दुर्गापूजा पर कहलगांव टोला में दो दिवसीय कुश्ती प्रतियोगिता का शुभारंभ हुआ. आज कुश्ती प्रतियोगिता में कुल 36 जोड़े पहलवानों ने जोर अजमाया. प्रतियोगिता में जम्मू कश्मीर के राकेश कुमार, यूपी के मोहित कुमार, झारखंड के हारून पहलवान, कटिहार के पहलवान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, साहिबगंज नाथनगर से 38 जोड़ा स्थानीय पहलवान ने जोर आजमाइश की. आज फाइनल मुकाबला होगा. प्रथम पुरस्कार 11 हजार, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार 3100 रखा गया है. समिति की तरफ से सांत्वना पुरस्कार भी रखा गया है. आज की कुश्ती प्रतियोगिता में गोपाल पासवान, अशोक राम, अनुरंजित कुमार उर्फ कुमार बाबू, दारोगा यादव, मुरली यादव उपस्थित थे. निर्णायक सुनील पहलवान व गणेश पहलवान थे. उद्घोषक रंजन यादव थे. कुश्ती प्रतियोगिता की सफलता के लिए मेला समिति के संयोजक मुखिया प्रतिनिधि सुकेश यादव सुनील यादव, वीरकांत यादव, गौतम यादव, शैलेंद्र मौजूद थे.
दंगल प्रतियोगिता के फाइनल में श्याम कुमार का दबदबा
कहलगांव श्यामपुर में दुर्गा पूजा पर आयोजित दो दिवसीय दंगल प्रतियोगिता में प्रथम स्थान लकड़ाकोल के श्याम कुमार पहलवान ने प्राप्त किया. द्वितीय स्थान मनीष कुमार और तृतीय स्थान रजनीश कुमार ने हासिल किया. प्रतियोगिता में कुल 20 जोड़ी पहलवानों ने हिस्सा लिया था. विजेता एवं उपविजेता पहलवानों को पुरस्कार वितरण का कार्य बंटी पांडेय, आनंद साह, रवींद्र साह सहित अन्य आगंतुक अतिथियों ने संयुक्त रूप से किया.निर्णायक की भूमिका सर्वोत्तम कुमार शर्मा, अंबिका मंडल, अंकज कुमार ने निभायी.राम कथा जीवन को धर्म व आदर्श की अग्रसर करने का मार्ग
नवगछिया ध्रुवगंज स्थित नयी दुर्गा मंदिर प्रांगण में चल रही श्रीराम कथा के आठवें दिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. भक्त पूरे उत्साह, आस्था और श्रद्धा के साथ कथा श्रवण करने एकत्रित हुए. वातावरण श्रीराम नाम के मधुर संकीर्तन और भजनों से गुंजायमान रहा. कथाव्यास पुरुषोत्तम रामानुज दास उर्फ मांगन बाबा ने मंगलाचरण से किया. आचार्य ने श्रद्धालुओं को स्मरण कराया कि श्रीराम कथा धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन को धर्म, मर्यादा और आदर्श की ओर अग्रसर करने का मार्ग है. उन्होंने भक्तों को बताया कि यह प्रसंग मात्र युद्ध की कथा नहीं, बल्कि धर्म और अधर्म, मर्यादा और अहंकार, प्रेम और क्रूरता के मध्य संघर्ष का शाश्वत प्रतीक है. उन्होंने विस्तार से वर्णन किया कि कैसे प्रभु श्रीराम ने वानर सेना के सहयोग से लंका प्रस्थान किया, कैसे समुद्र पर सेतुबंध हुआ और कैसे प्रभु ने रावण जैसे महापंडित, अहंकारी और अधर्मी शासक का अंत किया. लंका का विजय केवल रावण के वध का नाम नहीं, बल्कि यह संदेश है कि अहंकार चाहे कितना ही बलशाली क्यों न हो, धर्म और सत्य के आगे उसे अंततः झुकना ही पड़ता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

