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vat savitri vrat 2020: कब है वट सावित्री व्रत, जानिए पूजा करने की विधि और शुभ मुहूर्त

हिन्दू धर्म में सावित्री व्रत का खास महत्व माना जाता है, इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है. यह व्रत महिलाओं के लिए खास बताया जाता है. मान्यता है कि इस दिन उपवास और पूजा करने वाली महिलाओं के पति पर आयी संकट टल जाती है और उनकी आयु लंबी होती है. वट सावित्री व्रत में सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए बरगद के पेड़ के नीचे पूजा करती हैं.

हिन्दू धर्म में सावित्री व्रत का खास महत्व माना जाता है, इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है. यह व्रत महिलाओं के लिए खास बताया जाता है. मान्यता है कि इस दिन उपवास और पूजा करने वाली महिलाओं के पति पर आयी संकट टल जाती है और उनकी आयु लंबी होती है. सिर्फ इतना ही नहीं आपकी शादी-शुदा जिंदगी में किसी भी प्रकार की परेशानी चल रही हो तो वो भी सही हो जाती है.

वट सावित्री व्रत में सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए बरगद के पेड़ के नीचे पूजा करती हैं. मान्यता है कि इसी दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से भी वापिस ले आई थी. इसलिए वट सावित्री व्रत वाले दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है. हिन्दू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तिथि पर सावित्री व्रत रखने का विधान है. स्कंद और भविष्योत्तर पुराण में भी ये व्रत उसी दिन करने का विधान है. वहीं निर्णयामृत ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत की पूजा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की अमावस्या पर की जानी चाहिए. उत्तर भारत की बात करें तो यहां वट सावत्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को ही किया जाता है.

व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त

वट सावित्री व्रत 22 मई 2020 अमावस्या तिथि को मनाई जाएगी. 21 मई की शाम 09 बजकर 35 मिनट से अमावस्या तिथि समाप्त हो जाएगी.

वट सावित्री व्रत पूजा-विधि

वट सावित्री व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान करना होता है, इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण किया जाता है. वहीं, उसके बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है. 24 बरगद का फल, और 24 पूरियां अपने आंचल में रखकर वट वृक्ष के पास पूजा किया जाता है. इस दौरान 12 पूरियां और 12 बरगद फल वट वृक्ष पर चढ़ाया जाता है. इसके बाद एक लोटा जल चढ़ाएं, फिर वृक्ष पर हल्दी, रोली और अक्षत लगाया जाता है. फल-मिठाई अर्पित किया जाता है.

धूप-दीप दान करने के बाद कच्चे सूत को लपेटते हुए 12 बार परिक्रमा करना होता है. हर परिक्रमा के बाद भीगा चना चढ़ाएं जाते है. इसके बाद व्रत कथा पढ़े, फिर 12 कच्चे धागे वाली माला वृक्ष पर चढ़ाएं और दूसरी खुद पहन लें. 6 बार इस माला को वृक्ष से बदलें और 11 चने और वट वृक्ष की लाल रंग की कली को पानी से निगलकर अपना व्रत खोलने की नियम है.

Radheshyam Kushwaha
Radheshyam Kushwaha
पत्रकारिता की क्षेत्र में 12 साल का अनुभव है. इस सफर की शुरुआत राज एक्सप्रेस न्यूज पेपर भोपाल से की. यहां से आगे बढ़ते हुए समय जगत, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान न्यूज पेपर के बाद वर्तमान में प्रभात खबर के डिजिटल विभाग में बिहार डेस्क पर कार्यरत है. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते है. धर्म, राजनीति, अपराध और पॉजिटिव खबरों को पढ़ते लिखते रहते है.

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