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सरकारी कार्यालयों में धड़ल्ले से हो रहा निजी वाहनों का प्रयोग, राजस्व को क्षति

मदन कुमार, बांका : एक तरफ अफसर नियम-कायदा को अमल में लाने की बड़ी-बड़ी व कार्रवाई करते हैं. वहीं दूसरी ओर खुद नियम की धज्जियां उड़ाते हुए संकोच तक नहीं करते हैं. जी हां, जिले में ऐसा ही एक मामला सामने आया है. जिले में दो दर्जन के करीब आलाधिकारी व कनीय अधिकारी अपने विभाग […]

मदन कुमार, बांका : एक तरफ अफसर नियम-कायदा को अमल में लाने की बड़ी-बड़ी व कार्रवाई करते हैं. वहीं दूसरी ओर खुद नियम की धज्जियां उड़ाते हुए संकोच तक नहीं करते हैं. जी हां, जिले में ऐसा ही एक मामला सामने आया है. जिले में दो दर्जन के करीब आलाधिकारी व कनीय अधिकारी अपने विभाग में निजी वाहनों का प्रयोग रह रहे हैं. यही नहीं जिला से लेकर प्रखंड भी सैकड़ों प्राइवेट वाहन चल रहे हैं.

जबकि, नियम के मुताबिक किसी भी सरकारी विभाग में सिर्फ व्यावसायिक वाहन का ही प्रयोग होना है. नतीजन, सरकारी राजस्व को लाखों-लाख की क्षति पहुंच रही है. सरकार के खाते में टैक्स के रूप में जाने वाली यह राशि सीधे वाहन मालिक के जेब में जा रही है.
इस बाबत राज्य स्तरीय परिवहन विभाग ने डीटीओ को इस बपत्र जारी करते हुए निजी वाहन के प्रयोग पर नकेल कसने का निर्देश दिया है. डीटीओ ने सभी विभाग को इस संबंधित में ताकीद करा दिया है. बताया गया है कि सरकारी दफ्तरों में किराये व लीज पर पीले रंग नंबर प्लेट वाले कॉमर्शियल वाहनों का उपयोग होना है. कतई निजी वाहन का प्रयोग नहीं किया जायेगा.
सबसे अधिक स्वास्थ्य विभाग में निजी वाहनों का प्रयोग
निजी वाहन का प्रयोग आलाधिकारी जमकर करते हैं. वहीं जानकारी मिली है कि स्वास्थ्य विभाग में धड़ल्ले से नियम को सूली चढ़ा दिया गया है. जानकारी के मुताबिक जिला से लेकर प्रखंड स्तर पर दो दर्जन से अधिक निजी वाहन का उपयोग स्वास्थ्य विभाग के विभिन्न कार्यक्रम में किया जा रहा है.
व्यावसायिक परमिट के लिए देना होता है मोटा टैक्स
किसी भी निजी वाहन का व्यावसायिक रूप में प्रयोग करने के लिए अलग से व्यवसायिक परमिट लिया जाता है. इसका अलग से शुल्क भुगतान किया जाता है. यही नहीं व्यवसायिक वाहन का नंबर पीला रंग का होता है. जबकि प्राइवेट वाहन का नंबर सफेद होता है. सीधी सी बात है कि व्यवसायिक परमिट लेने के लिए वाहन मालिकों को मोटा टैक्स देना पड़ता है.
प्राइवेट वाहन का फिटनेस 15 सालों का होता है. जबकि कॉमर्शियल वाहनों को हर साल फिटनेस सर्टिफिकेट लेना पड़ता है. इसमें भी उन्हें टैक्स भरना पड़ता है. प्राइवेट वाहन में सिर्फ वाहन का इंश्योरेंस होता है. जबकि कॉमर्शियल वाहन में यात्री के सीट के हिसाब से इंश्योंरेस होता है. इसके साथ-साथ कमर्शियल वाहनों को हर साल टैक्स जमा करना पड़ता है.
निजी वाहन का प्रयोग सरकारी दफ्तर व व्यवसायिक कार्यों में में होना नियम के विरुद्ध है. उच्च स्तरीय निर्देश के आलोक में सभी विभागीय पदाधिकारी को पत्र देकर यह जानकारी दी गयी है कि उनके यहां जितने भी निजी वाहन हैं, उसका कमर्शियल परमिट लेना जरूरी है. साथ ही व्यवसायिक वाहन का नंबर पीला का रंग का होना चाहिए.
फिरोज अख्तर, डीटीओ, बांका

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