Maa Mahagauri Vrat Katha: नवरात्रि के अष्टमी पर भक्त व्रत रखते हैं और कई लोग कन्याओं को भोजन कराकर अपने व्रत का पारण करते हैं. इस दिन माता महागौरी की विधिपूर्वक पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है. पूजा के समय व्रत कथा का पाठ करना अनिवार्य होता है, जिससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है. व्रत रखने और कन्याओं को भोजन कराकर उनका सम्मान करने से भी माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
मां महागौरी की व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को अपना पति पाने के लिए कठिन और लंबी तपस्या की. उन्होंने हजारों वर्षों तक कठोर साधना की, जिसमें उन्होंने जल और अन्न का सेवन बिलकुल बंद कर दिया. इस तपस्या के कारण उनका शरीर धीरे-धीरे काला पड़ गया और लोग उनकी इस कठोर साधना को देखकर आश्चर्यचकित हो गए. मां पार्वती की अटूट भक्ति और तपस्या से अत्यंत प्रभावित होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया. तपस्या के समय उनके शरीर के काले पड़ने के कारण महादेव ने गंगा जल से उनका शुद्धिकरण किया. गंगा जल से स्नान करने के बाद उनका शरीर फिर से उज्ज्वल और चमकदार हो गया. इस अद्भुत परिवर्तन के कारण उन्हें महागौरी कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है ‘अत्यंत श्वेत और सौम्य देवी’. इस व्रत कथा से यह संदेश मिलता है कि सच्ची भक्ति, कठोर तपस्या और श्रद्धा से किसी भी कठिन लक्ष्य की प्राप्ति संभव है. इसलिए अष्टमी व्रत में मां महागौरी की विधिपूर्वक पूजा और प्रिय भोग अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है.
ऐसा है मां महागौरी का स्वरूप
मां महागौरी का रूप अत्यंत गौर और शांतिपूर्ण है. उनके उज्ज्वल स्वरूप की तुलना शंख, चंद्रमा और कुंद के फूल से की जाती है. उनका सौम्य और दिव्य रूप भक्तों के मन को आकर्षित करता है और उनकी आराधना से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है.
माता महागौरी के प्रमुख मंत्र
“या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
(स्तुति मंत्र), “श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥”
(ध्यान मंत्र) और “ॐ देवी महागौर्यै नमः॥”
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