Garud Puran: अक्सर आपने देखा होगा कि किसी के निधन के बाद अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी घर के पुरुष सदस्य निभाते हैं. महिलाएं आमतौर पर श्मशान नहीं जातीं या सिर्फ वहीं तक जाती हैं जहां से शव यात्रा निकलती है. लेकिन क्या सच में शास्त्रों ने महिलाओं को अंतिम संस्कार करने से रोका है? क्या गरुड़ पुराण या अन्य धर्मग्रंथों में इसका स्पष्ट जिक्र मिलता है? आइए जानते हैं कि इस विषय में गरुड़ पुराण क्या कहता है.
किन-किन लोगों को है अंतिम संस्कार करने का अधिकार?
अंतिम संस्कार से जुड़ी बात का जिक्र गरुड़ पुराण के प्रेत खंड के अध्याय 8 में मिलता है. इस अध्याय में गरुड़ भगवान विष्णु से सवाल करते हैं कि किसी व्यक्ति के निधन के बाद अंतिम संस्कार करने का अधिकार किन लोगों को होता है. इस पर भगवान विष्णु विस्तार से जवाब देते हुए कहते हैं: “सबसे पहले पुत्र, पौत्र (पोता), प्रपौत्र (परपोता) यानी संतान की अगली पीढ़ियों को अंतिम संस्कार करने का अधिकार प्राप्त होता है. यदि ये न हों, तो भाई, भाई के बेटे और उनके वंशज यह कर्म कर सकते हैं. इनके अलावा समान कुल में जन्मे रिश्तेदारों को भी यह अधिकार दिया गया है.”
क्या महिलाओं को है अंतिम संस्कार करने का अधिकार?
आगे भगवान विष्णु कहते हैं कि यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य न हो, तो महिलाएं जैसे पत्नी, बेटी या बहन अंतिम संस्कार कर सकती हैं. यानी जब पुरुष सदस्य न हों, तो महिलाओं को पूरी तरह यह जिम्मेदारी निभाने की अनुमति है. वहीं, अगर परिवार में कोई भी रिश्तेदार मौजूद न हो, तो समाज का प्रमुख व्यक्ति उस मृतक का संस्कार कर सकता है.
इससे स्पष्ट होता है कि शास्त्रों में कहीं भी महिलाओं को अंतिम संस्कार से वंचित नहीं किया गया है. यह जो मान्यता बन गई है कि महिलाएं श्मशान नहीं जा सकतीं या संस्कार नहीं कर सकतीं, यह धार्मिक नियम नहीं बल्कि सामाजिक परंपरा है, जिसे समय के साथ लोगों ने स्वयं बना लिया. शास्त्रों ने महिलाओं को इस जिम्मेदारी से नहीं रोका है. आज के समय में जब परिवार छोटे हो गए हैं और कई बार बेटियां ही अपने माता-पिता की देखभाल करती हैं, ऐसे में केवल पुरानी परंपराओं पर टिके रहना सही नहीं है. असली जरूरत यह है कि हम धर्मग्रंथों की बातों को सही तरह से समझें.
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