मधुबनी. जब कोई ””दार्शनिक चिंतन”” रेखा बनकर कैनवास पर उतर आए और एक आकर्षक चित्र बन जाए तो यह निश्चित रूप से गोदावरी दत्त की पेंटिंग होगी. ये बातें गुरुवार को पंडौल प्रखंड के सरहद ग्राम स्थित जटाशंकर दास स्मृति भवन में लोकहित रंगपीठ सेवा संस्थान, मधुबनी की ओर से संचालित मिथिला चित्रकला प्रशिक्षण केंद्र में शिल्पगुरु पद्मश्री गोदावरी दत्त की प्रथम पुण्यतिथि पर संस्था के सचिव प्रो. महेंद्र लाल कर्ण ने उनके चित्र पर माल्यार्पण करने के बाद कही.
उन्होंने कहा कि चित्र बनाने से पहले चिंतन करने वाली वह कोई इकलौती कलाकार नहीं थीं. सामान्य रूप से हर चित्रकार चित्र बनाने से पहले मन-ही-मन उसकी परिकल्पना कर लेता है. फिर अपनी उस परिकल्पना को रंगों के माध्यम से कैनवास पर उतार देता है. गोदावरी दत्त भी चित्र बनाने से पहले सोचती थीं, लेकिन उनकी सोच सिर्फ परिकल्पना तक सीमित नहीं होती थी. इससे ऊपर उठकर चिंतन से शुरू होती थी. इसलिए उनके चित्रों में एक दार्शनिक चिंतन की झलक दिखती है. उनका चित्र ””त्रिशूल”” उनके दार्शनिक विचारों की अभिव्यक्ति का चरम बिंदु कहा जा सकता है. यह दार्शनिक चिंतन कमोबेश उनके हर चित्र में दिखता है. प्रथम पुण्यतिथि पर प्रशिक्षक रूपा कुमारी, नितिन रावत, जद यू नेता अनिल कुमार दास के अलावे प्रशिक्षण प्राप्त कर रही अंजली कुमारी, नीलू, सोनी, शिवानी, खुशी, आकृति झा, ज्योति झा,सौम्या झा, मनीषा झा, साक्षी, शिवांगी झा ने भी नमन किया.
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