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Bhagalpur news महामंगल प्रदायिनी है सिद्धपीठ भ्रमरपुर की मां दुर्गा

भ्रमरपुर का सिद्धपीठ दुर्गा मंदिर भक्तों के लिए मणिद्वीप है. लगभग 400 वर्ष पुराने इस मंदिर के बगल में पहले गंगा बहती थी.

भ्रमरपुर का सिद्धपीठ दुर्गा मंदिर भक्तों के लिए मणिद्वीप है. लगभग 400 वर्ष पुराने इस मंदिर के बगल में पहले गंगा बहती थी. गांव के हजारों ब्राह्मण गंगा स्नान कर भींगे वस्त्र अंजुली में गंगोट (गंगा किनारे की मिट्टी ) से पिंडी का निर्माण किया. वैदिक व तांत्रिक विधि से पिंडी में प्राण प्रतिष्ठिा की गयी. 1970 में मंदिर के साथ पक्कीकरण किया गया. मंदिर प्रांगण स्थित दुर्गा संस्कृत विद्यालय के पूर्व प्राचार्य पंडित शशिकांत झा की ओर पूजन कार्य संपादित होता है. अभिमन्यु गोस्वामी प्रधान पुजारी तथा पंडित धनंजय झा सहायक पुजारी हैं. सैंकड़ों ब्राह्मण दुर्गापूजा के दौरान नित्य दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं. मान्यता है कि यहां मां स्वयं विराजती है. यही वजह है कि भक्त इस मंदिर को जगदंबा का निवास स्थान मणिद्वीप मानते हैं. ग्रामीण बुजुर्ग बताते हैं कि आज भी सात्विक लोग भगवती के ऊर्जा को महसूस करते हैं. भगवती यहां जाग्रत स्वरूपा महामंगल प्रदायिनी हैं.

नगरपारा पूरब पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि प्रसून कुमार उर्फ मुन्ना मिश्रा बताते हैं कि 17वीं सदी में सोलंकी वंश के राजा बाबू बैरम सिंह ने मंदिर बनवाया था. इसके पीछे की कहानी है कि भरतखंड ड्योढी ( 52 कोठरी 53 द्वार ) पर गिद्ध बैठ गया था. अनिष्ट की आशंका से राजा सपरिवार भ्रमरपुर रहने लगे. यहां भी गिद्ध उनके आवास पर बैठ गया. बार-बार घर पर गिद्ध बैठने को अशुभ मान कर राजा उस घर का त्याग कर शुभेच्छा से मां दुर्गा देवी मंदिर सहित शिव-पार्वती के मंदिर का निर्माण कराया. इसके बाद राज परिवार पास ही वीरबन्ना गांव में रहने लगे. भ्रमरपुर में दुर्गा मां की प्रतिमा पुरातन स्वरूप में बनायी जाती है. संकल्प पूजन गांव में बस रहे सभी जातियों के नाम पर होता है. मंदिर परिसर में श्री राम, हनुमान सहित अन्य मंदिरों का निर्माण बाद के दिनों में हुआ. प्रतिमा का विसर्जन निकट ही तालाब में किया जाता है.

बनाया जा रहा है 135 फीट का आकर्षक शिखर

फिलहाल मंदिर के पुनर्निमाण का कार्य चल रहा है. वृंदावन के प्रसिद्ध शिल्पी जितेंद्र सिंह की ओर से 1300 वर्ग फीट चौड़ा और 135 फीट ऊंचा भव्य आकर्षक शिखर बनाया जा रहा है. मंदिर में संपूर्ण दुर्गा सप्तशती ग्रेनाइट पत्थर पर लिखा जायेगा. नवग्रह व नवदुर्गा के प्रतीक के तौर नौ शिखरों का निर्माण किया जा रहा है.

एक अक्टूबर को साढ़े दस बजे से शुरु होगी बलि

प्रख्यात भजन सम्राट हिमांशु मोहन उर्फ दीपक मिश्र ने बताया कि सोमवार को दोपहर बाद अष्टमी का प्रवेश है. अतः झींगा बलि सोमवार 29 सितंबर व अष्टमी व्रत मंगलवार 30 सितंबर को होगा. डाली मंगलवार को 1.30 बजे दिन तक भरा जायेगा. बलि एक अक्टूबर बुधवार को 10.30 बजे से शरु हो जायेगी. मूर्ति विसर्जन गुरुवार दो अक्तूबर को शाम साढ़े छह बजे होगी.

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