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Crocodile Death: बगहा में ट्रेन से कटकर मगरमच्छ की मौत, रेल लाइन पार करते समय हुआ हादसा

Crocodile Death: पश्चिम चंपारण जिले के बगहा इलाके में एक मगरमच्छ का शव रेल पटरी के पास मिला है. कहा जा रहा है कि उसकी मौत पटरी पार करते समय ट्रेन से कट कर हो गयी है.

Crocodile Death: बगहा. रेल पटरी के किनारे एक मगरमच्छ का शव बरामद हुआ है. शव देखने से लगता है जैसे पटरी पार करते वक्त ट्रेन से कटकर मगरमच्छ की मौत हुई है. हादसा बरवल पिपरा गांव के हरहा नदी पर बने पुल संख्या 347 के पास का है. इस घटना पर पर्यावरण प्रेमियों ने चिंता जताई है. उन्होंने कहा है कि मगरमच्छ संभवतः हरहा नदी से निकलकर रेलवे ट्रैक पार कर रहा था, तभी वहां से गुजर रही ट्रेन की चपेट में आ गया. ट्रेन से कटने के बाद उसकी मौत हो गयी. पिछले वर्ष भी औसानी हाल्ट के पास दो मगरमच्छ ट्रेन से कट गए थे और उनकी मौत हो गई थी.

पर्यावरण प्रेमी ने दी घटना की जानकारी

बताया जाता है कि सुबह-सुबह वहां से गुजर रहे लोगों की नजर मगरमच्छ के शव पर पड़ी. खेत की ओर काम के लिए जा रहे लोगों ने जब पटरी के बगल में मगरमच्छा का शव देखा तो तत्काल उन्होंने इसकी जानकारी वन विभाग को दी. घटना की खबर मिलने के बाद मौके पर पहुंचे वनकर्मियों ने मगरमच्छ को अपने कब्जे में ले लिया. शव ले जाने आये वन कर्मियों ने बताया कि कई बार ये मगरमच्छ रिहायशी इलाकों समेत आसपास के पोखर, तालाब और नहर का रुख करते हैं. इस दौरान इनकी जान पर भी बन आती है. इस मगरमच्छ की मौत ट्रेन से कटकर हुई है.

गंडक पाए जाते हैं मगरमच्छ

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व अंतर्गत गंडक नदी में सैकड़ों की संख्या में मगरमच्छ पाए जाते हैं. देश में चंबल नदी के बाद गंडक नदी ही एक ऐसा अधिवास क्षेत्र है जहां मगरमच्छ और घड़ियाल बहुतायत संख्या में पाए जाते हैं. उनको यह अधिवास क्षेत्र काफी पसंद आता है. इसी गंडक नदी की उप वैतरणी तिरहुत, त्रिवेणी, दोन और हरहा नहरों में मगरमच्छ डेरा जमाये रहते हैं औऱ अक्सर पानी से बाहर निकलकर रिहायशी इलाकों के अलावा सड़क और रेलवे ट्रैक पर आ जाते हैं, जिससे हादसों के शिकार हो जाते हैं.

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संरक्षित प्राणी है मगरमच्छ

कुछ वर्ष पहले तक मगरमच्छ की कई प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर थीं. जिसके बाद 1975 में देश के कई राज्यों में मगरमच्छ संरक्षण परियोजनाओं की स्थापना की गयी. घड़ियाल और खारे पानी के मगरमच्छ संरक्षण कार्यक्रम को 1975 की शुरुआत में ओडिशा में शुरू किया गया था, उसके बाद व्यापक तौर पर इसे शुरू किया गया. परिणामस्वरूप खारे पानी के मगरमच्छों की संख्या 1976 के 96 से बढ़कर 2012 में 1,640 हो गई.

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