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श्रद्धा और भक्ति से भरी भारतीय इतिहास की महान धार्मिक स्त्रियां

Women's Day 2025 Special: भारतीय इतिहास में महिलाओं ने धर्म और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया है. प्राचीन युग से लेकर भक्ति आंदोलन तक, कई धार्मिक महिलाएँ हुई हैं, जिन्होंने समाज को भक्ति, ज्ञान और सशक्तिकरण का संदेश प्रदान किया. ये महिलाएं केवल ईश्वर की सच्ची भक्त नहीं रहीं, बल्कि अपने आचरण और शिक्षाओं के माध्यम से मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत भी बनीं.

Women’s Day 2025 Special:  भारतीय इतिहास में महिलाओं ने धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया है. प्राचीन काल से लेकर भक्ति आंदोलन तक, अनेक धार्मिक स्त्रियाँ हुई हैं, जिन्होंने समाज को भक्ति, ज्ञान और सशक्तिकरण का संदेश दिया. ये स्त्रियां न केवल ईश्वर की अनन्य भक्त रहीं, बल्कि अपने आचरण और शिक्षा से मानवता के लिए एक प्रेरणा भी बनीं.

प्रमुख धार्मिक महिलाएं

माता सीता

माता सीता हिन्दू धर्म में आदर्श नारीत्व, त्याग और पवित्रता का प्रतीक मानी जाती हैं. वे राजा जनक की पुत्री और भगवान श्रीराम की पत्नी थीं. रामायण के अनुसार, उनका जन्म पृथ्वी से हुआ था, इसलिए उन्हें जानकी और भूमिपुत्री भी कहा जाता है. माता सीता ने वनवास के दौरान श्रीराम का साथ दिया और लंका में रावण के बंदीगृह में भी अपनी मर्यादा और शुद्धता को बनाए रखा. अग्नि परीक्षा के बाद भी समाज के प्रश्नों के कारण उन्होंने पुनः वन में निवास किया और अंततः धरती में समा गईं. वे शक्ति, धैर्य और नारी सम्मान का प्रतीक मानी जाती हैं.

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रानी मीरा बाई

रानी मीरा बाई भक्तिकाल की एक प्रमुख संत और श्रीकृष्ण की अटूट भक्त थीं. उनका जन्म 1498 में राजस्थान के मेड़ता राजघराने में हुआ. बचपन से ही वे श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित रहीं. विवाह के पश्चात भी उन्होंने सांसारिक बंधनों को छोड़कर भजन-कीर्तन और भक्ति के मार्ग को अपनाया. उनके प्रसिद्ध भजन— “पायो जी मैंने राम रतन धन पायो” और “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई”—आज भी भक्ति प्रेमियों के दिलों में गूंजते हैं. उनके समर्पण और प्रेम के कारण समाज ने उन्हें अनेक कष्ट दिए, फिर भी वे अडिग रहीं. अंततः वे श्रीकृष्ण में विलीन हो गईं.

अनुसूया माता

माता अनुसूया हिंदू धर्म में पतिव्रता और सतीत्व की प्रतीक मानी जाती हैं. वे महर्षि अत्रि की पत्नी और ब्रह्मा, विष्णु, महेश के संयुक्त अवतार दत्तात्रेय की माता थीं. उनकी तपस्या और सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए त्रिदेव स्वयं उनके आश्रम आए और उन्हें वस्त्रहीन होकर भिक्षा देने को कहा. अपने तपोबल से माता अनुसूया ने त्रिदेव को बालक बना दिया और उनकी सेवा की. अंततः त्रिदेव ने प्रसन्न होकर अपना वास्तविक स्वरूप धारण किया और उन्हें वरदान दिया. वे नारी शक्ति, त्याग और भक्ति का अद्वितीय उदाहरण हैं. उनकी पूजा से सुख-शांति और वैवाहिक जीवन में समृद्धि आती है.

गार्गी और मैत्रेयी

गार्गी और मैत्रेयी प्राचीन भारत की महान विदुषी थीं, जिन्होंने वेदों और उपनिषदों में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

गार्गी वाचक्नवी

वेदों और दर्शनशास्त्र में उनकी गहरी समझ थी. उन्होंने राजा जनक की सभा में ऋषि याज्ञवल्क्य से आत्मा, ब्रह्म और सृष्टि के बारे में जटिल प्रश्न पूछे. उनका तर्क और ज्ञान इतना प्रखर था कि वे पुरुष विद्वानों को भी चुनौती देती थीं.

मैत्रेयी

वे ऋषि याज्ञवल्क्य की पत्नी थीं और आत्मा तथा मोक्ष के ज्ञान में गहरी रुचि रखती थीं. उन्होंने भौतिक संपत्ति के बजाय आध्यात्मिक ज्ञान को प्राथमिकता दी. बृहदारण्यक उपनिषद में उनका संवाद अत्यंत प्रसिद्ध है.

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