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डरी-डरी कअ जिंदगी बितैलिहो हो भैया, कान पकड़ै छिये जे अब लौटी कअ जहियों

श्रमिक स्पेशल ट्रेन से सलमपुर (बांका) की रहने वाली कनकही देवी अपने पति और तीन बच्चों के संग भागलपुर में उतरी. जांच की प्रक्रिया से गुजरते हुए प्लेटफॉर्म से बाहर निकली. गोद में बच्चे और हाथ में समान लिए बस के लिए लाइन में खड़ी हो गयी. वह स्टेशन को निहार रही थी.

भागलपुर : श्रमिक स्पेशल ट्रेन से सलमपुर (बांका) की रहने वाली कनकही देवी अपने पति और तीन बच्चों के संग भागलपुर में उतरी. जांच की प्रक्रिया से गुजरते हुए प्लेटफॉर्म से बाहर निकली. गोद में बच्चे और हाथ में समान लिए बस के लिए लाइन में खड़ी हो गयी. वह स्टेशन को निहार रही थी. घर वापसी पर उनके चहरे पर सुकून का भाव दिख रहा था. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन में फंसी गेलो छेलिहो. भैया डरी-डरी कअ जिंदगी बितैलिहो. परदेश में कोई आपनो नाय हो छै. जकेरा यहां कमाय-खाय छेलिये वहू मूंह मोढ़ी लेलकै. लागै छेलै कि कखनी अपनो घर पहुंची जहिये. लेकिन, अैतिहो कैसअ. हम्मे अबै कान पकड़ै छिहो, लौटी कर वहां कहिये नाय जैबोह.

उन्होंने बतायी कि वहां उन्हें खाने के लाले पड़ गये थे. उन्होंने बतायी कि ट्रेन में खाना मिला और किराया भी नहीं लिया. बच्चे के लिए दूध का किसी तरह से इंतजाम करना पड़ा. महामारी के बाद लौट जायेंगे काम परस्टेशन से बाहर आने वालों में पहला मजदूर आरा का रितेश कुमार रहा. उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी खत्म होने के बाद वह काम पर फिर से लौट जायेगा. जितना पैसा वहां मिलता है, उतना यहां कोई भी नहीं देगा.

राजकोट में छपाई मशीन में काम करने वाले आरा के विकास कुमार ने बताया कि वहां अच्छी खासी जिंदगी कट रही थी. दो पैसे का ज्यादा इनकम होता है. यहां गुजारा मुश्किल है. बांका की मंजू देवी ने बतायी कि अभी हालात ऐसे हैं तो घर वापसी करना पड़ा मगर, ज्यादा कमाई वहां होती है. वहीं आरा की सुनीता और रेखा ने बतायी कि कुछ भी हो जायेगा मगर, लौट कर नहीं जायेगी.

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