वरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर
नगर निगम में प्रशासनिक शून्यता के कारण नये साल का उत्साह फीका पड़ता जा रहा है. पिछले 15 दिनों से नगर आयुक्त का पद रिक्त होने से निगम की पूरी व्यवस्था पटरी से उतर गई है. इसका सीधा असर डेढ़ हजार से अधिक कर्मियों के वेतन और पेंशनरों की पेंशन पर पड़ने वाला है. अगर समय रहते सरकार ने वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की, तो नए साल में शहर की सफाई व्यवस्था भी ठप हो सकती है. निवर्तमान नगर आयुक्त विक्रम विरकर के शिक्षा विभाग में तबादले के बाद से अब तक मुजफ्फरपुर को नया नगर आयुक्त नहीं मिला है. वर्तमान में उप नगर आयुक्त अमित कुमार प्रभारी के तौर पर केवल रूटीन कार्यों का निष्पादन कर रहे हैं. उनके पास वित्तीय शक्तियां नहीं होने के कारण किसी भी बड़े भुगतान पर रोक लगी हुई है. दिसंबर का महीना बीतने को है, लेकिन वेतन और पेंशन की फाइलें टेबल पर ही अटकी पड़ी हैं.बता दें कि नगर निगम में वेतन और डीजल जैसे महत्वपूर्ण भुगतानों के लिए नगर आयुक्त के डिजिटल सिग्नेचर और वित्तीय मंजूरी अनिवार्य है. जब तक सरकार किसी स्थायी आयुक्त की नियुक्ति नहीं करती या उप नगर आयुक्त को वित्तीय पावर नहीं सौंपती, तब तक यह गतिरोध बना रहेगा.
रुकेंगे सफाई वाहनों के पहिए, होगी परेशानी
नगर निगम के सामने सबसे बड़ी चुनौती सफाई व्यवस्था को बरकरार रखने की है. शहर की गंदगी उठाने वाले वाहनों में रोजाना दो लाख रुपये से अधिक का ईंधन खर्च होता है. लंबे समय से भुगतान बकाया होने के कारण पेट्रोल पंप संचालकों ने नए साल से उधार तेल देने से साफ मना कर दिया है. यदि तेल की आपूर्ति रुकी, तो पूरे शहर में कचरे का अंबार लग सकता है. बता दें कि 15 सौ से अधिक कर्मचारी हैं, जो इन दिनों स्थायी और अस्थायी रूप में काम कर रहे हैं.
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