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Chanakya Niti: चाणक्य नीति में है आज की हकीकत,धन के पीछे भागने वालाें से ज्यादा बेहतर जीवन जीते हैं ऐसे लोग…

chanakya niti on happy life आज के दौर में धन के पीछे भाग रहे लोगों और उससे होने वाले नुकसान व निराशा पर आचार्य चाणक्य chanakya ने काफी पहले श्लोक chanakya shloka on happy life के माध्यम से चाणक्य नीति chanakya niti में लिखा-

chanakya niti on happy life

आज के दौर में धन के पीछे भाग रहे लोगों और उससे होने वाले नुकसान व निराशा पर आचार्य चाणक्य chanakya ने काफी पहले श्लोक chanakya shloka on happy life के माध्यम से चाणक्य नीति chanakya niti में लिखा-

“सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तिरेव च।

न च तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावाताम्॥”

आचार्य चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से कहते हैं कि – सन्तोष के अमृत से तृप्त व्यक्तियों को जो सुख और शांति मिलता है ,वह सुख-शांति धन के पीछे भागने वालों को नही मिलता.

आज के दौर में अधिकतर इंसान दौड़ रहा है..वह जीवन के हर एक क्षण को महससू करने के बदले केवल भाग रहा है.उसका भागना कुछ ऐसा दिखने लगा है मानो वह उस रेस में भाग ले चुका है जो अनंत की दूरी तय करने का लक्ष्य सामने देता हो.

सुबह नींद से जगने के बाद वह उस रफ्तार में दौड़ना शुरू कर देता है जैसे जन्म लेने का एकमात्र उद्देश्य ही भागते रहना हो.दरअसल आजकल अधिकतर इंसानों के मन मे लालसा जिस पराकाष्ठा को पार करता दिख रहा है वो लालसा इंसान के निजी जीवन को तबाही के कगार पर लाकर खड़ा दिख रहा है.आजकल सबको केवल विलासिता के दरवाजे पर खड़े होने की जो होड़ लगी हुई है और किसी भी मामले में संतोष नही करने की जो हठ है वो इंसान के जीवन से सुख चैन पूरी तरह छीन चुका है.

हलांकि इस दुनिया मे आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जरूर जिन्हें इस भाग दौड़ की जीवन से प्रेम नही है और उसके पास जीवन जीने के जो भी पर्याप्त चीजें हाथ मे है वो उसी में संतुष्ट है और उस संतुष्टि के साथ खुसी से अपने जीवन को जी रहा है.

जिनके पास आकांक्षाओं का संतोष नही है वो चीजें तो जुटा ले रहे हैं लेकिन वास्तविक चीजें जो सुखमय जीवन जीने के लिए जरूरी होती है उससे वंचित ही रह जाते हैं. न ही उनके पास घर परिवार के साथ समय बिताने की जरूरत दिखती है न ही अपने बच्चों को अपना सही मार्गदर्शन देने का उन्हें समय मिलता है.यहां तक ही वो खुद के लिए भी कभी स्वयं उपलब्ध नही रह पाते हैं और उसी भागदौड़ को जीवन का सत्य बना बैठते हैं.यह बड़ी वजह बनती है कि इंसान सब कुछ जुटाकर भी खुश क्यों नही हैं.

आज इस सत्य को समझने की जरुरत है कि महलों में रहने मात्र से ही अगर खुशी मिल जाती तो आज सबसे अधिक आंसुओं की बूंदों से महलों के ही फर्श भला क्यों गीले मिलते .अगर केवल महलों में ही रहने से,विलासिता के तमाम साधनों के बीच बैठे रहने से ही रिश्तों के वास्तविक आनंद को जिया जा सकता था तो क्यों भला अदालत में सबसे मोटी फाइलें महलों से ही निकल कर आती.

आज के दौर में सुख शांति या धन के पीछे दौड़ लगाने वालों से कहीं अधिक खुश वह व्यक्ति या परिवार है जिसके पास जीवन जीने के पर्याप्त संसाधनों के बाद संतोष की लकीरें भी जीवन की धारा में शामिल हैं और वो उसके भीतर ही रहकर जीवन का आनंद ले रहा है.

संतोष का मतलब यह नही होता कि हम जरूरत की चीजें भी हासिल करने में असमर्थ बन जाएं और उसमें संतोष कर बैठे.हमें जरूरत लायक हर एक चीजों के लिए प्रत्यनशील रहना चाहिए लेकिन अपार धन के लोभ में दौड़ लगाकर अपना निजी व पारिवारिक जीवन कभी बर्बाद नही करनी चाहिए.

यह संतोष जीवन मे इंसान को प्रबुद्ध भी बनाता है और उसे समझ हो जाती है कि धन कितना ही पा लें फिर भी कुछ नही पाया जाता.चाहे कोई सिकंदर ही क्यों न हो उसे खाली हाथ ही विदा होना है.इसलिए जीवन मे आगमन से विदाई तक के मिले समय को जीने की जरूरत है,उसमे पाने की लालसा को हटाकर ही खुशी हासिल की जा सकती है.

धन बाहर कितना भी जमा कर लिया जाए लेकिन अगर निर्धनता अंदर रह गई तो कोई भी जमा किया हुआ धन उस भीतरी निर्धनता को धनवान नही बना सकता.दौड़ दौड़कर जीवन केवल रिक्त ही होता है उसमे हासिल कुछ नही होता.जरूरत है जीवन मे जीने की कला को सीखना ताकि हाथ मे जुटाए पर्याप्त संसाधनों व धनों के साथ भी वास्तविक प्रसन्नता जीवन मे जोड़ा जाए और घर परिवार के साथ सुकून से जीवन का आनंद ले सकें .इसके लिए जरूरी है कि दौड़ लगा रहे बंजर जीवन मे अपने अंदर “संतोष” नाम की बारिस की बूंदों से उसे तृप्त करना.

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