केले के पत्ते पर सरसों के तेल के दीपक जला, मां दुर्गा को पहनाई गई कमल के फूलों की माला ठाकुरगंज .मंगलवार को दुर्गा पूजा पंडालों में संधि पूजा का आयोजन किया गया. इस दौरान श्रद्धा चारों ओर बिखरी नजर आई. धुनुची के धुएं ने वातावरण को और भक्तिमय कर दिया. पंडालों में मानो बंगाल उमड़ पड़ा हो . पारंपरिक ढंग से हुई पूजा के बाद मां की स्तुति की गई. वहीं शाम को कई तरह के कल्चरल प्रोग्राम पूजा पंडालों में हुए. अष्टमी तिथि के चलते देवी मंदिरों में दर्शन के लिए भक्तों का रेला भी लगा रहा. मंगलवार को दुर्गा पूजा पंडालों में अष्टमी पूजा व संधि पूजा के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटे. सुबह सभी पंडालों में माहौल भक्तिमय रहा. मां भगवती की धुनुचि आरती ने माहौल पूरी तरह से भक्ति मय कर दिया था. मां दुर्गा को 108 सरसों के तेल के दिए केले के पत्ते पर रखकर चढ़ाए गए. साथ ही 108 कमल के फूल की माला अर्पित की गई. वहीं सभी पूजा पंडालों में धुनिचि आरती से मां की आराधना की गई. माता को बंगाली मिठाइयों का भोग लगाया गया. संधि पूजा को बंगाली समाज असली पूजा मानता है. दोपहर 1 : 21 से 2 : 09 बजे तक संधि पूजा हुई. वहीं इस दौरान 1 : 45 पर बलिदान दिया गया. माना जाता है कि 50 मिनट की इस पूजा के दौरान मूर्ति में मां की आत्मा प्रवेश कर जाती है. माना जाता है कि नवरात्र में अष्टमी के दिन खास वक्त पर मां ने महिषासुर नामक असुर का वध किया था. इसी क्रम में देवी शक्ति को याद करते हुए उनकी विशेष उपासना की जाती है. इसीलिए इसे संधि पूजा कहा जाता है . विशेष रूप से बंगाल से आए पंडितों ने पूजा सम्पन्न करवाई. पौन घंटे तक चली संधि पूजा में सैकड़ों भक्तों ने मां का आशीर्वाद लिया इस दौरान माधुरी मंडल, शिखा मंडल , मिठू मंडल , रिम्पा गांगुली, दीपा मंडल, मलूटी दे बताया कि इस पूजा को केवल महिलाएं करती हैं. जो महिलाएं इस पूजा को करती हैं, वे पूरे दिन व्रत रखती हैं. उनका व्रत अष्टमी व्रत से थोड़ा विशेष होता है. क्योंकि अष्टमी व्रत में पूजा के बाद भोजन का विधान है लेकिन संधि पूजा करने वाली महिलाएं इसके बाद केवल फलाहार पर ही रहती हैं. इस पूजा के लिए समय का विशेष ध्यान रखा जाता है.
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