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Darbhanga News: ईसा से लगभग 1100 वर्ष पूर्व अरब देशों में होता था वेदों का अध्ययन-अध्यापन

Darbhanga News: समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय ने आनो भद्रा: मन्त्र की व्याख्या करते हुए सभी प्राणियों के लिए समभाव रखने की बात कही

Darbhanga News: दरभंगा. कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पीजी दर्शन विभाग तथा महर्षि सांदीपनि वेद विद्यापीठ की ओर से वैदिक मंत्रों के दार्शनिक विश्लेषण विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी शनिवार को संपन्न हो गयी. समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय ने आनो भद्रा: मन्त्र की व्याख्या करते हुए सभी प्राणियों के लिए समभाव रखने की बात कही. विभिन्न राज्यों से आये विद्वानों के प्रति साधुवाद प्रकट किया. मुख्य अतिथि सह पूर्व कुलपति प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने वैदिक ज्ञान-परम्परा की वैज्ञानिकता, प्रामाणिकता एवं वैश्विक प्रभाव पर प्रकाश डाला. वसंत सम्पात तथा पुनर्वसु नक्षत्र की विशिष्टता को रेखांकित करते हुए कहा कि इनके माध्यम से भारतीय कालगणना की प्राचीन वैज्ञानिक दृष्टि स्पष्ट होती है. वैदिक खगोलशास्त्र को समझने के लिए ‘ओरायन’ ग्रंथ के अध्ययन पर बल दिया. कहा कि ईसा से लगभग 1100 वर्ष पूर्व अरब देशों में वेदों का अध्ययन-अध्यापन होता था. यह वैदिक ज्ञान के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव का प्रमाण है. साथ ही उन्होंने ‘अजत अरबीयन महादेव’ की अवधारणा का उल्लेख करते हुए सांस्कृतिक समन्वय की ओर संकेत किया.

विश्व की विभिन्न परंपराओं के निर्माण में वेदों का मार्गदर्शन

प्रो. मिश्र ने कहा कि विश्व की विभिन्न परंपराओं के निर्माण में वेदों से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है. यह भारतीय दर्शन की सार्वभौमिकता को दर्शाता है. पीआरओ निशिकांत के अनुसार काशी, शिमला, उज्जैन, बंगाल, बिहार सहित अन्य क्षेत्रों के विद्वानों ने संगोष्ठी में मंथन किया. छह दर्जन से अधिक शोध-पत्रों का वाचन किया गया. प्रो. सुरेश्वर झा ने वेद को स्वत: प्रमाण के रूप में परिभाषित करते हुए वैदिक मंत्रों का दार्शनिक विश्लेषण किया. मानपुर के डॉ संजय कुमार उर्फ सुदर्शनाचार्य ने असतो मा सद्गमय, सत्यं वद, धर्मं चर, आचार्य देवो भव जैसे वैदिक सूक्तियों को परिभाषित किया.

वेद विद्या के सभी मंत्र दर्शन से परिपूर्ण- प्रो. कमलेश

अध्यक्षता करते हुए बीएचयू के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो. कमलेश कुमार झा ने मंडन मिश्र, बच्चा झा, उदयनाचार्य आदि महापुरुषों के दर्शन में योगदान का वर्णन किया. कहा कि वेद विद्या के सभी मंत्र दर्शन से परिपूर्ण हैं. सभी दर्शनों की उत्पत्ति भूमि मिथिला है. प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह ने कहा कि ज्ञान की महिमा को समाज तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है. वैदिक शांति मंत्रों का विवेचन करते हुए 18 विद्याओं की चर्चा की. डॉ जयशंकर झा ने वैदिक मंत्रों के लौकिक जीवन में उपयोगिता पर बल दिया. अतिथियों का स्वागत कुलसचिव प्रो. ब्रजेशपति त्रिपाठी, संचालन डॉ शशिकांत तिवारी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुधीर कुमार ने किया. मौके पर डॉ धीरज कुमार पाण्डेय, प्रो. दिलीप कुमार झा, प्रो. दयानाथ झा, प्रो. पुरेंद्र वारिक, डॉ घनश्याम मिश्र, डॉ सुनील कुमार झा, प्रो. विनय मिश्र, डॉ ध्रुव मिश्र, डॉ रामसेवक झा, डॉ रितेश चतुर्वेदी, डॉ शम्भु शरण तिवारी, डॉ निशा, डॉ सविता आर्या, डॉ माया, डॉ यदुवीर स्वरूप शास्त्री, डॉ छविलाल, डॉ अवधेश श्रोत्रिय, डॉ सन्तोष तिवारी, डॉ विभव कुमार झा आदि मौजूद थे.

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