दरभंगा : विधानसभा के प्राक्कलन समिति के सभापति सह नगर विधायक संजय सरावगी ने कहा कि मिथिला की संस्कृति विश्व-विख्यात है. याज्ञवल्क्य, मंडन मिश्र और मैथिल कोकिल विद्यापति हमारी संस्कृति के प्रतीक पुरुष रहे हैं.
शास्त्रार्थ की परंपरा हमारी विरासत रही है. इसे फिर से संस्कृत विश्वविद्यालय में शुरू किया गया है. यहां के राज पुस्तकालय में हजारों वर्ष पुरानी पांडुलिपियां सुरक्षित है, जिससे हमारी सभ्यता-संस्कृति का बोध होता है. विदेशों से विद्वान आकर इस पर शोध कर रहे हैं.
प्रारंभ में सांस्कृतिक धरोहरों पर ध्यान नहीं दिया गया, जिसके कारण यहां की विरासत का क्षरण हुआ. अब इसे संरक्षित किया जा रहा है. विधायक श्री सरावगी डॉ प्रभात फाउंडेशन एवं पीजी समाजशास्त्र विभाग के तत्वावधान में आयोजित ‘सांस्कृतिक धरोहर और मिथिला’ विषय पर लनामिवि के पीजी समाजशास्त्र विभाग में आयाजित सेमिनार में बोल रहे थे.
श्री सरावगी ने कहा कि जिस संस्कृति के लोग अपनी धरोहर के प्रति सचेत हैं, उनकी संस्कृति नहीं मिट सकती है. आजादी के बाद से ही अगर हमारी सभ्यता-संस्कृति की मार्केटिंग की गई होती, तो आज दरभंगा भी प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के रुप में जाना जाता. मिथिला की संस्कृति को मैथिलों ने अब भी बचा रखा है. यहां के लोग जहां भी जाते हैं, वहां अपनी विद्वता की छाप छोड़ देते हैं.
मिथिला के सम्मान का प्रतीक पाग माना जाता है. आज विदेशों तक में पाग से लोगों को सम्मानित किया जा रहा है. पाग धारण करने से मिथिला की संपूर्णता का बोध होता है. मिथिला पेंटिंग भी हमारी धरोहर है, जो प्रोत्साहन मिलने के बाद विदेशों में भी प्रसिद्धि पा चुकी है. इससे युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है.

