बिहारशरीफ. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा को दो दिन बीत गए हैं, लेकिन इस बार का माहौल पूरी तरह से बदला हुआ नजर आ रहा है. पहले जहां नामांकन शुरू होते ही टिकटों की होड़ और प्रचार का शोर शुरू हो जाता था, वहीं इस बार अधिकांश बड़े दल अभी तक अपने उम्मीदवारों के नाम तक घोषित नहीं कर पाए हैं. इस बार पार्टी नेताओं से ज्यादा पार्टी प्रबंधक और जिला इकाइयाँ अपने ही कार्यकर्ताओं के असंतोष से जूझ रही हैं. हरनौत, हिलसा, इस्लामपुर जैसे कई जगहों पर संभावित उम्मीदवारों के समर्थक खुलेआम गुटबाजी कर रहे हैं. टिकट न मिलने की स्थिति में बगावत की धमकी दी जा रही है. पार्टी अधिकारी अंदरूनी असंतोष शांत करने में जुटे हैं. सोशल मीडिया बना नया चुनावी अखाड़ा इस बार का चुनावी प्रचार का तरीका पूरी तरह बदल गया है. उम्मीदवारों की टीमें फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर सक्रिय है. पारंपरिक रैलियों की जगह डिजिटल कैंपेन पर जोर दिया जा रहा है. वर्तमान में ऑनलाइन छवि प्रबंधन मुख्य हथियार बना हुआ है, जो हर पार्टी और प्रत्याशी अपने-अपने तकनीकी टीम के मदद ले रहा है. वादों और आरोप-प्रत्यारोप का शोर गायब चुनाव घोषणा के चार दिन बाद भी कोई बड़ा चुनावी वादा सुनाई नहीं दे रहा है. विरोधी दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू नहीं हुआ है. असामान्य शांति से मतदाता हैरान है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह चुनाव धीरे-धीरे परिपक्व होता हुआ दिख रहा है. इस बार भावनाओं से ज्यादा रणनीति काम करेगी. सोशल मीडिया प्रबंधन होगा निर्णायक होगा. छवि निर्माण बनेगा मुख्य मुद्दा होगा. इस बार का चुनाव न केवल तरीके में बदलाव ला रहा है, बल्कि यह नए राजनीतिक संस्कृति के उदय का भी संकेत दे रहा है. जहां जल्दबाजी की जगह सोच-समझकर उठाए गए कदम महत्वपूर्ण होंगे.
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