बौंसी : पुराण प्रसिद्ध संप्रति बांका जिले के बौंसी में अवस्थित मंदराचल जिसे आज हम मंदार पर्वत के नाम से जानते हैं, धार्मिक दृष्टिकोण से अतिमहत्वपूर्ण पर्वत है. गंगा यदि मानव की देव नदी है तो मंदार मानव की देवगिरी. अति प्राचीनकाल में सुर और असुरों ने मिल कर इस पर्वत को समुद्र मंथन में मथानी के रूप में प्रयोग किया था.
इसमें 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी. मंदार इसी पौराणिक उपक्रम का प्रतीक है और अपने में मधु और मधुसूदन के गौरव को समेटे है. मकर संक्रांति के अवसर पर असुर वीर मधु की ही याद में संताल आदिवासी की भीड़ मंदार पर्वत की ओर खींच कर आती है. करीब सात सौ पचास फीट उंचे काले ग्रेनाइट के एक ही चट्टान से बने पर्वत पर एक दर्जन कुंड एवं गुफा हैं,
जिसमें सीता कुंड, शंख कुंड, आकाश गंगा के अलावे नरसिंह भगवान गुफा, शुकदेव मुनी गुफा, राम झरोखा के अलावे पर्वत तराई में लखदीपा मंदिर, कामधेनु मंदिर एवं चैतन्य चरण मंदिर मौजूद हैं. जानकारों के अनुसार औरव मुनी के पुत्री समीका का विवाह धौम्य मुनी के पुत्र मंदार से हुआ था. इसकी वजह से इस पर्वत का नाम मंदार पड़ा था. इस पर्वत का गौरांग महाप्रभु, चैतन्य महाप्रभु, इतिहासकार ह्वेनसांग आदि ने भ्रमण किया था.
मकर संक्रांति के अवसर पर सदियों से यहां एक विशाल मेला भी लगता है. आर्यों ने भी मंदार के प्रसिद्ध असुर मधु के वध से अपने को गौरवांवित समझा और उसकी पुण्य कृति में मधुसूदन के रूप में विष्णु भगवान की पूजा पर्वत पर आरंभ कर दी. धीरे-धीरे इस पर्वत के समीप एक नगर बसा और वह वालिसा नगरी कहलाया. पहले मधुसूदन भगवान का मंदिर पर्वत शिखर पर था, जिसे बाद में मुगल शासन काल में बौंसी में बनवाया गया था.
आज भी बौंसी में भगवान मधुसूदन का मंदिर है, जहां इनकी पूजा होती है. मंदार पर्वत जैनियों का भी प्रमुख तीर्थ स्थल है. जैन समाज का मानना है कि उनके धर्म के 12वें तीर्थंकर भगवान वासू पूज्य का निर्वाण इसी पर्वत पर हुआ है. पर्वत तराई में सफा धर्मावलंबियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है. स्वामी चंदर दास द्वारा चलाये गये सफा धर्म को जानने यहां पर आते हैं और लाखों की संख्या में आकर मकर स्नान करते हैं. फिलहाल पापहरणी में वोटिंग की व्यवस्था के अलावे सात करोड़ की लागत से पर्यटकीय सुविधाओं का विकास कार्य चल रहा है.