मृगेंद्रमणि सिंह/ Bihar Election 2025: बिहार के अररिया जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव है, जहां जनप्रतिनिधियों की उदासीनता का दंश झेल रहे ग्रामीणों ने एक बोर्ड लगा रखा है. उस बोर्ड पर लिखा है कि रोड नहीं तो, वोट नहीं. यह बोर्ड उस स्थान पर लगाया गया है, जहां से प्रतिदिन अररिया प्रखंड के पूर्वी भाग, कुर्साकांटा, सिकटी व पलासी प्रखंड जाने के लिये सांसद से लेकर विधायक तक आते-जाते रहते हैं. यही नहीं यह जिला प्रशासन के वरीय पदाधिकारी डीएम, डीडीसी, एसडीओ सहित अन्य पदाधिकारियों का आना-जाना है, लेकिन उनकी भी निगाहें, इस बोर्ड पर नहीं पड़ती है. जब प्रभात खबर की टीम अररिया विधानसभा के बसंतपुर पंचायत के वार्ड संख्या 03 के पास पहुंची तो लोगों का सब्र जवाब दे गया, उन्होंने बताया कि बारिश के समय में हमारा गांव टापू में तब्दील हो जाता है.
ग्रामीणों ने प्रभात खबर से बताया अपना दर्द
बसंतपुर गांव तक सड़क के निर्माण से पहले यहां पर एक पुल का निर्माण आवश्यक है, जो कम से कम चार स्पेन का हो, अगर पुल का निर्माण हो जायेगा तो गांव को संपर्क पथ बना कर जोड़ा जा सकता है. इसके लिये अच्छे प्राक्कलन की आवश्यकता होगी, अगर वह सड़क आरडब्ल्यूडी योजना से बनायी जाये तो यह संभव है कि ग्रामीण मुख्य सड़क से जुड़ जायेंगे.
नांव के पलट जाने के कारण मेरा पांव टूट गया
अरूण शर्मा ने बताया कि 28 सितंबर 2024 की बात है. मैं अररिया गया हुआ था, वहां से लौट कर आया तो तालाब में पानी लबा-लब भरा था. नाव लगी थी, घर पहुंचने के लिये नाव जब पार करने लगा तो नाव अचानक पलट गयी. हालांकि मुझे तैरना आता था, लेकिन नाव पांव पर ही पलट गयी. जिससे मेरा पैर टूट गया. आज भी लंगड़ा कर चलता हूं. मेरी तो जिंदगी ही बदल गयी. उस दिन ही निर्णय लिया कि जब तक जनप्रतिनिधि, मुखिया या विधायक रोड नहीं बनायेंगे, तब तक हम ग्रामीण वोट नहीं डालेंगे.
नाव तो कभी केला का थंब बनता है आवागमन का सहारा
शिवानंद चौधरी ने बताया कि हम लोग बारिश के दिनों में जेल की तरह जिंदगी जीते हैं. नाव खेप कर मुख्य सड़क तक जाना पड़ता है. अगर नाव नहीं है तो केला का थन भी नाव के रूप में इस्तेमाल करते हैं. जान को जोखिम में डालना तो आम बात हो गयी है. कई बार बड़े नेताओं के पास जाकर गुहार लगाया, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है.
कई मौत हो चुकी हैं, बावजूद नहीं टूट रही प्रशासन की नींद
राजेंद्र बहरदार ने कहा कि एक-एक वोट महत्वपूर्ण होता है, यह हम भी जानते हैं, लेकिन क्या हम सिर्फ वोट दें और जवाबदेह वोट लेकर सोते रहें. यह नहीं चलेगा. अब जब तक रोड नहीं बनेगा तब तक हम वोट डालने भी नहीं जायेंगे. इस तालाब में डूबने से कई मौत हो चुकी हैं, जरा सा पांव फिसलता है, तो गहरे पानी में चला जाता है, बाद में मुश्किल से शव ही मिलता है. इसलिये इस बार हम लोग फैसला कर लिया है, रोड नहीं तो वोट नहीं.
हमने कई मुखिया व विधायक देखें, लेकिन उनसे मिला सिर्फ आश्वासन
संतलाल चौधरी ने कहा कि अपने 65 वर्ष के उम्र में हमने कई मुखिया व विधायक को देखा है, लेकिन अब तक इस सड़क पर विकास की एक परत तक नहीं चढ़ी है. हालांकि गांव में बिजली तो पहुंच गयी है, लेकिन सड़क की जब भी बारी आती है तो विधायक जी सिर्फ आश्वासन देते हैं और मुखिया जी कहते हैं, कि यह सड़क बनाने के लिये पुल चाहिये, जो करोड़ों की लागत का आयेगा, जो हमारे फंड से नहीं हो पायेगा. विधायक जी व सांसद जी चाहेंगे तभी सड़क बन पायेगा, ऐसे में हमने भी तय कर लिया है, जब विधायक जी व सांसद जी को हमारे वोट की जरूरत महसूस होगी, तब ही हम वोट डालने जायेंगे.
72 वर्ष की उम्र में बस इस सड़क को बना देखने की ख्वाहिस बच गयी
मिश्रानंद चौधरी कहते हैं कि 72 वर्ष मेरी उम्र हो रही है, इस बीच कई चुनाव देख चुके हैं, सबने यही कहा आप वोट देकर हमें विधायक बनाइये, हम सड़क जरूर बनायेंगे, अब साहब लोग जब जीत कर जाते हैं तो फिर लौट कर कहां आते हैं. अब तो अंतिम समय आ गया है, लेकिन यही ख्वाहिस बच गयी है कि यह रोड़ बन जाये और मैं उसे अपनी आंखों से देख लूं.

