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पर्व-लग्न पर टिका सूप-टोकरी का व्यवसाय
बिहारशरीफ : स्थानीय कटरा पर मोहल्ले का पूर्वी भाग खंचिया गली के नाम से प्रसिद्ध है. इस मोहल्ले में बांस के बने सूप, टोकरी, रस्सी, पत्तल, प्लास्टिक ग्लास, कॉफी कप आदि के कई थोक विक्रेता हैं. जिलेवासी लगभग 50-60 वर्षों से इन वस्तुओं की खरीदारी करने इसी मंडी में आते हैं. हालांकि मंडी के व्यवसायी […]
बिहारशरीफ : स्थानीय कटरा पर मोहल्ले का पूर्वी भाग खंचिया गली के नाम से प्रसिद्ध है. इस मोहल्ले में बांस के बने सूप, टोकरी, रस्सी, पत्तल, प्लास्टिक ग्लास, कॉफी कप आदि के कई थोक विक्रेता हैं. जिलेवासी लगभग 50-60 वर्षों से इन वस्तुओं की खरीदारी करने इसी मंडी में आते हैं.
हालांकि मंडी के व्यवसायी अब अपने इस कारोबार से संतुष्ट नहीं हैं. कई पुराने व्यवसायियों के तीसरी और चौथी पीढ़ी के उत्तराधिकारी अभी तक कारोबार के दिन बहुरने के इंतजार में जैसे-तैसे कारोबार संभाल रहे हैं.
कारोबार में मंदी आने के पीछे वे प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं को मान रहे हैं. अब बांस के बने सूप तथा टोकरीकी जगह प्लास्टिक के सूप तथा टोकरी ने ले ली है. प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं के सड़ने-गलने का भी भय नहीं है. उठाने में हल्की तथा अधिक मजबूती के कारण प्लास्टिक निर्मित सूप, टोकरी, पंखे, रस्सी आदि को ही लोग प्राथमिकता देने लगे हैं. इससे इस व्यवसाय में भारी मंदी का दौर चल रहा है.
व्यवसायी बताते हैं कि बांस के सूप और टोकरी आदि का उपयोग अब लोग सिर्फ धार्मिक कार्यों में ही करते हैं, जबकि सामान आदि रखने तथा ढोने के लिए प्लास्टिक निर्मित सूप-टोकरी रखते हैं. कभी आलू कोल्ड स्टोरेज तथा बाजार समिति के साथ-साथ जिले के किसानों द्वारा भारी संख्या में टोकरी खरीदी जाती थी, अब प्लास्टिक टब से ही काम चलाया जा रहा है. इससे बिक्री में भारी गिरावट आयी है. लोग धीरे-धीरे इस व्यवसाय से हटते जा रहे हैं.
बाजार में नहीं रहा दम, नहीं होता मुनाफा भी
जिले में कहीं भी बड़े पैमाने पर सूप और टोकरी आदि नहीं बनती हैं. पूर्व में बाढ़ से भी सूप और टोकरियां मंगायी जाती थी. अब व्यवसायी पूरी तरह से झारखंड निर्मित सूप और टोकरियों पर निर्भर हो गये हैं. कई व्यवसायियों ने बताया कि झारखंड के चतरा, हजारीबाग, गिरिडीह सहित रजौली आदि क्षेत्रों में भी नक्सलियों के भय से काम करने वालों का पलायन होने लगा है.
पूर्व में कई गांवों में अदिवासी परिवारों द्वारा बड़े पैमाने पर टोकरी का निर्माण किया जाता था. कम निर्माण होने से अब यह महंगा भी होता जा रहा है. अब मुनाफा भी कम होने लगा है.
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