कमतौल : एहि स नीक तं हमरा सनक गरीब के उठाइये लितथिन, ने जीबै छी ने मरै छी हुकुर-हुकुर करै छी. आठ महीना त ठीके रहै छै, चारि मास धरि हमरा सभ के बान्हक असरा रहै छै. बरखा के दिन निकट अबिते करेजा कांपय लागैय. यह दर्द भरी दास्तान है खिरोई नदी के तटबंध पर शरण लिए बाढ़ विस्थापित मुरैठा पंचायत के भिर्रोहा निवासी 65 वर्षीया मोबिल देवी की.
इसी बीच अस्थायी छप्पर पर पन्नी डाल रहे उनका पुत्र छेदी मुखिया कह पड़ता है गांव में घर पानी से घिरा है. पानी तो कम हुआ है, लेकिन घर में सीलन है. 12 दिन से झोपड़ी बनाकर परिजनों संग रह रहे हैं. रात में तेज हवा में छप्पर का पन्नी उड़ गया. बारिश होने पर पानी टपकने लगा, पूरी रात परिजनों संग जागकर बिताई, अब सुबह में उपाय कर रहे हैं.
साथ में रह रही सूरज कला देवी कहती हैं, एगो हमही नई पूरा टोला में जते लोक है सब के इहे स्थिति है. एको घर बिना पानि के नई भेटत, मुदा आई धरि केओ पूछहु नई आयल, खेनाइ के देत. एक सांझ खाय लेल जे नई देलकै, ओ पन्नी कहां से देतै.सबको पानी कम होने पर का इंतजार है, प्रशासन की राहत से नाराजगी भी है.