बिहारशरीफ. दुर्गा पूजा, दीपावली, छठ और बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे आयोजनों से एक महीने तर गुलजार रहे जिले के ग्रामीण इलाकों में एक बार फिर सन्नाटा छा गया है. त्योहारों और चुनावी रैलियों की रौनक खत्म होते ही प्रवासी मजदूर और पढ़े-लिखे युवा अपने कामकाज के सिलसिले में शहरों को लौटने लगे हैं. अनुमान है कि अब गांवों में करीब 60 प्रतिशत घरों में सिर्फ बुजुर्ग ही रह गए हैं. रहुई गांव के अनिल कुमार बताते हैं कि उनका बेटा और बहू मुंबई के एक सरकारी दफ्तर में काम करते हैं. वे हर साल दीवाली या छठ पर आते हैं, लेकिन त्योहार ख़त्म होते ही चले जाते हैं. एकंगसराय के सुरेंद्र कुमार और हिलसा के मनोरथ प्रसाद जैसे अनेक परिवारों की भी यही कहानी है. जिस तरह से गांव त्योहारों के बाद फिर से वीरान हो रहे हैं, उससे साफ जाहिर होता है कि ग्रामीण इलाकों से पलायन की समस्या अब भी गहरी है. कभी जिन गलियों में बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं, आज वहां एक गहरा सन्नाटा पसरा है.
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