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माथे में घुसा तीर, प्राइवेट अस्पताल में लाखों खर्च

पहल. सदर विधायक ने की पहल, पटना जाकर प्राइवेट अस्पताल से निकाल आइजीएमएस में दिखाया राशि के अभाव में नहीं जा सका दिल्ली, मौत से जूझ रहा उपेंद्र अब तक मात्र दो हमलावर हुए हैं गिरफ्तार मधेपुरा : गम्हरिया में 24 नवंबर को भूमि विवाद में मारपीट के क्रम में तीर से जख्मी एक पक्ष […]

पहल. सदर विधायक ने की पहल, पटना जाकर प्राइवेट अस्पताल से निकाल आइजीएमएस में दिखाया

राशि के अभाव में नहीं जा सका दिल्ली, मौत से जूझ रहा उपेंद्र
अब तक मात्र दो हमलावर हुए हैं गिरफ्तार
मधेपुरा : गम्हरिया में 24 नवंबर को भूमि विवाद में मारपीट के क्रम में तीर से जख्मी एक पक्ष के उपेंद्र यादव गत छह दिन से प्राइवेट अस्पताल के चंगुल में पड़कर लाखों रुपये के कर्जदार हो चुके है. उपेंद्र के आंख में लगा तीर माथे के संवेदनशील हिस्से में फंसा हुआ है. इस तीर को निकालने के क्रम में उपेंद्र की जान सकती है. बकौल आइजीएमएस के डॉक्टर उपेंद्र के माथे के सबसे संवेदनशील हिस्सा जहां ब्रेन फ्लूड के साथ ब्रेन है. वहां तीर अटका है. इसे केवल दिल्ली के ट्रामा सेंटर में निकाला जा सकता है. उपेंद्र लगातार प्राइवेट अस्पताल व डॉक्टरों के चंगुल में फंस कर लाखों रुपया खर्च कर चुका है, लेकिन उसकी हालत जस की तस है.
गम्हरिया पीएचसी से पटना प्राइवेट अस्पताल तक हो चुके है लाखों खर्च
उपेंद्र को जख्मी स्थिति में गम्हरिया पीएचसी ले जाया गया था. वहां से उसे मधेपुरा सदर अस्पताल रेफर किया गया. मधेपुरा से उपेंद्र सहरसा गायत्री नर्सिंग होम पहुंच गया. वहां उपेंद्र को दो दिन रखा गया. जांच एवं इलाज के नाम पर 40 हजार रूपये का बिल बनाकर लिया गया. उसके बाद पटना के आरडी मेमोरियल अस्पताल रेफर किया गया.
यहां भी उपेंद्र दो दिन भर्ती रहे. उनके परिजन ने जब देखा उपेंद्र का इलाज या तीर निकालने की दिशा में कुछ भी नहीं हो रहा है. तब उन्हें शक हुआ मामले की जानकारी तत्काल सदर विधायक सह पूर्व मंत्री प्रो चंद्रशेखर को दी गयी, वे वहां पहुंचे. उपेंद्र को वहां से निकालकर आइजीएमएस ले जाया गया. आइजीएमएस के न्यूरो विभाग ने तत्काल उपेंद्र की जांच की. सीटी स्कैन व अन्य रिपोर्ट के बाद पाया गया कि उपेंद्र के माथे का तीर काफी संवेदनशील हिस्से में फंसा हुआ है. इसे निकालने की सुविधा दिल्ली के ट्रामा सेंटर या एम्स में है.
उपेंद्र को रेफर कर दिया गया है. इधर उपेंद्र के परिजन पैसे के अभाव में उसे अब कहीं ले जाने में सक्षम नहीं हो पा रहे है. हालांकि गुरुवार को पूर्व मंत्री प्रो चंद्रशेखर द्वारा उपेंद्र को दिल्ली ले जाने के लिए संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस का टिकट करा दिया गया था, पर पैसे का अभाव ऐसा रहा कि उपेंद्र व उसके परिजन दिल्ली नहीं जा पाये.
गांव में दर-दर भटक रहे है परिजन, नहीं हो रहा है पैसे का जुगाड़. अपने परिवार में उपेंद्र ही कमाने वाला एक मात्र सदस्य था. वह चार बेटी व एक बेटे का पिता है. उसके बेटे की उम्र 16 वर्ष है, जबकि दो बेटी उससे बड़ी है और दो बेटी छोटी है. उपेंद्र की मां की आंखें भरी हुई है. वह कहती है उपेंद्र के पिता को तो खो चुकी है. अब उपेंद्र को जिंदा देखना चाहती है. वही एक मात्र सहारा है. पत्नी व सभी परिवार के लोग पैसे के लिए दर-दर भटक रहे है. हालत यह है कि पहले ही प्राइवेट अस्पतालों के चक्कर में उपेंद्र के परिवार पर लगभग डेढ़ लाख का कर्ज हो चुका है,
लेकिन अब फिर दिल्ली जाने के लिए कम से कम 50 हजार रुपये की आवश्यकता है. उपेंद्र के हमलावरों में से दो की गिरफ्तारी हुई है. आखिरकार उपेंद्र की जान बचाने के लिए कौन आगे आयेगा. क्या यह प्रशासन की जिम्मेवारी नहीं है. इन्हीं सब सवालों से उपेंद्र की जान सांसत में फंसी है और वह पटना में जिंदगी व मौत के बीच झूल रहा है.

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