आरा.
परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने ध्रुव जी के साधना पर प्रकाश डाला. कहा कि ध्रुव जी जन्म के बाद तीन वर्ष की उम्र में ही बड़े ओजस्वी हुए. ध्रुव जी के पिता का नाम उत्तानपाद था. उत्तानपाद जिनके पिता का नाम मनु जी था. ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो भागों में विभक्त किये थे. जिनके शरीर से मनु और शतरूपा हुए थे. वहीं मनु और शतरूपा के दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं. मनु महाराज के दो पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र का नाम उत्तानपाद था. मनु महाराज के बड़े पुत्र तपस्या साधना करने के लिए घर छोड़कर निकल गये थे. जिसके बाद मनु महाराज ने उत्तानपाद को राजगद्दी सौंप दी. उत्तानपाद राजा बनने के बाद वैवाहिक बंधन में बंध गये. उत्तानपाद का पहला विवाह सुनीति के साथ हुआ. सुनीति का मतलब जो सुंदर नीति पर चलने वाली हो, वही सुनीति कहलाती है. सुनीति को बहुत दिनों तक पुत्र प्राप्त नहीं हो पाया था. एक दिन उत्तानपाद अपने राज्य से बाहर दूसरे राज्य में चले गये. वहां जाने के बाद उस राज्य के राजा की पुत्री के रूप को देखकर के आकर्षित हो गये. उत्तानपाद ने उस राज्य के राजा से कहा कि हम आपकी पुत्री के साथ विवाह करना चाहते हैं. वहीं उत्तानपाद दूसरी शादी किये. जिनके दूसरी पत्नी का नाम सुरुचि था. सुरुचि का मतलब जो स्वयं की रुचि के अनुसार काम करती हो, वहीं सुरुचि है. उत्तानपाद सुरुचि के साथ विवाह करके वापस अपने राज्य में लौट रहे थे. इधर उनकी पहली पत्नी सुनीति बच्चे को जन्म देने वाली थी. इस बात की जानकारी उत्तानपाद को अभी तक नहीं हुई थी. जीयर स्वामी जी महाराज के प्रवचन को सुनने के लिए काफी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

