आदि शंकराचार्य का जीवन व दर्शन विषय पर परिचर्चा आयोजित मधेपुरा. ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय मधेपुरा के स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग में आदि शंकराचार्य जयंती सह भारतीय दार्शनिक दिवस पर शंकराचार्य का जीवन व दर्शन विषयक परिचर्चा का आयोजन किया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि सह मुख्य वक्ता बीएनएमयू के पूर्व कुलपति प्रो ज्ञानंजय द्विवेदी ने बताया कि अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रतिपादक महान दार्शनिक आदि शंकराचार्य को विश्व-गुरु के रूप में जाना जाता है. वह भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण के प्रमुख स्तंभ थे. उन्होंने भारत के विभिन्न संप्रदायों को एकीकृत किया. उन्होंने बताया कि आदि शंकराचार्य ने भारतीय दर्शन को समृद्ध किया और अद्वैत वेदांत दर्शन को स्थापित करके ज्ञान व आत्म-साक्षात्कार के मार्ग का प्रदर्शन किया. मठ की स्थापना कर सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने में दिया महत्वपूर्ण योगदान पूर्व कुलपति ने बताया कि शंकराचार्य ने भारतीय संस्कृति को मजबूत करने व भारतीयता को एक सूत्र में पिरोने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. उन्होंने अद्वैत दर्शन को स्थापित करके भारतीय दर्शन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन किया. उन्होंने बताया कि शंकराचार्य का जीवन दर्शन, ज्ञान, तपस्या व सेवा पर केंद्रित था. उन्होंने भारत में चार मठों की स्थापना करके सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने बताया कि अद्वैत वेदांत दर्शन, जो उनकी मुख्य शिक्षा थी, आज भी भारतीय दर्शन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वह भारत में ऋषिक संस्कृति परंपरा के महानतम प्रतिपादक थे. भारत में चार मठ श्रृंगेरी, द्वारका, पुरी पूर्व व ज्योतिर्मठ की स्थापना कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये महाविद्यालय प्राचार्य प्रो कैलाश प्रसाद यादव ने कहा कि आदि शंकराचार्य का जन्म 508 ईसा पूर्व (परंपरा के अनुसार) में केरल के कालड़ी गांव में हुआ था. उन्होंने बताया कि शंकराचार्य की मृत्यु 32 वर्ष की अल्प आयु में केदारनाथ के पास हुई थी. उन्होंने बताया कि शंकराचार्य बहुत ही प्रतिभाशाली व बुद्धिमान थे. दो साल की उम्र में ही वह संस्कृत बोल और लिख सकते थे और छह साल की उम्र में ही वह प्रकांड पंडित बन गये थे. उन्होंने बताया कि आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग दिया और सन्यासी बन गये. उन्होंने भारत के चार कोनों में चार मठों दक्षिण में श्रृंगेरी, पश्चिम में द्वारका, पूर्व में पुरी पूर्व व उत्तर में ज्योतिर्मठ की स्थापना की. दर्शनशास्त्र को सभी पाठ्यक्रमों का बनाया जाये अनिवार्य हिस्सा कार्यक्रम का संचालन करते हुये दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डाॅ सुधांशु शेखर ने कहा कि भारतीय दार्शनिक दिवस मनाने का उद्देश्य शंकराचार्य के जीवन-दर्शन को आगे बढ़ाना है. इसके साथ ही लोगों को दर्शन में रूचि जगाना भी है. इसके लिए जरूरी है कि दर्शनशास्त्र को प्राथमिक से लेकर स्नातकोत्तर तक के सभी पाठ्यक्रमों का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाये. उन्होंने बताया कि आदि शंकराचार्य का भारतीय दर्शन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इनके बाद के सभी दार्शनिक इनसे प्रभावित रहे हैं. इनमें स्वामी विवेकानंद व महात्मा गांधी का नाम भी शामिल है. मौके पर बीएसएस कालेज सुपौल के डा रणधीर कुमार सिंह, आरजेएम कालेज सहरसा की डाॅ प्रत्यक्षा राज, शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, शशिकांत कुमार, राजहंस राज आदि उपस्थित थे.
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