मधेपुरा. मोबाइल की लत बच्चों के लिए एक गंभीर खतरा बनती जा रही है. कई मनोचिकित्सकों के सामने ऐसे मामले आ रहे हैं, जहां बच्चे मोबाइल एडिक्शन के शिकार होकर हिंसक हो रहे हैं और मोबाइल न मिलने पर खाना-पीना छोड़ने तक की धमकी दे रहे हैं. स्कूल से घर आते ही तुरंत मोबाइल में लग जाने की यह आदत अब एक चिंताजनक लत में बदल चुकी है. अभिभावकों की चिंता बढ़ रही है और मनोचिकित्सकों कहना है कि स्कूलों को भी बच्चों को मोबाइल से दूर रहने की शिक्षा देनी चाहिए. वे बताते हैं कि मोबाइल की लत के कारण बच्चों में तनाव और अत्यधिक गुस्सा देखा जा रहा है. ये बच्चे मोबाइल की जिद करते हैं और न मिलने पर गाली देना, मारपीट करना और यहां तक कि खुद को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं चुकते है. कई बच्चों का इलाज चल रहा है, जो पिछले दो-तीन साल से सात से आठ घंटे मोबाइल पर बिता रहे हैं. टीनएज बच्चे हैं ज्यादा प्रभावित मनोचिकित्सक के अनुसार, अभिभावक अक्सर तब आते हैं जब कोई अप्रिय घटना घट जाती है. मोबाइल एडिक्शन के कारण आक्रामक व्यवहार दिखाने वाले बच्चों में टीनएजर्स की संख्या सबसे ज्यादा है, जो 8 से 10 घंटे मोबाइल पर बिताते हैं. मनोचिकित्सक कहना है कि यह अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि वे घर में नियम बनाकर इस स्थिति को आने से रोकें. दिन भर गेम खेलना या वीडियो देखना बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सतर्क चिड़चिड़ापन और बात-बात पर गुस्सा करना मोबाइल देखते समय बाकी सब कुछ भूल जाना पढ़ाई पर असर पड़ना अचानक से शांत हो जाना या गुमसुम रहना मोबाइल न मिलने पर बेचैनी महसूस करना मोबाइल की लत को ऐसे करें दूर घर में अनुशासन बनाये रखें: मोबाइल के उपयोग के लिए स्पष्ट नियम और सीमाएं तय करें. माता-पिता खुद बनें आदर्श: बच्चों के सामने खुद भी कम से कम मोबाइल का इस्तेमाल करें. समय निश्चित करें: बच्चों के मोबाइल देखने का एक निश्चित समय तय करें. निगरानी रखें: इस बात पर ध्यान दें कि वे मोबाइल पर क्या देख रहे हैं (कंटेंट की जांच).
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