Navratri 2020, dussehra (Vijayadashmi) 2020 Date and timing, Vrat paran, navratri parana time 2020, Durga Ji ki Aarti : शारदीय नवरात्रि अब खत्म होने वाला है. ऋषिकेष पंचांग के अनुसार आज सुबह अष्टमी तिथि थी. 11 बजकर 27 मिनट के बाद नवमी तिथि लग गई है. नवरात्र में नौ दिनों तक पूरी श्रृद्धा और आस्था से भक्तगण मां की पूजा अर्चना करते हैं. नवरात्रि के अंतिम तिथि अष्टमी (Maha Ashtami) और नवमी (Maha Navmi) का विशेष महत्व होता है. आज अष्टमी और नवमी दोनों ही तिथि है. इस दिन हवन पूजन और कन्या पूजन (Kanya Puja) की जाती है. साथ ही लोग अपने व्रत का पारण भी करते हैं. आइए जानते है महानवमी तिथि पर हवन विधि (Hawan time and Vidhi), पूजा विधि, शुभ मुहूर्त (Muhurat Vidhi), मंत्र और कन्या पूजा से संबंधित पूरी जानकारी...
विजयदशमी के दिन शुभ मुहूर्त में शमी के पौधे के पास जाकर सरसों के तेल का दीपक जलाएं. प्रणाम कर शमी पूजन मंत्र पढ़े. इसके बाद यह प्रार्थना करें कि सभी दिशा-दशाओं में आप विजय प्राप्त करें. अगर आपके परिवार में अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की जाती है तो एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर सभी शस्त्र उस पर रखें. फिर गंगाजल छिड़क कर पुष्प अर्पित करें. साथ ही यह प्रार्थना करें कि संकट पड़ने पर यह आपकी रक्षा करें. इस दिन भगवान श्रीराम की उपासना करने का बहुत अधिक महत्व होता है. एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान श्री राम की प्रतिमा स्थापित करें. फिर धूप, दीप और अगरबत्ती जलाकर भगवान श्री राम की उपासना करें. अंत में आरती करें.
ओम पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।
ओम भूः स्वाहा, इदमगन्ये इदं न मम।
ओम भुवः स्वाहा, इदं वायवे इदं न मम।
ओम स्वः स्वाहा, इदं सूर्याय इदं न मम।
ओम अगन्ये स्वाहा, इदमगन्ये इदं न मम।
ओम घन्वन्तरये स्वाहा, इदं धन्वन्तरये इदं न मम।
ओम विश्वेभ्योदेवभ्योः स्वाहा, इदं विश्वेभ्योदेवेभ्योइदं न मम।
ओम प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये इदं न मम।
ओम अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदमग्नये स्विष्टकृते इदं न मम।
आम की लकड़ियां, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पापल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन का लकड़ी, तिल, कपूर, लौंग, चावल, ब्राह्मी, मुलैठी, अश्वगंधा की जड़, बहेड़ा का फल, हर्रे, घी, शक्कर, जौ, गुगल, लोभान, इलायची, गाय के गोबर से बने उपले, घी, नीरियल, लाल कपड़ा, कलावा, सुपारी, पान, बताशा, पूरी और खीर.
विजयदशमी आज है. इस दिन शुभ मुहूर्त में शमी के पौधे के पास जाकर सरसों के तेल का दीपक जलाएं. प्रणाम कर शमी पूजन मंत्र पढ़े. इसके बाद यह प्रार्थना करें कि सभी दिशा-दशाओं में आप विजय प्राप्त करें. अगर आपके परिवार में अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की जाती है तो एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर सभी शस्त्र उस पर रखें. फिर गंगाजल छिड़क कर पुष्प अर्पित करें. साथ ही यह प्रार्थना करें कि संकट पड़ने पर यह आपकी रक्षा करें. इस दिन भगवान श्रीराम की उपासना करने का बहुत अधिक महत्व होता है. एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान श्री राम की प्रतिमा स्थापित करें। फिर धूप, दीप और अगरबत्ती जलाकर भगवान श्री राम की उपासना करें. इसके बाद अंत में आरती करें.
ऋषिकेष पंचांग के अनुसार शुद्ध आश्विन शुक्लपक्ष नवमी दिन 11 बजकर 14 मिनट के उपरांत दशमी
श्री शुभ संवत- 2077, शाके- 1942, हिजरीसन- 1441-42
सूर्योदय -06:23
सूर्यास्त -05:37
सूर्योदय कालीन नक्षत्र -श्रवण उपरांत घनिष्ठा, गण्ड- योग, कौ -करण
सूर्योदय कालीन ग्रह विचार -सूर्य -तुला, चन्द्रमा- मकर, मंगल- मीन, बुध- तुला, गुरु- धनु, शुक्र- कन्या, शनि- धनु, राहु- वृष, केतु- वृश्चिक
प्रात: 6 बजे से 7.30 तक उद्वेग
प्रात: 7.30 बजे से 9 बजे तक चर
प्रात: 9 बजे से 10.30 बजे तक लाभ
प्रात: 10.30 बजे से 12 बजे तक अमृत
दोपहर 12 बजे से 1.30 बजे तक काल
दोप. 1.30 बजे से 3 बजे तक शुभ
दोप. 3 बजे से 4.30 बजे तक रोग
शाम 4.30 बजे से 6 बजे तक उद्वेग
दशहरा के दिन शमी पूजा की जाती है. शमी की पूजा विशेष कर क्षत्रिय करते हैं. शमी वृक्ष की पूजा दशहरा वाले दिन प्रदोष काल में की जाती है. मान्यता है कि पांडवों ने महाभारत के युद्ध के समय अपने अस्त्र-शस्त्र शमी के वृक्ष पर छिपाए थे, जिससे उन्हें युद्ध में विजय मिली. हालांकि शमी को दृढ़ता तथा तेजस्विता का प्रतीक माना जाता है. उसमें अन्य वृक्षों की तुलना में अग्नि तत्व ज्यादा होता है. हम भी शमी की तरह ही तेजस्वी तथा दृढ़ हों, इसलिए इसकी पूजा की जाती है.
- कन्या पूजन के लिए एक दिन पहले कन्याओं को आदर के साथ आमंत्रित करें.
- कन्या पूजन के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान गणेश और मां दुर्गा की अराधना करें.
- गृह प्रवेश पर कन्याओं पर पुष्प वर्षा कर स्वागत करना चाहिए. इसके साथ ही मां दुर्गा के नौ नामों का जयकारा लगाना चाहिए.
- कन्याओं को स्वच्छ आसन में बैठाकर साफ पानी या दूध से भरे थाल में पैर रखवाकर पैरों को धोना चाहिए. पैर छूकर आशीष लेना चाहिए.
- उसके बाद कन्याओं को माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए.
- मां दुर्गा का ध्यान लगाने के बाद देवी स्वरूप कन्याओं को भोजन कराएं.
- भोजन के बाद सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा या उपहार देकर दोबारा पांव छूकर आशीर्वाद लें.
अष्टमी और नवमी दोनों ही तिथि आज ही पड़ रही है. दोपहर बाद नवमी तिथि की प्रारंभ हो चुकी है. इस साल अष्टमी 24 अक्टूबर (शनिवार) और नवमी 25 अक्टूबर (रविवार) को पड़ रही है. इसके साथ ही 25 अक्टूबर की सुबह 7 बजकर 41 मिनट पर नवमी तिथि समाप्त होने के कारण शाम को दशहरा (विजयादशमी) मनाया जाएगा.
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल दशहरा या विजयादशमी का त्योहार 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा. दशहरा हर साल दीपावली से ठीक 20 दिन पहले मनाया जाता है. हालांकि इस साल नवरात्रि 9 दिन के न होकर 8 दिन में ही समाप्त हो रहे हैं. दरअसल, इस साल अष्टमी और नवमी का एक ही दिन पड़ रही है. 24 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 58 मिनट तक ही अष्टमी है, उसके बाद नवमी लग जाएगी. जिसके चलते दशहरा 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा.
कन्या पूजा में आपको 02 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं को शामिल करना चाहिए. जब आप कन्या पूजा करने जाएं तो 02 से 10 वर्ष तक की 9 कन्याओं को भोज के लिए आमंत्रित करें तथा उनके साथ एक छोटा बालक भी होना चाहिए. 9 कन्याएं 9 देवियों का स्वरुप मानी जाती हैं और छोटा बालक बटुक भैरव का स्वरुप होते हैं. कन्याओं को घर आमंत्रित करके उनके पैर पानी से धोते हैं, फिर उनको चंदन लगाते हैं, फूल, अक्षत् अर्पित करने के बाद भोजन परोसते हैं. फिर उनके चरण स्पर्श करके आशीष लेते हैं और उनको दक्षिणा स्वरुप कुछ उपहार भी देते हैं.
नवरात्रि में सभी उम्र वर्ग की कन्याएं मां दुर्गा के विभिन्न रुपों का प्रतिनिधित्व करती हैं.10 वर्ष की कन्या सुभद्रा, 9 वर्ष की कन्या दुर्गा, 8 वर्ष की शाम्भवी, 7 वर्ष की चंडिका, 6 वर्ष की कालिका, 5 वर्ष की रोहिणी, 4 वर्ष की कल्याणी, 3 वर्ष की त्रिमूर्ति और 2 वर्ष की कन्या को कुंआरी माना जाता है.
अष्टमी और नवमी तिथि आज ही है. कन्या पूजन के दिन सबसे पहले घर में साफ-सफाई करें. कन्या के साथ अगर कोई बालक हो तो उसे भी बैठाएं. कन्या को बैठने के लिए आसन दें और उनके पैर धोएं. कन्या को रोली, कुमकुम और अक्षत् का टीक लगाएं. फिर कन्या के हाथ में मौली बांधें. इसके बाद घी का दीपक जलाएं और कन्या की आरती उतारें. फिर पूरी, चना और हलवा कन्या को खाने के लिए दें. खाने के साथ कन्या को अपने सामर्थ्यनुसार भेंट और उपहार भी दें. फिर उनके बाद उनके पैर छूएं.
दुर्गा अष्टमी के दिन ही हवन किया जाता है. वहीं अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन करने का विधान है. आप कन्या पूजन के बाद व्रत का उद्यापन कर सकते हैं और पारण करके व्रत को पूरा कर सकते हैं. अन्यथा महानवमी के दिन हवन के बाद कन्या पूजा करें, उनसे आशीर्वाद लेने के बाद नवरात्रि व्रत का उद्यापन पारण के साथ करें.
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
दशहरा का विजय मुहूर्त सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है. मान्यता है कि शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए इसी समय निकलना चाहिए. विजय मुहूर्त में गाड़ी, इलेक्ट्रॉनिक सामान, आभूषण और वस्त्र खरीदना शुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस मुहूर्त में कोई भी नया काम किया जाए तो सफलता अवश्य मिलती है. इस दिन शस्त्र पूजा के साथ ही शमी के पेड़ की पूजा की जाती है. साथ ही रावण दहन के बाद थोड़ी सी राख को घर में रखना शुभ माना जाता है.
दशमी तिथि प्रारंभ: 25 अक्टूबर 2020 को सुबह 11 बजकर 14 मिनट से
दशमी तिथि समाप्त: 26 अक्टूबर 2020 को सुबह 11 बजकर 33 मिनट तक
विजय मुहूर्त: 25 अक्टूबर 2020 को दोपहर 01 बजकर 57 मिनट से दोपहर 02 बजकर 42 मिनट तक.
कुल अवधि: 45 मिनट
अपराह्न पूजा का समय: 08 अक्टूबर 2020 को दोपहर 01 बजकर 12 मिनट से दोपहर 03 बजकर 27 मिनट तक.
कुल अवधि: 02 घंटे 15 मिनट
आम की लकडियां, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पापल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन का लकड़ी, तिल, कपूर, लौंग, चावल, ब्राह्मी, मुलैठी, अश्वगंधा की जड़, बहेड़ा का फल, हर्रे तथा घी, शक्कर, जौ, गुगल, लोभान, इलायची एवं अन्य वनस्पतियों का बूरा. गाय के गोबर से बने उपले घी में डुबाकर डाले जाते हैं.
ओम जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमस्तुति स्वाहा।
ओम ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा
ओम गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
ओम शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।
इसके बाद नीरियस के गोले में लाल कपड़ा या कलावा लपेट दें। फिर सुपारी, पान, बताशा, पूरी, खीर और अन्य प्रसाद को हवन कुंड के बीच में स्थापित कर दें। साथ ही पूर्ण आहुति मंत्र का उच्चारण करें.
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