Vat Savitri Purnima Vrat 2022: हिंदू धर्म में प्रत्येक पूर्णिमा तिथि (Purnima Vrat 2022) का विशेष महत्व है. लेकिन ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि खास है क्योंकि इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए वट पूर्णिमा का व्रत रखती हैं. वट पूर्णिमा व्रत वट सावित्री व्रत के समान है. विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट पूर्णिमा व्रत रखती हैं. अमंता और पूर्णिमांत चंद्र कैलेंडर में अधिकांश त्योहार एक ही दिन पड़ते हैं. उत्तर भारतीय राज्यों में पूर्णिमांत कैलेंडर का पालन किया जाता है, मुख्यतः उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा में. बाकी राज्यों में आमतौर पर अमंता चंद्र कैलेंडर का पालन किया जाता है. जानें वट पूर्णिमा व्रत की सही तारीख और शुभ मुहूर्त, पूजा विधि.
वट पूर्णिमा व्रत और वट सावित्री अमावस्या व्रत रखने के पीछे की कथा समान है
हालांकि वट सावित्री व्रत को अपवाद माना जा सकता है. पूर्णिमांत कैलेंडर में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दौरान मनाया जाता है जो शनि जयंती के साथ मेल खाता है. अमांता कैलेंडर में वट सावित्री व्रत, जिसे वट पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दौरान मनाया जाता है. इसलिए महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिणी भारतीय राज्यों में विवाहित महिलाएं उत्तर भारतीय महिलाओं की तुलना में 15 दिन बाद वट सावित्री व्रत रखती हैं. हालांकि दोनों कैलेंडर में व्रत रखने के पीछे की कथा समान है.
Vat Savitri Purnima: महिलाएं अपने पति के दीर्घायु और लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं
पौराणिक कथा के अनुसार महान सावित्री ने मृत्यु के स्वामी भगवान यम से आशीर्वाद प्राप्त किया और उन्हें अपने पति सत्यवान के जीवन को वापस करने के लिए मजबूर किया. इसलिए विवाहित महिलाएं अपने पति के दीर्घायु और लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं.
वट सावित्री पूर्णिमा तारीख, शुभ मुहूर्त (Vat Savitri Purnima date, Shubh Muhurat)
वट सावित्री पूर्णिमा मंगलवार, जून 14, 2022 को
वट सावित्री अमावस्या व्रत सोमवार, मई 30, 2022 को
शुभ मुहूर्त : 14 जून को सुबह 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक शुभ मुहूर्त है.
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - जून 13, 2022 को 09:02 रात बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त - जून 14, 2022 को 05:21 शाम बजे
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि (Vat Savitri Purnima Vrat Puja Vidhi)
वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान और यम की मिट्टी की मूर्तियां स्थापित कर पूजा करें.
वट वृक्ष की जड़ में पानी डालें.
पूजा के लिए जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, पुष्प और धूप रखें.
जल से वट वृक्ष को सींचकर तने के चारों ओर कच्चा सूत लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें.
इसके बाद सत्यवान सावित्री की कथा सुनें.
कथा सुनने के बाद चना, गुड़ का बायना निकालकर उस पर सामर्थ्य अनुसार रुपये रखकर अपनी सास या सास के समान किसी सुहागिन महिला को देकर उनका आशीर्वाद लें.
वट सावित्री व्रत की कथा का श्रवण या पठन करें .
वट सावित्री पूर्णिमा का महत्व (Significance of Vat Savitri Purnima)
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत में भी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. मान्यता है कि बरगद के पेड़ की आयु सैकड़ों साल होती है. चूंकि महिलाएं भी बरगद की तरह अपने पति की लंबी आयु चाहती है और बरगद की ही तरह अपने परिवार की खुशियों को हरा-भरा रखना चाहती हैं इसलिए यह व्रत करती हैं. वहीं एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री ने बरगद के नीचे बैठकर तपस्या करके अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी, इसलिए वट सावित्री पूर्णिमा व्रत पर बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है.