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झारखंड का ऐसा गांव जहां के 2000 एकड़ खेत नदी में समाये, लेकिन किसान आज भी दे रहे लगान

पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत बहरागोड़ा और ओडिशा के बॉर्डर स्थित गांव के किसानों का हाल बेहाल है. इन गांवों की दो हजार एकड़ खेत सुवर्णरेखा नदी में समा गये हैं‍. इसके बावजूद किसान आज भी भू-लगान दे रहे हैं. प्रभात खबर के संवाद कार्यक्रम में किसानों ने सुनायी अपनी पीड़ा.

Jharkhand News: पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत बहरागोड‍़ा क्षेत्र में कई ऐसे गांव हैं जहां की करीब 2000 एकड़ खेती योग्य भूमि सुवर्णरेखा नदी में समा गये हैं. इसके बावजूद गांव के किसान आज भी लगान दे रहे हैं. बताया गया कि हर साल 50 से 100 फीट जमीन सुवर्णरेखा नदी में समा रही है. ये बातें कहते हुए क्षेत्र के किसानों की आंखें छलक गयीं. दरअसल, बहरागोड़ा के माहुलडांगरी किसान विश्रामागार में प्रभात खबर ने किसानों के साथ संवाद किया. यहां किसानों ने अपनी समस्याओं पर खुलकर बात की.

जमीन पर ओडिशा सरकार कर रही दावा, पर बहरागोड़ा अंचल में आज भी जमा हो रहा लगान

किसानों ने बताया कि कई साल से सुवर्णरेखा नदी का कटाव जारी है. इससे बहरागोड़ा क्षेत्र के माहुलडांगरी, कामारआड़ा, बामडोल और पाथरी गांव के 2000 एकड़ से अधिक कृषि योग्य भूमि नदी में समा गयी. इस भूमि पर अब ओडिशा सरकार दावा करती है. दूसरी ओर, क्षेत्र के किसान आज भी अपनी उक्त जमीन का लगान बहरागोड़ा अंचल कार्यालय में जमा कर रहे हैं.

किसानों ने सुनायी अपनी पीड़ा

किसानों ने बताया कि हर साल पूर्वी छोर में 50 से 100 फीट जमीन कटाव हो रहो रहा है. इस संबंध में झारखंड सरकार ठोस कदम नहीं उठा रही है. संबंधित विभाग ने कुछ स्थानों पर स्टैक और तटबंध का निर्माण किया, जो पर्याप्त नहीं है. स्टैक की बजाय क्षेत्र में तटबंध का निर्माण जरूरी है. किसानों ने बताया कि समय रहते पहल नहीं हुई, तो आनेवाले समय में महुलडांगरी गांव नदी में समा जाएगा. क्षेत्र के किसान भूमिविहीन हो जाएंगे. रोजगार के लिए उन्हें दर-दर भटकना पड़ेगा.

40 एकड़ जमीन मालिक के पास आज चार-पांच एकड़ ही बची

कई किसानों ने बताया कि 20-30 वर्ष पहले तक उनके पास 40 एकड़ तक जमीन थी. नदी के कटाव के कारण आज महज चार से पांच एकड़ जमीन ही रह गयी है. क्षेत्र के शत-प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं. नदी के किनारे गांव होने के कारण सालोंभर सब्जी की फसल लगाकर जीविकोपार्जन करते हैं. इनमें मुख्य रूप से करेला, बैंगन, लौकी, झींगा, खीरा, बरबटी, बादाम, मकई, कोहड़ा, फूलगोभी एवं बंदागोभी की खेती की जाती है.

जानें क्या कहते हैं किसान

किसान शशधर दंडपाट ने कहा कि संबंधित विभाग ने कुछ स्थानों पर तटबंध और स्टैक बनाया गया. इसे मानक के मुताबिक तैयार नहीं किया गया है. नदी के कटाव रोकने के लिए पदाधिकारियों ने ग्रामीणों से सुझाव नहीं लिया. योजना असफल साबित हुई है. वहीं, किसान श्रीधर दंडपाट ने कहा कि हर बरसात में सुवर्णरेखा नदी हमसे जमीन छीन रही है. पदाधिकारियों का आश्वासन अब तक कोरा साबित हुआ है. झारखंड सरकार की ओर से हमें हमारी जमीन वापस दिलाने के लिए ठोस पहल नहीं की जा रही है.

सुवर्णरेखा नदी की मार झेलने को विवश हैं क्षेत्र के किसान

किसान समीर पाल ने कहा कि वर्षों से क्षेत्र के किसान सुवर्णरेखा नदी की मार झेलने को विवश हैं. अपनी जमीन को खोते हुए देख रहे हैं. हर वर्ष हम बेरोजगारी की ओर एक कदम आगे बढ़ा रहे हैं. हमारी मदद को अब तक कोई सामने नहीं आया है. वहीं, किसान मनोहर पैड़ा ने कहा कि माहुलडांगरी समेत आसपास के गांव के सभी किसानों की जमीन सुवर्णरेखा नदी में समा गयी. दुख की बात है कि हम अपनी जमीन पर स्वामित्व का दावा नहीं कर पा रहे हैं. राज्य सरकार हमारी मदद करे. किसान अमीर पाल का कहना है कि पिछले कई वर्षों में हमने अपनी काफी जमीन खो दी है. अब जो जमीन बच गयी है, वही हमारे रोजगार का साधन है. इसे बचाने के लिए झारखंड सरकार हमारी मदद करे. यही हाल रहा तो हम भूमि विहीन हो जाएंगे.

हजारों एकड़ रैयती जमीन नदी में समा चुकी है

किसान सुबल नायक ने कहा कि बामडोल से माहुलडांगरी तक सुवर्णरेखा नदी किनारे कटाव काफी तेजी से हो रहा है. राज्य सरकार से मांग है कि नदी के किनारों को पत्थरों से बांध दिया जाये, ताकि बाकी जमीन बरकरार रहे. इससे घर चल रहा है. वहीं, किसान कामेश्वर धड़ा ने कहा कि नदी का कटाव किसानों की सबसे बड़ी समस्या है. अबतक हजारों एकड़ रैयती जमीन नदी में समा चुकी है. उक्त जमीन का लगान किसान भर रहे हैं. सरकार से मांग है कि मिट्टी कटाव को रोकने की दिशा में पहल करे. किसान शंकर खामराई ने कहा कि माहुलडांगरी के किसानों के लिए नदी का कटाव बड़ी समस्या है. हमारे पूर्वजों की कई एकड़ जमीन नदी में समा गयी है. मिट्टी का कटाव से शेष बचे खेत भी नदी में समाने के कगार पर है. सरकार हमारी जमीन बचाये.

नदी के कारण लगभग 300 किसानों पर संकट आ गया

किसान असित पंडा ने कहा कि 60-70 साल पहले सुवर्णरेखा नदी काफी संकरी थी. धीरे-धीरे बारिश के मौसम में नदी का कटाव बढ़ता गया. पूरब की ओर लगभग दो किलोमीटर जमीन का कटाव हो गया. नदी में हमारे 2000 एकड़ खेत चले गये. वहीं, किसान चंदन पैड़ा ने कहा कि संबंधित विभाग ने कई स्थानों पर तटबंध व स्टैक बनाया गया. हालांकि, यह पर्याप्त और अनुकूल नहीं है. इसमें सुधार कर समूचे क्षेत्र में तटबंध का निर्माण करना जरूरी है. इसके बाद किसानों की जमीन बच सकेगी. इसके अलावा किसान भरत पैड़ा ने कहा कि नदी के कारण लगभग 300 किसानों पर संकट आ गया है. हमारी जमीन पर ओडिशा सरकार दावा करती है. हम आज भी जमीन का लगान अंचल कार्यालय में जमा करते हैं. सरकार हमारी जमीन वापस दिला दे.

किसानों ने कहा- जमीन बचेगी, तभी उगा सकेंगे फसल

किसान अमलेंदु दंडपाट ने कहा कि राज्य सरकार हमारी जमीन वापस दिला दे. फिलहाल जिस भूमि पर खेती कर रहे हैं, उससे वंचित न होना पड़े. इसके लिए विशेष पहल जरूरी है. जमीन बचेगी, तभी फसल उगा सकेंगे. क्षेत्र के लोगों का पेट भर सकेंगे. वहीं, किसान मिहिर पाल ने कहा कि किसानों की समस्या को लेकर कोई गंभीर नहीं है. विगत 60-70 वर्षों में कई विधायक और सांसद अस्तित्व में आये. सभी ने समस्याएं सुनीं. समाधान के लिए ठोस पहल नहीं हुई. परियोजना की पहल से हमारी जमीन नहीं बचेगी. इसके अलावा किसान सत्यव्रत पांडा ने कहा कि बीते 70-80 वर्षों में क्षेत्र के किसानों ने बहुत कुछ गंवाया है. सुवर्णरेखा नदी में हमारी जमीन चली गयी. राज्य सरकार से बड़ी उम्मीद रहती है, लेकिन पहल नहीं हो रही है. आज बची-खुची जमीन भी छिनने को तैयार है.

हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलने को विवश

किसान सुजीत साव ने कहा कि किसानों की सुविधा के लिए कोई काम नहीं हो रहा है. हमारी जमीन सुवर्णरेखा नदी में चली गयी. बची-खुची जमीन पर फसल उगाते हैं. अबतक कोल्ड स्टोरेज उपलब्ध नहीं करायी गयी. सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं है. वहीं, किसान ब्रह्मपद घोष ने कहा कि कुछ साल पहले तक पूर्वजों के पास 20 एकड़ से अधिक कृषि योग्य भूमि थी. अब महज 4-5 एकड़ जमीन बची है. प्रतिवर्ष हम बाढ़ की विभीषिका झेलने व जमीन खोने को विवश है. ऐसा रहा तो हमारे पास कुछ नहीं बचेगा. वहीं, किसान उज्ज्वल पैड़ा ने कहा कि वर्तमान में युवाओं का रुझान कृषि की ओर बढ़ रहा है. हमारी इच्छा है कि कृषि कार्य उन्नत तरीके से कर संपन्न बनें. हमारे पास पानी के लिए नदी है. हालांकि यह वरदान की जगह अभिशाप बन चुकी है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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