राजगीर. दिल्ली से छह दिसम्बर को प्रारम्भ हुई तीन दिवसीय हिमालय अध्ययन यात्रा ऋषिकेश और देहरादून होते हुए शनिवार को उत्तरकाशी पहुंची. उत्तरकाशी में रात्रि विश्राम के बाद यह यात्रा रविवार की सुबह हर्षिल के लिए रवाना हुई. इस यात्रा का उद्देश्य हिमालयी पारिस्थितिकी की वर्तमान स्थिति, पर्यावरणीय संकट और मानवजनित हस्तक्षेपों के खतरों को समझना है. ऋषिकेश से ही पर्यावरणविद हेमन्त ध्यानी, जो लंबे समय से हिमालय संरक्षण अभियान में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, अनेक पर्यावरण कार्यकर्ताओं के साथ इस यात्रा में शामिल हुए. ध्यानी ने प्रतिभागियों को हिमालय क्षेत्र में बढ़ते पर्यावरणीय असंतुलन, विकास परियोजनाओं के दुष्प्रभाव और संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों पर पड़ रहे दबाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी. इस यात्रा में देश के बिहार सहित विभिन्न राज्यों से आए सौ से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. इनमें पर्यावरण कार्यकर्ताओं के साथ शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्त्ता, पत्रकार, शोधार्थी तथा स्थानीय निवासी भी शामिल थे. यात्रा के दौरान सभी ने सामूहिक रूप से हिमालय संरक्षण के प्रति जनजागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया. हर्षिल में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने ऑनलाइन संबोधन दिया. उन्होंने कहा कि खड़ा हिमालय हमें सदैव साहस और धैर्य की प्रेरणा देता है। लेकिन आज वही हिमालय अनेक संकटों से घिर रहा है. विकास और सुरक्षा के नाम पर हिमालय से होने वाली छेड़छाड़ विनाश का संकेत है. विकास जरूरी है, पर ऐसा विकास नहीं जो हिमालय को ही क्षति पहुँचा दे. उन्होंने प्रतिभागियों के प्रयासों को सराहते हुए कहा कि हिमालय की रक्षा राष्ट्र की संस्कृति, पहचान और अस्तित्व की रक्षा है. इस अवसर पर पूर्व केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया. उन्होंने केदार घाटी त्रासदी को याद करते हुए कहा कि प्रकृति मनुष्य की संरक्षक है, इसलिए प्रकृति के साथ किसी भी प्रकार का अतिक्रमण विनाश को आमंत्रित करता है. वहीं आरएसएस के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि पर्यावरण सुरक्षा ही राष्ट्र की सुरक्षा का आधार है. ऐसी यात्राएं जनजागरण का सशक्त माध्यम हैं. हर्षिल में देवदार रक्षा सूत्र बंधन और देवदार पूजन कार्यक्रम भी आयोजित किया गया. वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने देवदार वृक्षों की रक्षा का संकल्प लिया और कहा कि हिमालय के संरक्षण के बिना भविष्य सुरक्षित नहीं हो सकता.
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