हाल-ए-इलाज सदर अस्पताल
भागलपुर : सदर अस्पताल में होने वाली डिलेवरी के दौरान हर दूसरे दिन यहां पर कम वजन का बच्चा पैदा हो रहा है. चिकित्सकों की माने तो कम वजन के नवजातों को एसएनसीयू की तत्काल जरूरत होती है. ताकि वहां पर उनका देखरेख करते हुए उनके वजन को बढ़ाया जा सके. बावजूद यहां पर पैदा हाेने वाले अधिकांश नवजातों को सदर अस्पताल स्थित एसएनसीयू नसीब नहीं हो पा रहा है.
26 दिन में पैदा हुए 17 नवजात कम वजन के : सदर अस्पताल में बीते अप्रैल माह में एक अप्रैल से लेकर 26 अप्रैल के बीच कुल पैदा हुए 232 नवजातों में से 17 नवजात ढाई किलो से कम वजनी वाले थे. इनमें से नौ नवजात का वजन तो दो किग्रा या फिर इससे भी कम वजन रहा.
एसएनसीयू में पूरे माह में हुआ 11 नवजातों का इलाज : सदर अस्पताल स्थित एसएनसीयू में पूरे अप्रैल माह में जिले भर से आये 11 नवजातों को इलाज के लिए भरती किया गया.
इनमें से अधिकांश नवजात सदर अस्पताल के इतर दूसरे सरकारी अस्पताल में पैदा हुए थे.
प्री मेच्योर नवजातों को भी रखा जाता है एसएनसीयू में: समय पूर्व जन्मे शिशु (प्रीमेच्योर शिशु) वे हैं, जो गर्भावस्था के 37 वें सप्ताह से पहले पैदा होते हैं. चूंकि इस प्रकार के नवजात मां के गर्भ में अपना समय और विकास पूरा नहीं कर पाते हैं, इसलिए उन्हें प्रसवोपरांत एसएनसीयू में खास देखरेख की आवश्यकता हो सकती है. आमतौर पर ऐसे शिशुओं का जन्म के समय वजन कम होता है.
ड्यूटी दो बजे से, तीन बजे तक ड्यूटी से गायब रही नर्स
सदर अस्पताल में पैदा हो रहे शिशुओं के एसएनसीयू रेफर करने में यहां के चिकित्सक मनमानी कर रहे हैं तो एसएनसीयू में तैनात नर्सें भी ड्यूटी में मनमानी कर रही हैं. ये नर्सें कई-कई घंटे तक ड्यूटी से गायब रह रही हैं. शनिवार को सुबह आठ बजे से दोपहर बाद दो बजे तक एसएनसीयू में नर्स मीरा, रूमा व अन्नपूर्णा की ड्यूटी थी. दो बजे तक ये नर्सें ड्यूटी से रिलीव इसलिए नहीं हो सकी थी, क्योंकि दो बजे से ड्यूटी करने वाली नर्स सीमा व रूही तीन बजे एसएनसीयू की ड्यूटी से गायब रही.
कम वजन होने के ये हैं कारण
गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य संबंधी या भावनात्मक समस्याएं होने पर.
गर्भावस्था के दौरान एनीमिया या खून कि कमी होना.
पिछली बार गर्भपात, मृत शिशु का जन्म, पिछला बच्चा प्रीमेच्योर या फिर कम वजन का पैदा हुआ हो.
पहले से मौजूद स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे दमा, मधुमेह या गुर्दों की बीमारी.
गर्भावस्था के दौरान कुछ प्रकार के संक्रमण जैसे टॉक्सोप्लाज्मोसिस, गर्भाशय से जुड़ी समस्याएं या नीचे स्थित अपरा (प्लेसेंटा प्रेविया) जैसी जाटिलता का होना.
प्रसवपूर्व देखभाल की कमी.
यौन संचारित रोग जैसे एचआईवी-एड्स, तनाव अथवा गर्भावस्था अवसाद का होना.
गर्भावस्था के दौरान हेरोइन या कोकीन जैसी अवैध नशीली ड्रग्स लेना.
अत्यधिक मदिरा पान और धूम्रपान (स्वयं द्वारा अथवा आसपास अन्य लोगों द्वारा) किया जाना.
