बिहारशरीफ: नहीं बुझ पा रही कर्मियों,चिकित्सकों व मरीजों की प्यास.हलक तर करने के लिए रोज बहाना पड़ रहा पसीना. पेयजल के लिए हर दिन भटकना पड़ रहा इधर से उधर. जाड़े का मौसम हो या जेठ की तपिश. यह समस्या बराबर बनी है. यह हाल कहीं और देखने को नहीं बल्कि सदर अस्पताल में संचालित जिला यक्ष्मा केंद्र में वर्षों से मिल रहा है. यहां के कर्मी प्यास बुझाने के लिए हिरण्य की तरह दौड़ लगाते हैं .
यानी की इधर -उधर भटकते हैं. जिला यक्ष्मा केंद्र में प्रतिदिन जिले के विभिन्न भागों से टीबी बीमारी का इलाज कराने के लिए पीडि़त मरीज रोज आते हैं. लेकिन जब इस जेठ की तपिश में प्यास बुझाने की जरूरत पड़ती है तो इसकी व्यवस्था जिला यक्ष्मा केंद्र में नहीं होने से खासे फजीहत का सामना करना पड़ता है.
केंद्र में कार्यरत कर्मियों की होती है रोज फजीहत: मरीजों को तो फजीहत उठानी पड़ती ही है . इससे कम तकलीफ जिला यक्ष्मा केंद्र में पदस्थापित व कार्यरत कर्मियों को भी नहीं उठानी पड़ती है. यानी की उन्हें भी प्यास बुझाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. कर्मी लोग या तो अपने घरों व डेरों से बोतल में पानी भरकर लाते हैं या सदर अस्पताल परिसर में लगे चापाकलों से हलक तर करने के लिए पानी लाते हैं. जेठ की इस बढ़ती तपिश में बोतल का पानी कम पड़ जा रहा है.
पेयजल के लिए भटकना पड़ रहा इधर-उधर
मरीजों को दवा खाने में होती है दिक्कत
यक्ष्मा विभाग के नियमानुसार टीबी के मरीजों को पहला डोज चिकित्सक को अपनी देखरेख में खिलानी पड़ती है.लेकिन पेयजल की व्यवस्था नहीं होने से पहला डोज खाने में दिक्कत होती है. लोग पहला डोज दवा खाने के पहले पानी लाने के लिए सदर अस्पताल परिसर में दौड़ लगानी पड़ती है.इतना ही नहीं केंद्र के प्रयोगशाला में भी पानी की जरूरत पड़ती है. प्रयोगशाला में स्लाइन को साफ करने लिए पानी की अति आवश्यकता होती है. प्रयोगशाला में पानी की व्यवस्था नहीं रहने से तकनीशियन को स्लाइन साफ करने के लिए पहले ही पानी की जुगाड़ करना पड़ रहा है.जिला यक्ष्मा केंद्र में जिला यक्ष्मा पदाधिकारी समेत करीब एक दर्जन कर्मी पदस्थापित हैं. केंद्र में टीबी के मरीजों को आधुनिक तरीके से व बेहतर चिकित्सा सेवा व जांच की व्यवस्था है. इसके लिए सीबी नेट मशीन लगी है. इस मशीन से बलगम की जांच कुछ ही मिनटों में हो जाती है. जांच रिपोर्ट मरीजों को उपलब्ध हो जाती है.