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Tokyo Paralympic 2020: भारत को बड़ा झटका, विनोद कुमार ने गंवाया ब्रॉन्ज मेडल, क्लासिफिकेशन टेस्ट में हुए फेल

Tokyo Paralympic 2020 डिस्कस थ्रो खिलाड़ी विनोद कुमार विकार के क्लासिफिकेशन टेस्ट में ‘अयोग्य' पाये गये. जिसके कारण उन्हें पैरालंपिक में पुरुषों की एफ52 डिस्कस थ्रो में अपना ब्रॉन्ज मेडल गंवाना पड़ा.

Tokyo Paralympic 2020 : टोक्यो पैरालंपिक 2020 में सोमवार को चार मेडल जीतने की खुशी कम भी नहीं हुई थी और अगले ही पल विनोद कुमार के डिस्वालीफाइ होने की खबर ने भारत को बड़ा झटका दे दिया.

डिस्कस थ्रो खिलाड़ी विनोद कुमार विकार के क्लासिफिकेशन टेस्ट में ‘अयोग्य’ पाये गये. जिसके कारण उन्हें पैरालंपिक में पुरुषों की एफ52 डिस्कस थ्रो में अपना ब्रॉन्ज मेडल गंवाना पड़ा. विनोद कुमार के डिस्क्वालीफाइ होने के बाद भारत के कुल मेडलों की संख्या घटकर 7 से 6 रह गयी.

मालूम हो क्लासिफिकेशन पर विरोध के कारण विनोद कुमार के कांस्य पदक को रोक दिया गया था. पहाड़ी से गिरने के कारण 10 साल तब बिस्तर पर रहने वाले एथलीट विनोद कुमार ने रविवार को एशियाई रिकार्ड के साथ पुरुषों की एफ52 स्पर्धा में कांस्य पदक जीता था. लेकिन विरोधी ने विरोध कर दिया, जिसके बाद पदक को रोक दिया गया.

बीएसएफ के 41 साल के जवान ने 19.91 मीटर के सर्वश्रेष्ठ थ्रो से तीसरा स्थान हासिल किया. वह पोलैंड के पियोट्र कोसेविज (20.02 मीटर) और क्रोएशिया के वेलिमीर सैंडोर (19.98 मीटर) के पीछे रहे जिन्होंने क्रमश: स्वर्ण और रजत पदक अपने नाम किये.

क्या है नियम

एफ52 स्पर्धा में वो एथलीट हिस्सा लेते हैं जिनकी मांसपेशियों की क्षमता कमजोर होती है और उनके मूवमेंट सीमित होते हैं, हाथों में विकार होता है या पैर की लंबाई में अंतर होता है जिससे खिलाड़ी बैठकर प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेते हैं.

रीढ़ की हड्डी में चोट वाले या ऐसे खिलाड़ी जिनका कोई अंग कटा हो, वे भी इसी वर्ग में हिस्सा लेते हैं. पैरा खिलाड़ियों को उनके विकार के आधार पर वर्गों में रखा जाता है. क्लासिफिकेशन प्रणाली में उन खिलाड़ियों को प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति मिलती है जिनका विकार एक सा होता है.

हरियाणा के इस खिलाड़ी का इन खेलों में डेब्यू करते हुए यह प्रदर्शन एशियाई रिकार्ड है जिससे भारत को मौजूदा चरण में तीसरा पदक भी मिला. विनोद के पिता 1971 भारत-पाक युद्ध में लड़े थे. सीमा सुरक्षा बल में जुड़ने के बाद ट्रेनिंग करते हुए वह लेह में एक चोटी से गिर गये थे जिससे उनके पैर में चोट लगी थी. इसके कारण वह करीब एक दशक तक बिस्तर पर रहे थे और इसी दौरान उनके माता-पिता दोनों का देहांत हो गया था. उनकी स्थिति में 2012 के करीब सुधार हुआ और पैरा खेलों में उनका अभियान 2016 रियो खेलों के बाद शुरू हुआ.

Prabhat Khabar Digital Desk
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