दो माह में 116 नवजात बच्चे तथा 147 नवजात बच्चियों का हुआ इलाज
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एसएनसीयू ने अब तक 2675 नवजातों को बचाया
दो माह में 116 नवजात बच्चे तथा 147 नवजात बच्चियों का हुआ इलाज बक्सर : बक्सर जिले का नवजात शिशु चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) नवजात बच्चों को नयी जिंदगी दे रहा है. अब तक लगभग 2675 बच्चों को बचाया गया है. सबसे ताज्जुब की बात यह है कि हाल के दिनों में निकाले गये आंकड़ों से […]
बक्सर : बक्सर जिले का नवजात शिशु चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) नवजात बच्चों को नयी जिंदगी दे रहा है. अब तक लगभग 2675 बच्चों को बचाया गया है. सबसे ताज्जुब की बात यह है कि हाल के दिनों में निकाले गये आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि जहां बिहार में बच्चियों की स्वास्थ्य के प्रति अभिभावक सचेत नहीं हैं.
वहीं, बक्सर में ठीक इसके उलट है. एसएनसीयू में सबसे ज्यादा नवजात बच्चियों को इलाज के लिए भरती कराया गया है. नवंबर से लेकर दिसंबर तक कुल 263 कम वजनवाले बच्चों को एसएनसीयू में भरती कराया गया, जिसमें 147 बच्चियां हैं. एसएनसीयू में हर माह लगभग 50 से ज्यादा बच्चे भरती होते हैं, जिनका वजन जन्म के साथ मात्र 900 ग्राम होता है. ऐसे बच्चों की देखभाल करने के लिए इस केंद्र का स्थापना किया गया है. इस इकाई में बच्चों का वजन सामान्य स्तर में लाने के लिए उन्हें रेडियंट वार्मर में रखा जाता है. मदर के टेंप्रेचर में रखकर बच्चों को स्वस्थ करते हैं. बच्चों को ऑक्सीजन की जरूरत होने पर नाक से पाइप के माध्यम से दिया जाता है, इसके बाद एंटीबायोटिक का इंजेक्शन भी दिया जाता है.
किसी उपलब्धि से कम नहीं
यह यूनिट जिलावासियों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ी उपलब्धि है. नवजात शिशु नर्सरी में अब तक स्थापना से लेकर करीब दो हजार 675 गंभीर कुपोषित व अन्य रोगों से ग्रस्त बच्चों का सफल उपचार हुआ है.स्थापना के बाद से ही इस इकाई में चिकित्सकों की भारी कमी रही. जिस कारण कई नवजात की मौतें भी हुई हैं, फिर भी चिकित्सक और डॉक्टर दिन-रात नवजातों की देखभाल करते हैं.
बक्सर के अभिभावक बच्चियों के स्वास्थ्य के प्रति हैं जागरूक
बक्सर में अभिभावक बच्चों से ज्यादा बच्चियों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं. अगर नवजात शिशु इकाई में भरती होनेवाले आंकड़ों पर नजर डालें, तो इस इकाई में सबसे ज्यादा बच्चियों को एडमिट कराया गया है. हालांकि बच्चियां अधिकांशत: जन्म के साथ ही कुपोषण की शिकार थीं. फिर भी इसे जागरूकता ही कहेंगे कि कम-से-कम लोग बच्चियों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं.
इन बच्चों का होता है इलाज
जिला अस्पताल की नर्सरी में समय पूर्व जन्में शिशु, सांस की तकलीफ, झटका आना, तेज बुखार, पीलिया सहित अन्य गंभीर रोगवाले बच्चों को रखा जाता है.
बेहतर करने का कर रहे प्रयास
फोटो-14- नवजात शिशु इकाई की स्थापना 2012 में हुई थी. कई दिनों तक बच्चों को इलाज के लिए यहां नहीं लाया जा रहा था, लेकिन धीरे-धीरे लोगों को जागरूक किया गया. इसके बाद एसएनसीयू में नवजातों को भरती कराया जाने लगा. अब यह संख्या प्रतिमाह 60 के आसपास पहुंच गयी है. हालांकि कि डॉक्टर और नर्स की कमी है, जिस कारण परेशानी हो रही है. इसके लिए भी स्वास्थ्य विभाग को और जिलाधिकारी को पत्र लिखा गया है. अच्छी बात यह है कि बच्चियों की संख्या ज्यादा है. हालांकि एसएनसीयू में ऐसे ही नवजात आते हैं, जो जन्म के साथ कुपोषण के शिकार होते हैं.
ब्रज कुमार सिंह, सीएस
सृजित पद के अनुपात में नहीं हैं डॉक्टर एवं नर्स
एसएनसीयू में चिकित्सक और अपग्रेड नर्सों की संख्या काफी कम है. वहीं, 14 बेडवाले एसएनसीयू में एक डॉक्टर और छह नर्स नवजातों की स्वास्थ्य की देखभाल करती हैं. इस इकाई में जन्म लेने के साथ 28 दिन तक के किसी भी बच्चों को भरती कराया जा सकता है.
चिकित्सक का पद, 4-वर्तमान में-1
अपग्रेड नर्स का पद-13, वर्तमान में-6
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