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सरकार के नल जल योजना हो रही है विफल,आयरन युक्त पानी पीने को अब भी विवश है लोग

उदाकिशुनगंज के लोग धीमा जहर पीने को विवश

उदाकिशुनगंज,

सात निश्चय योजना में सबसे महत्वपूर्ण हर घर नल का शुद्ध जल उपलब्ध कराना सरकार का एक सपना था. लेकिन संबंधित अधिकारी एवं ठेकेदार ने सात निश्चय योजना पर पानी फेर दिया है. उदाकिशुनगंज प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत कई गांवों में नल-जल योजना के तहत लगाए गए टोटी सफेद हाथी की तरह मुंह बाएं खड़ी है. जबकि उदाकिशुनगंज प्रखंड क्षेत्र के अधिकतर जगहों पर पीने योग्य पानी नही हैं. भूगर्भ जल में खतरनाक रसायनों की अधिकता से पानी मीठा जहर हो गया है. यहां के पानी में आर्सेनिक,फ्लोराईड एवं आयरण की मात्रा खतरनाक स्तर को पार कर चुकी है. लिहाजा उदाकिशुनगंज के लोग धीमा जहर पीने को विवश. स्वच्छ जल के अभाव में अत्यधिक मात्रा वाले आयरन युक्त पानी पीने से तरह-तरह की बीमारियों से लोग ग्रसित हो रहे हैं और समय से पूर्व असमय ही काल कलवित हो रहे हैं. मालूम हो कि प्रखंड के कुछ पंचायतों के वार्डों में काम पूर्ण किये गए नल जल योजना बनने के साथ ही बेकार हो गई है, तो कई अब तक बनी ही नहीं उसमें भी कुछ बनी योजना आधी अधूरी छोड़कर ठिकेदार फरार है. इससे जाहिर होता है कि सात निश्चय योजना की महत्वपूर्ण और जनपयोगी ””””हर घर नल का जल”””” देने की योजना विभाग की लापरवाही और ठेकेदारो की मनमानी से लोगों को पानी देने में विफल है. इससे जाहिर होता है कि सात निश्चय योजना की महत्वपूर्ण और जनपयोगी ””””हर घर नल का जल”””” देने की योजना विभाग की लापरवाही और ठेकेदारो की मनमानी से लोगों को पानी देने में विफल है.

– पानी का क्या है श्रोत –

औसतन पांच पीपीएम आयरन होने के कारण जल अनुसंणानकत्र्ताओं की नजर में मधेपुरा जिला अत्यधिक लौहयुकत जलीय इलाके के रूप में चिन्हित है. यही कारण है कि आम लोगों को शुद्ध पेयजल मिले इसके लिए कई योजनाए भी चलाई गयी. बताया जाता है कि वर्षो पूर्व यहां अमृत पेयजल योजना आई जो धरातल पर उतरते ही टाय-टाय फिस्स हो गया. जबकि यहां के लोग मुख्यतः चापाकल एवं कुआं को पेयजल स्त्रोत के रूप में उपयोग करते हैं. भूमिगत जल स्त्रोत की गहराई बढ़ जाने के कारण जल में घुले लौह की मात्रा में भी वृद्धि हुई है जो मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.

– 20 फीट पर मिलता है पानी –

पूर्णिया,भागलपुर एवं खगड़िया एवं सहरसा जिला के बीच सीमा पर अवस्थित मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज प्रखंड समेत सीमावर्ती इलाकों में अमूमन 20 से 25 फीट की गहराई से पानी निकलने लगता है. बकोल विशेषज्ञ भूमिगत जल स्त्रोत की अपेक्षा सतही जल में आयरन की मात्रा कम होती है. लेकिन सतही जल में वैक्टीरिया की मात्रा अत्यधिक होने के कारण यह स्वास्थ्य के लिए और भी घातक समझा जाता है. शुद्ध एवं कम मात्रा वाले आयरन युक्त जल की तलाश में जितनी गहराई तक खोदा जाता है,आयरन की मात्रा बढ़ती ही जाती है.

– स्वाद एवं गुण में फर्क –

आयरन युक्त पानी का स्वाद नैसर्गिक पानी से भिन्न होता है. लौह युक्त जल में बदबू होता है. इस पानी से बनी चाय का रंग काला जबकि पके चावल का रंग भूरा हो जाता है. उजले कपड़े को इस पानी में धोने से कपड़ा मटमैला अथवा पीला होने लगता है. आयरन युक्त जल से भरा रहने वाला बाल्टी,जग,लोटा या डब्बा पीला पड़ने लगता है. इस पानी के उपयोग से मनुष्य का दांत भी काला पड़ने लगता है.

– इन बीमारियों का है खतरा –

आर्सेनिक से त्वचा रोग सहित कैंसर होने का खतरा रहता है. कमजोरी, उम्र से बुढ़ापा, कब्ज, अतिसार, रक्तचाप जैसी बीमारियां शुरू हो जाती है. इसके बाद कब्ज, धड़कन एवं अन्य बीमारियां भी धीरे-धीरे घर करने लगती है. पानी में फ्लोराइड की मात्रा 5.92 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई है. तबकि उपयोग के लिए अधिकतम सीमा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है. आर्सेनिक की मात्रा पांच मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई है. जबकि उपयोग के लिए 0.01 मिलीग्राम अधिकतम सीमा 0.05 मिलीग्राम प्रति लीटर निर्धारित है. इस तरह आयरन की मात्रा 3 मिलीग्राम प्रति लीटर निर्धारित है किन्तु यहां इसकी मात्रा भी अधिक है.

– क्या कहते हैं चिकित्सक –

प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ अंकित सौरभ कहते हैं कि अत्यधिक मात्रा वाले आयरन युक्त जल के उपयोग से हीमोग्लोबिन की संभावना भी बढ़ जाती है. निश्चित मात्रा में आयरन के जल में घुला रहना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है. प्रत्येक वयस्क महिला एवं पुरूष को प्रतिदिन 10 मीलीग्राम आयरन की आवश्यकता होती है जो भोजन के विभिन्न पोषक तत्वों से प्राप्त हो जाता है. शरीर को आवश्यक आयरन की मात्रा पांच प्रतिशत ही जल के माध्यम से होना चाहिए. बकौल चिकित्सक आयरन की मात्रा अधिक होने से भोजन के पाचन में दिक्कत होती है. शरीर द्वारा अवशोषित आयरन का 70 प्रतिशत खून बनाने में मदद करता है.

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