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नेपथ्य में खड़ा है मैथिली रंगमंच
मधुबनी : मैथिली भाषा के उत्थान के लिए विभिन्न स्तर पर प्रयास होता रहा है, लेकिन लोगों ने मैथिली भाषा को बढ़ावा देने वाले सबसे सशक्त माध्यमों में से एक मैथिली रंगमंच नेपथ्य (परदे के पीछे) पर खड़ा है. कभी इस रंगमंच की तूती मिथिलांचल में बजा करती थी, लेकिन आज स्थिति यह है कि […]
मधुबनी : मैथिली भाषा के उत्थान के लिए विभिन्न स्तर पर प्रयास होता रहा है, लेकिन लोगों ने मैथिली भाषा को बढ़ावा देने वाले सबसे सशक्त माध्यमों में से एक मैथिली रंगमंच नेपथ्य (परदे के पीछे) पर खड़ा है. कभी इस रंगमंच की तूती मिथिलांचल में बजा करती थी,
लेकिन आज स्थिति यह है कि युवा वर्ग को तो इस रंगमंच की जानकारी तक नहीं है. जबकि बुजुर्ग भी अपने बच्चों को इस रंगमंच को जीवित रखने की प्रेरणा या उसे बढ़ावा देने के लिए कोई पहल नहीं कर रहे हैं. हर घर में मनोरंजन के आधुनिक संसाधनों के बीच यह परंपरा गुम सी हो गयी है. इस कारण मैथिली रंगकर्मी आज अपनों के बीच ही खो गये हैं.
गौरवशाली रहा है इतिहास
ऐसा नहीं कि मैथिली रंगमंच हमेशा से गुमनामी के अंधेरे में रहा हो. इसका इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. जिले के सात रंगकर्मियों को कभी रंगकर्म में प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय प्रतिभा छात्रवृत्ति भी मिल चुकी है. कहा जाता है कि दरभंगा महाराजा को मैथिली नाटक से काफी लगाव था. उन्होंने मैथिली नाटक को काफी प्रोत्साहित किया. कालांतर में धीरे-धीरे मैथिली नाटक से लोगों का लगाव कम होता गया. इसका जीवंत उदाहरण है शहर का नाट्य मंच. इसके निर्माण के बाद से आज तक इस मंच पर एक भी नाटक का मंचन नहीं किया गया है.
रंगकर्मियों का पलायन
मैथिली रंगमंच लोगों के मनोरंजन का साधन जरूर बना, लेकिन यह कभी भी लोगों के जीविकोपार्जन का साधन नहीं बन सका. यही कारण है कि कोई भी अभिभावक यह नहीं चाहते थे कि उनके परिवार को कोई भी सदस्य मैथिली रंगमंच की ओर जाये. धीरे-धीरे कलाकारों का पलायन रोजी रोटी की तलाश में अन्य प्रदेशों में होने लगा.
बिजुलिया भौजी ने रचा था इतिहास
जिले में मैथिली नुक्कड़ नाटक बिजुलिया भौजी काफी लोकप्रिय हुई. 50 से अधिक बार इस नुक्कड़ नाटक का मंचन किया गया, लेकिन न जाने किसकी नजर इस नुक्कड़ नाटक को लगी कि लोग बिजुलिया भौजी को भूल गये. इसके साथ ही जिले में ओरिजिनल काम, दूल्हा पागल भ गेलै, हमरो से साम भैया, गोरखधंधा, एक छल राजा, जुआयल कनकनी, कनिया पुतरा, पारिजात हरण, काठक लोग सहित कई अन्य मैथिली नाटक काफी लोकप्रिय हुआ.
आस बरकरार
मैथिली रंगकर्मी महेंद्र मलंगिया को अब भी मैथिली रंगमंच के जीवंत होने की आस बरकरार है. बताते हैं कि अभी भी इस जिले में कई रंगकर्मी हैं जो इस जिले में मैथिली नाटक को नयी ऊंचाई प्रदान कर सकते हैं. इनका मानना है कि वह दिन दूर नहीं जब जिले के गांव में फिर से मैथिली नाटक का मंचन होगा.
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