Bihar News: बिहार के किसान अब पारंपरिक खेती को छोड़कर ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे है. इससे किसानो को अच्छा मुनाफा भी हो रहा है. राज्य के किसान अब अपने गांवों में पारंपरिक खेती को छोड़ कर नकदी फसलों की खेती करने लगे है. यही कारण है कि आज देश का अन्नदाता खेती से जुड़ी नई- नई प्रणालियों को अपनाने के साथ ही ऐसी तकनीकों को अपनाने पर जोर दे रहे है. इस कारण वह अपनी आमदनी को आसानी से बढ़ा रहे हैं. किसान खेती के तरीके में बदलाव कर अच्छा फायदा कमा रहे है. इस नए प्रयोग की तरफ किसान तेजी से आगे की ओर बढ़ रहे है.
सूबे में पहली बार हो रही ड्रैगन फ्रूट की खेती के साथ 25 हजार एकड़ जमीन में अनानास की खेती की गयी है. उत्पादन व लागत से कम कीमत मिलने के कारण किसान परेशान हैं. इसका मुख्य कारण स्थानीय बाजार उपलब्ध न होने के कारण मूल्य कम मिलना है. स्थानीय स्तर पर मंडी नहीं होने के कारण पड़ोसी राज्य के बंगाल के विधाननगर मंडी में किसान औने-पौने दाम पर फसल बेचने पर मजबूर हैं. इससे बंगाल के विधाननगर को पाइन एपल सिटी का दर्जा प्राप्त हो गया और आज भी सैकड़ों किसान विधाननगर मंडी में अनानास बेचने को मजबूर हैं.
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किशनगंज के ठाकुरगंज के किसान नागराज नखत ने नौ साल पहले ऐसी फसल की शुरूआत की, जो कि जिले ही नहीं बिहार में पहले किसी ने कभी नहीं उगाई थी. किशनगंज जिले में किसान परंपरागत खेती से हटकर पूरी तरीके से आधुनिक और नई खेती पर जोर दे रहे हैं. जहां पर अब लाखों रुपए का मुनाफा भी कमा रहे हैं. ठाकुरगंज सहित अन्य क्षेत्रों में ड्रैगन फ्रूट की खेती की जा रही है. ड्रैगन फ्रूट की खेती कर लाखों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं. पहले साल ड्रैगन फ्रूट की खेती में लगभग तीन लाख रुपये का खर्च आता है, जहां तीसरे साल से ड्रैगन फ्रूट की खेती में पांच लाख रुपये का मुनाफा मिलना शुरू हो जाता है. ड्रैगन फ्रूटस मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, थाईलैंड, मैक्सिको, इजरायल, श्रीलंका और सेंट्रल एशिया में भी उगाया जाता है. ड्रैगन फ्रूट की खेती थाईलैंड में सबसे ज्यादा की जाती है. विदेशों में ड्रैगन फ्रूट की मांग अधिक होने के कारण इस फल की कीमत अधिक है, जहां डिमांड के साथ और बढ़ जाती है. उद्यान विभाग की तरफ से ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए किसानों को अनुदान दिया गया है.
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किशनगंज में अमरूद की खेती ने व्यवसायिक रूप ले लिया है. जिले के ठाकुरगंज, और किशनगंज प्रखंड में अमरूद की खेती का क्षेत्रफल का रकवा बढ़ा है. ज्ञात हो कि इलाके में अमरूद का उत्पादन वर्ष में दो बार होता है. इसकी बागवानी प्राय: सभी प्रकार की मिट्टी में सफलतापूर्वक की जा सकती है. दूसरे फल की अपेक्षा अधिक गर्मी और सूखा सहन करने की क्षमता अमरूद के पेड़ में होती है. विभिन्न प्रकार की भूमि एवं जलवायु के प्रति अनुकूलता, कम व्यय, सरल बागवानी एवं आन्तरिक गुणों के कारण अमरूद की बागवानी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. इसे चिकित्सकों ने दिल के मरीज के लिए फायदेमंद बताया है. जिले में उत्पादित होने वाले अमरूद की खासियत है कि यहां पर वर्ष में दो बार उत्पादन होता है. मुख्यत: जनवरी से मार्च और सितम्बर से नम्वबर में फसल आती है. बताया जाता है कि 5 वर्ष के पूर्ण विकसित पेड़ से 30 किलो तक फल प्रतिवर्ष किसान उत्पादित कर रहे हैं. जिले में इलाहाबादी सफेद और सुखडा किस्म की खेती की जा रही है. फलस्वरुप जिले में इसकी बागवानी को व्यवसायिक रूप दिया जा रहा है. वहीं, बता दें कि ड्रैगन फ्रूट टूटना भी शुरु हो चुका है. किसान इसकी खेती से अच्छे मुनाफे की उम्मीद कर रहे है. इसमें विटामिन सी, आयरन, कैल्शियम और फास्फोरस जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व पाए जाते है. यह हमारे लिए कई तरीके से फायदेमंद होते है. यह एक एंटीऑक्सीडेंट फल भी है. इसकी खेती को कर किसान आराम से सात लाख रुपए तक सालाना कमा रहे हैं.
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