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अनुमंडलीय अस्पताल में नियमित उपाधीक्षक नहीं

स्वास्थ्य विभाग की ओर से जनहित में लगातार सुधार का दावा किया जाता है. लेकिन जमीनी स्तर पर तस्वीर कुछ और दिखाई देती है.

प्रतिनिधि, राजगीर.

स्वास्थ्य विभाग की ओर से जनहित में लगातार सुधार का दावा किया जाता है. लेकिन जमीनी स्तर पर तस्वीर कुछ और दिखाई देती है. राजगीर का अनुमंडलीय अस्पताल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. पहले यह रेफरल अस्पताल था। इसे तीन दशक पूर्व अनुमंडलीय अस्पताल का दर्जा दिया गया है. लेकिन सुविधाओं और प्रबंधन के स्तर पर यहां आज भी गंभीर कमियां बनी हैं. सबसे बड़ी समस्या है कि यह अस्पताल तीन दशक बाद भी नियमित उपाधीक्षक से वंचित है. यह अस्पताल प्रभारी उपाधीक्षक के सहारे चल रही है. इससे चिकित्सा, निर्णय और संचालन तीनों प्रभावित होते हैं. चिकित्सकों और दवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन परिणाम अपेक्षित नहीं निकल रहे हैं. विभागीय उपेक्षा का नतीजा है कि यहां व्यवस्था ढांक के तीन पात जैसी बनी हुई है. इंचार्ज डीएस को छोड़ अस्पताल के चिकित्सक नियमित रूप से उपस्थित नहीं रहते हैं. इसके बावजूद उनकी उपस्थिति जैसे तैसे दर्ज कराई जाती है. स्थानीय लोगों और समाजसेवियों का कहना है कि जो डॉक्टर अस्पताल में शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं रहते, उनके स्थान पर अस्पताल के दंत चिकित्सक और फिजियोथैरेपिस्ट को सामान्य ओपीडी करने के लिए बैठा दिया जाता है. यह व्यवस्था कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है , क्योंकि दंत चिकित्सक और फिजियोथैरेपिस्ट की अपनी अलग विशेषज्ञता होती है. एमबीबीएस और विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी को इस तरह पूरा करना सीधे तौर पर मरीजों के साथ अन्याय व खिलबाड़ है. जानकारों की माने तो इस अस्पताल के दंत विभाग में चेयर आदि की सुविधाएं उपलब्ध है. बावजूद दांतों का ऑपरेशन, आरसीटी या अन्य महत्वपूर्ण चिकित्सा सेवाएं मरीजों को नहीं मिलती हैं. फलस्वरूप मरीज निजी क्लीनिक और वीरायतन जाने के लिए मजबूर हैं. कागज पर अनुमंडलीय अस्पताल में फिजियोथैरेपी इकाई का संचालन हो रहा है. यहां के मरीज को फिजियोथैरेपी की सुविधा नहीं मिलती है. कई बार यहां के समाजसेवियों और बुद्धिजीवियों ने इस ओर सिविल सर्जन और जिला प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया है. लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. कोई ठोस कार्रवाई अबतक नहीं हो सकी है. यही कारण है कि मरीजों को बेहतर इलाज की उम्मीद पूरी नहीं हो रही है. उन्हें साधारण बीमारियों के लिये भी निजी क्लीनिकों का रुख करना पड़ता है.पूर्व प्रखण्ड प्रमुख सुधीर कुमार पटेल, अनुमंडल रोगी कल्याण समिति के सदस्य अरुण कुमार उर्फ बिगुल सिंह एवं अन्य

स्थानीय लोगों की मांग है कि अनुमंडलीय अस्पताल राजगीर में जल्द से जल्द नियमित उपाधीक्षक की तैनाती की जाय. विशेषज्ञ चिकित्सकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाय. चिकित्सकों के सप्ताह में एक दिन आने की परिपाटी पर विराम लगाया जाय. दंत चिकित्सकों और फिजियोथैरेपिस्ट को उनकी विशेषज्ञता वाले कार्यक्षेत्र में ही रखा जाय. तभी अस्पताल वास्तव में अनुमंडलीय स्तर की सुविधाएं उपलब्ध कराने में सफल हो सकेगा और स्वास्थ्य विभाग के सुधार के दावे भी सार्थक साबित होंगे.

— नियमित बैठक से ही मरीजों को मिलेगा लाभ

मरीजों की सुविधा और अस्पताल प्रबंधन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से अनुमंडलीय अस्पताल में लम्बे अर्से बाद रोगी कल्याण समिति का गठन किया गया है. इस समिति के अध्यक्ष अनुमंडल पदाधिकारी हैं. समिति गठन के महीनों बाद एक भी बैठक नहीं हुई है. इसके कारण अस्पताल की कई व्यवस्थाएं प्रभावित हो रही हैं. मरीजों की समस्याओं का समाधान अपेक्षित नहीं हो रहा है. सुधारात्मक कदम लंबित पड़े हैं. रोगी कल्याण समिति के पूर्व सदस्य नागेन्द्र प्रसाद सिंह का कहना है कि समिति की नियमित बैठक ही अस्पताल की कार्यप्रणाली को सुदृढ़ बनाती है. उसीसे मरीजों को लाभ मिलती है.

— अधिकारी बोले

अनुमंडलीय अस्पताल में सुविधाओं को बेहतर बनाने की कोशिश जारी है. विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी चुनौतियां जरूर है. बावजूद उपलब्ध संसाधनों से मरीजों को बेहतर सेवा देने का प्रयास जारी है. दवाओं की आपूर्ति पहले से बेहतर हुई है। अस्पताल में सुविधाएं बढ़ी है.

डॉ. गौरव, प्रभारी उपाधीक्षक, अनुमंडलीय अस्पताल, राजगीर

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