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ह्नेनसांग के बिना इतिहास अधूरा

भारत-चीन के सांस्कृतिक राजदूत थे ह्वेनसांग नालंदा : ह्वेनसांग भारत-चीन मैत्री के प्रतीक है. उनके बिना भारतीय इतिहास अधूरा है. उन्होंने ही भारतीय इतिहास को उजागर किया है. वे भारत और चीन के सांस्कृतिक राजदूत अलावा बौद्ध धर्म के संदेश वाहक थे. ह्वेनसांग अपने साथ भारत से संस्कृत के 657 सूत चीन बौद्ध यात्री ह्वेनसांग […]

भारत-चीन के सांस्कृतिक राजदूत थे ह्वेनसांग

नालंदा : ह्वेनसांग भारत-चीन मैत्री के प्रतीक है. उनके बिना भारतीय इतिहास अधूरा है. उन्होंने ही भारतीय इतिहास को उजागर किया है. वे भारत और चीन के सांस्कृतिक राजदूत अलावा बौद्ध धर्म के संदेश वाहक थे. ह्वेनसांग अपने साथ भारत से संस्कृत के 657 सूत चीन बौद्ध यात्री ह्वेनसांग की 1352 वां परिनिर्वाण दिवस के मौके पर वक्ताओं ने शनिवार को यह कहा. नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में चीन के बौद्ध भिक्षु जी जींग ने कहा कि नालंदा चीन के दिल में है. ह्वेनसांग का व्यक्तित्व इतना बड़ा था कि उनके लिए हीनयान,महायान और बज्रयान में कोई भेद नहीं था.
उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल में बौद्ध विद्या की पढ़ाई हो. भिक्षु जींग ने कहा कि चीन के बहुत कम लोगों को मालूम हैं कि बौद्ध धर्म नालंंदा से चीन गया था. वे चीन लौट कर इस बात को बतायेंगे. मगध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मो इस्तिहाक ने कहा कि नालंदा में विश्व का सबसे पुराना विश्वविद्यालय था. बुद्ध और बौद्ध विद्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यहां पालि के अलावा अन्य विद्याओं की भी पढ़ाई होती थी.
उन्होंने कहा कि नालंदा बुद्ध की धरती है. यह केवल अध्ययन,अध्यात्म के लिए नहीं बल्कि विपश्यना के लिए भी लब्ध प्रतिष्ठित था. नव नालंदा महाविहार के निदेशक डाॅ आर पंथ ने आगत अतिथियों को स्वागत करते हुए महाविहार की उपलब्धियों को गिनाया. ह्वेनसांग के जीवन दर्शन और व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि नालंदा आरंभ से ही बौद्ध विद्या का प्रमुख केंद्र रहा है. महाविहार ही प्रचार नालंदा विश्वविद्यालय का असली उतराधिकारी है. ह्वेनसांग भारत चीन के सांस्कृतिक दूत थे. महाविहार के रजिस्टार डाॅ सुनील प्रसाद सिन्हा ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि 1958 ई. में चीन के प्रधानमंत्री चाउ-एन-लाई नालंदा आये थे. उनके और भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रयास से नालंदा में ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल का निर्माण कराया गया है. भारत से ह्वेनसांग बड़ी संख्या में संस्कृत की पुस्तक ले गये. जिसका उन्होंने चीनी भाषा में अनुवाद किया. उन्होंने कहा कि वहीं पुस्तकें आज चीन से भारत आ रही है,जो चीनी भाषा में आती है.
समारोह का शुरुआत बौद्ध भिक्षुओं के मंगलपाठ से हुआ. इस अवसर पर चीन के बौद्ध भिक्षु सी-ची-पाव,विपश्यनाचार्य एसएस तापडि़या,डॉ श्रीकांत सिंह,प्रो कुंडला,प्रो पुरुषोत्तम सिंह राणा,दीपक कुमार,सिंग-गा एवं अन्य मौजूद थे. चीन से आये सदस्यों ने ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल में लगायी गयी प्रदर्शनी को देख काफी खुश हुए. यह प्रदर्शनी ह्वेनसांग के जीवन पर आधारित था. प्रदर्शनी में चीन से भारत आने और भारत से चीन जाने का वर्णन किया गया था. इस प्रदर्शनी के लगाने में डा. दीपक आनंद को बड़ा योगदान रहा है.
चीन से आये बौद्ध भिक्षुओं,नन और उपासकों ने चीनी विद्वान,ह्वेनसांग की प्रतिमा के पास बैठ कर पूजा अर्चना की. नालंदा प्रवास के दौरान उनके कृत्यों के जान वे काफी प्रभावित हुए. उन लोगों ने इच्छा की वे यहां बार बार आयेंगे. यह धरती शांति और सकून की है.
यहां से प्रेरणा की ध्वनि प्रवाहित होती है.
स्मृति चिह्न देकर किया सम्मानित:
नव नालंदा महाविहार के निदेशक ने चीनी बौद्ध भिक्षुओं, मगध विश्वविद्यालय के कुलपति को नालंदा का प्रतिक चिह्न और अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया. इसी प्रकार चीनी प्रतिनिधियों ने महाविहार के अधिकारियों और अतिथियों को भगवान बुद्ध की प्रतिमा भेंट की.

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