला थाने में गाड़ियों को रखने की पर्याप्त जगह है.

जब्त गाड़ियों का आंकड़ा जुटाने की हुई थी कोशिश

गत वर्ष एसपी हरि प्रसाथ एस की पहल पर जिलेभर के थानाें में जब्त की गई बड़ी-छोटी गाड़ियों का समग्र आंकड़ा बनाने की कोशिश हुई थी. लेकिन, पुराने रिकॉर्ड अपडेट नहीं रहने के कारण यह पूरा नहीं हो पाया था. फिर से सभी थानेदार को आंकड़ा जुटाने का निर्देश एसएसपी ने दिया है.

कोर्ट के आदेश के बाद शुरू होती है नीलामी की प्रक्रिया

जब्त वाहनों को धारा 102 के तहत पुलिस रिकॉर्ड में रखती है. नीलामी की शर्ते अलग-अलग केसों में अलग-अलग होती हैं. नीलामी योग्य वाहनों की सूची केस नंबर के साथ लिखकर थाने की ओर से कोर्ट में आवेदन दिया जाता है. फिर कोर्ट आदेश देता है. तब एसडीओ के नेतृत्व में कमेटी बनती है, जो नीलामी की प्रक्रिया शुरू करती है. ज्यादातर गाड़ियां दुर्घटना के मामले में जब्त हैं. कुछ गाड़ियां हत्या, लूट, डकैती और अन्य तरह के प्रॉपर्टी ऑफेंस में प्रयुक्त होने के कारण जब्त हैं.

दुर्घटनाग्रस्त वाहन ही सर्वाधिक

थानों में जब्त अधिकांश वाहनों में दुर्घटना करने वाले होते हैं. सामान्य दुर्घटनाओं में तो वाहन मालिक उन वाहनों की जमानत करा लेते हैं लेकिन, जब किसी वाहन से बड़ी दुर्घटना हो जाती है, तो उनमें जमानत प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है. कई वाहनों के पूर्ण दस्तावेज नहीं होने पर भी मालिक उन्हें छुड़ा नहीं पाते हैं. वहीं, जिन वाहनों से बड़ी दुर्घटनाएं हुई या जिनमें परिवार के कई लोगों की मौत हो जाती है. ऐसे वाहनों को भी पीड़ितों के परिवार लेकर ही नहीं जाते हैं. उन वाहनों को भी पुलिस को दुर्घटनास्थल से उठाकर थाना में लाना पड़ता है. ऐसे वाहनों में कार, ऑटो व बाइक व ट्रक इत्यादि शामिल है.

इन वजहों से थानाें में सड़ रही हैं गाड़ियां

1. मालखाना प्रभार की प्रक्रिया जटिल, सालों लग जाते हैंमालखाना का प्रभार लेने या देने की प्रक्रिया काफी जटिल है. इसे पूरे होने में वर्षों लग जाते हैं और थानेदार बदल कर चले भी जाते हैं. थाना का मालखाना जहां जप्त की गयी प्रदर्श को रखा जाता है. थाना मालखाना का अंकेक्षण नहीं होने से जप्त प्रदर्श का सही ब्योरा उपलब्ध होने की भी गारंटी नही है. हालांकि, थाना का कुछ भाग ऐसा है जो आम नहीं है. जिसमें थाना का सिरिस्ता, हाजत और मालखाना मुख्य रूप से शामिल हैं. मालखाना की जटिल प्रक्रिया की वजह से कोई इसका प्रभार लेना नही चाहता है. इसके कारण कई दारोगा, थानेदार मालखाना का प्रभार लेने और देने में सस्पेंड भी हो चुके हैं.

2. केस में महीनों बाद जारी होता है रिलीज ऑर्डर : आपराधिक या दुर्घटना के मामले में जब्त गाड़ियों के केस को सुलझाने में महीना और साल भी लग जाता है. जब तक केस सुलझ नहीं जाता है, तब तक उससे संबंधित गाड़ी को सबूत के तौर पर रखा जाता है. जांच पूरी होने के बाद ही गाड़ियां रिलीज होती हैं.

3. नीलामी में रुचि नहीं लेते अफसर : शराब मामलों को छोड़ अन्य मामलों मे जब्त गाड़ियों की नीलामी में थानेदार से लेकर एसपी तक रुचि नहीं लेते हैं. खास कर लावारिस, दुर्घटना, चोरी, डकैती, छीनतई तथा प्रतिबंधित वस्तु जैसे गांजा, अफीम आदि मामलों मे जब्त वाहनों के मामले में उदासिनता साफ दिखाई पड़ती है. जिले में पिछले कई वर्षों से थानों में जब्त शराब मामलों को छोड़ गाड़ियों की नीलामी नहीं हुई है. प्रकिया इतनी जटिल होती है कि अधिकारी किसी पचड़े में पड़ना नहीं चाहते हैं.

क्या कहते हैं अधिकारी162 वाहनों की नीलामी प्रक्रिया पूर्ण कर ली गयी है. वहीं, 417 वाहनों की मूल्यांकन मोटर यान निरीक्षक के यहां लंबित है. नीलामी की प्रक्रिया के पूर्व राजसात और वाहन अधिहरण के बाद वाहन स्वामी को 90 दिनों का समयावधी दी जाती है, ताकि वे अपील कर सके. आने वाली मई माह के 15 से 20 तारीख तक 162 वाहनों की नीलामी की जायेगी. डीएम साहब के द्वारा दिये निर्देश का अनुपालन किया जा रहा है.

अरुण कुमार मिश्र, उत्पाद अधीक्षक

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